आप लगातार चिंतित रहते हैं ? कहीं यह एंक्झायटी डिसॉर्डर (Anxiety disorder) तो नहीं ?
स्थायी भय और चिंता के लक्षण एंक्झायटी डिसॉर्डर (Anxiety disorder) की मौजूदगी का संकेत देते हैं, जिसका अगर तुरंत इलाज न किया जाये, तो वह पिडित व्यक्ति की दैनिक दिनचर्या को बूरी तरहसे बाधित और प्रभावित कर सकता है।
कठिन परिस्थितियों में एक मजबूत दिल वाला व्यक्ति भी अक्सर भ्रम, चिंता और भय का अनुभव करता है। कुछ परिस्थितियों में कुछ समय के लिए ऐसा हो जाना सभी के लिए स्वाभाविक है, लेकिन जब कोई व्यक्ति हमेशा चिंतित या भयभीत रहने लगे, तो उसकी यह मनोदशा आगे चलकर एंक्झायटी डिसॉर्डर (Anxiety disorder) या चिंता विकार जैसी गंभीर समस्या खडी कर सकती है। यह मनोविकार तब होता है जब किसी व्यक्ति का अपनी नकारात्मक भावनाओं पर कोई नियंत्रण ही न रहे और, तमाम प्रयासों के बावजूद, इसके तीव्र लक्षण लगातार 6 सप्ताहों के उपरांत भी बने रहें।
वास्तविक या काल्पनिक घटनाओं के चिंतन से लगातार उत्पन्न होनेवाली चिंताएं, असुरक्षा के एहसास तथा भविष्य के डर की अधिकता, अंततोगत्वा, व्यक्तिके शारीरिक और मानसिक स्वास्थ्य को प्रभावित करती ही है, जिसके लक्षण भिन्न-भिन्न व्यक्तियों में भिन्न-भिन्न होते हैं। यदि गंभीर न हों तो ये लक्षण समय के साथ गायब भी हो जाते हैं, लेकिन स्थायी भय और चिंता के लक्षण एंक्झायटी डिसॉर्डर (Anxiety disorder) की मौजूदगी का संकेत देते हैं, जिसका अगर तुरंत इलाज न किया जाये, तो वह पिडित व्यक्ति की दैनिक दिनचर्या को बूरी तरहसे बाधित और प्रभावित कर सकता है।
एंक्झायटी डिसॉर्डर (Anxiety disorder) की उत्पत्ति
वर्तमानमें केवल भारत ही नहि, विश्वभरमें करोडों युवा इस मानसिक समस्या से जूझ रहे हैं। शहरों में आजकी आधुनिक जीवनशैली की एक कठोर वास्तविकता यह है कि अधिकतर लोग अपने व्यावसायिक, पारिवारिक एवम निजी कार्यों की बहुतायत, व्यस्तता और टाइट डेडलाइन्स की सीमित समयावधि में उन्हें पूरा करने की अत्यधिक जल्दबाजी और दबाव से दिन-ब-दिन परेशान रहते हैं। इस कारण वे सदैव चिड़चिडेपन और अकथ्य मानसिक पीड़ासे ग्रस्त रहते हैं।
बहुत सारे ऐसे भी लोग हैं जो कि निपट एकाकी जीवन जीने के लिये मजबूर हैं। ये लोग किसी से बात करने की कोशिश भी नहीं करते क्योंकि किसी के पास दूसरों को सुनने का समय या इच्छा नहीं होती है। रिश्तेदारों या पड़ोसियों की सपोर्ट सिस्टम या भावनात्मक समर्थन सहुलियत की कमी के कारण लोग निरंतर तनाव, अकेलापन और उदासी से पीड़ित हैं। लंबे समय तक तीव्र तनाव से मस्तिष्क में अनिद्रा और होर्मोनल असंतुलन पैदा होता है जिससे एंक्झायटी डिसॉर्डर (Anxiety disorder) पैदा होते हैं। लक्षणों के आधार पर इनका वर्गीकरण इस प्रकार किया गया हैं: जनरलाईझ्ड एंक्झायटी डिसॉर्डर (सामान्यक्रुत चिंता विकार), ओब्सेसीव कम्पल्सीव डिसॉर्डर (जुनूनी बाध्यकारी विकार), सोश्यल एंक्झायटी डिसॉर्डर (सामाजिक चिंता विकार) और पेनिक डिसॉर्डर (आतंकजन्य विकार)।
एंक्झायटी डिसॉर्डर (Anxiety disorder) निवारण के उपाय
- नियमित रूप से पर्याप्त नींद लें, क्यूंकि इसके अभावमें मस्तिष्क पूरी क्षमता से काम नहीं कर सकता। अनिद्रा से चिंता और डिप्रेशन का खतरा बढ़ जाता है।
- नियमित व्यायाम, योग और ध्यान करने से मस्तिष्क का सेरेब्रल कॉर्टेक्स मजबूत होता है। इसके उपरांत इनसे स्मृति, एकाग्रता और तर्क क्षमता विकसित होती है।
- अपने भितर आस्था और आत्म-विश्वास को जगाएं ताकि मजबूत मनोबल से जीवन की कठिनाइयों का सामना उचित रुपसे किया जा सके।
- कुछ अंतरंग मित्रता और रिश्तों को बनाएं रखें ताकि उनके समक्ष अपने मन की और गूढतम भावनाओं को खूलकर अभिव्यक्त करते हुए साझा किया जा सके।
- स्वयं की क्षमताओं का तटस्थ मूल्यांकन करके अपने व्यावहारिक लक्ष्यों और कार्यों की एक प्रायोरिटी लिस्ट अर्थात प्राथमिकता सूची बनाएं। एक साथ कई कार्य करने से बचें क्यूंकि मल्टी टास्किंग कारगर न हो तो एक साथ कई ऐसी व्यर्थ चिन्ताओं को जन्म देता है जिन्हें टाल देना जाना बेहतर साबित होता है ।
- सबसे ज्यादा चिंताजनक मसलों या प्रश्नों को सब से पहले निपटाने की आदत बना लें, क्योंकि उनसे बचने या उन्हें टालने की चेष्टा से परिस्थितियां अक्सर और खराब हो जाया करती हैं। सारी समस्याओं को छोटे-छोटे टुकड़ों में बांटकर उन्हें क्रमश; हल करने का प्रयास करें।
- अपनी एक निजि “वरी डायरी” अर्थात “चिंतानामा” बनायें और उसे नियमित निभायें।हर रात सोने से पहले इस डायरी में नोट करें कि किन चिंताओं ने आपको आज सबसे ज्यादा परेशान किया और उन्हें दूर करने के लिए आपने क्या किया । मन को तार्किक रूप से समझाने की कोशिश करें कि आपके भय और चिंतायें क्यूं निराधार है।
- चिंता दूर करने के लिए किसी सायकाट्रिस्ट की सलाह के बिना अपने मनसे ही कोई दवाई कभी न लें।
- कैफीन और अल्कोहल से दूर रहें क्योंकि ये कुछ पल की राहत के बाद चिंताओं और उद्वेगों को बढ़ा देते हैं।
- इन प्रयासों के बावजूद अगर कोई सुधार न दिखे, तो एक विशेषज्ञ, अनुभवी और विश्वसनीय सायकोलोजिस्ट से अवश्य परामर्श करें।
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