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क्या उसे हक नहीं खुले आसमान में उड़ाने का

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नारी ही क्यों ?

क्यो? नारी ही सहे अत्याचार |
क्यों ? नारी ही रहे सिर झुकाए
क्या नारी को हक नहीं जीने का
अपने सपनों के साथ ,

क्या उसे हक नहीं
खुले आसमान में उड़ाने का,
चिड़ियों की भाँति…
क्यों वह सहती दुखों का पर्वत,

क्यों? वह ही माने हर रीति -रिवाज
क्यों वह करती रहती हर पल संघर्ष
क्या? उसे हक नहीं खिलने का
फूलों की भाँति,

नारी ही देती जन्म इंसान को
फिर क्यों कहते उसे अबला नारी….|
वह कई रूपों में रखती सबका ख्याल..
कभी किसी बच्चे की माँ ,

तो कभी किसी की पत्नी
दीदी, बुआ,चाची आदि!
फिर वह क्यों कहलाती
एक अबला नारी क्यों?
~~ममता कुशवाहा~~

यह भी पढ़े…..सभी मौन क्यों? यह एक बड़ा ही गहन चिंता का विषय है।

*हमें पूर्ण विश्वास है कि हमारे पाठक अपनी स्वरचित रचनाएँ ही इस काव्य कॉलम में प्रकाशित करने के लिए भेजते है। अपनी रचना हमें ई-मेल करें writeus@deshkiaawaz.in

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