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सभी मौन क्यों? यह एक बड़ा ही गहन चिंता का विषय है।

सभी मौन क्यों?

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सभी मौन क्यों? यह एक बड़ा ही गहन चिंता का विषय है। आखिर क्यों? मौन की रहने की आवश्यकता क्यों? मौन की प्रवृति हम मनुष्य में प्रकृति रूप से निवास है ,इसमें कोई संदेह नहीं है तथा मौन एक प्रकार से ताकतवर शक्ति है क्योंकि जब हम मौन धारण करते हैं तो सहज ही प्रकृति के अंश बन जाते हैं; क्योंकि प्रकृति में तो सर्वत्र मौन व्याप्त है और मौन रहकर प्रकृति भी निरंतर गतिशील है।

किसी गुणीजन ने कहा है, “मौन और एकांत आत्मा के सर्वोपरि मित्र हैं ।” क्योंकि कभी -कभी जब अत्यंत क्रोध में होत है तो अपने सामने वाले से कुछ ऐसा रूखा बोल पड़ते है कि वो बात उसके मन को गहरी चोट पहुँचा देती हैं और बाद मे हमे अपने भूल का पछतावा करने के सिवा कुछ नहीं बचता और इसलिए उस वक्त (क्रोध में) हम मौन रहकर भी हम परिस्थिति को बिगड़ने से बचा सकते है | पर हमेशा ही मौन रहना उचित नहीं है कभी कभी मौन रहना हमारा ही हानि कर देता या सामने वाले का भी कर सकता है।

माना कि मौन ही आत्मा है, मौन ही सत्य है, मौन ही अमर एवं एक ताकतवर शक्ति है, माना कि निराश एवं मन से हारे हुए इंसान के लिए मौन धारण करने से बढ़कर कोई उपाचार नहीं होता | अशांत मन, अनेक प्रकार के कलेशों से छुटकारा पाने की एक शक्तिशाली गुण मौन ही होती हैं | परन्तु हर समय मौन रहना क्या उचित है ?अपने स्वार्थ के लिए मौन हो जाना उचित है? छल -कपट ,अन्याय आदि देखते हुए चुप रहना उचित है क्या ? आजकल कही न कही इंसान स्वार्थी होते जा रहे है अपना स्वार्थ निकलने से मतलब रखने लगे है । वर्तमान परिवेश की बात कर लीजिए जहाँ देश में अनेक तरह की समस्याओं को झेल रही हैं,एक तरफ कोरोना,बेरोजगारी,महामारी,गरिबी आदि अनेक समस्या है तो दूसरी तरफ लूटमारी ,भ्रष्टाचार देश के हरेक कोने में एक जैसी सुविधा पहुँचने नहीं देती है ,और ये सब देखते हुए भी बेबस आमजनता आवाज नहीं उठाये, कोई खिलाफ आवाज उठाये तो उन्हें चुप करा देते भ्रष्ट लोग, देश में अनेक प्रकार की नारी अत्याचार, शोषण, बलात्कार जैसी घटना घट रही हैं

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इसके लिए भी कानून होते हुए भी कोई ठोस कारवाई नहीं होती, आज भी लोग डर -डर के कही न कही जी रहे है और सब कुछ देखते हुए सह रहे और मौन हो गए हैं ,पर क्यों? करे भी तो करे क्या चारों तरफ अन्याय, भ्रष्टाचार आदि से हताश हो गए हैं लोग |आमजनता को दो वक्त की रोटी के जुगाड़ करने के आलावा फूर्सत कहाँ? तो सभी मौन न हो तो करे क्या? आखिर कबतक ये मौन रहेंगे?(डिस्क्लेमर: ये लेखक के निजी विचार हैं.)