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क्या आपको डिप्रेशन (depression) है ? चिंता छोड़िए, मिलिए एक्सपर्ट से…

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इति शुक्ला, क्लीनिकल सायकोलोजिस्ट, स्टर्लिंग होस्पिटल, अहमदाबाद

डिप्रेशन (depression) से बाहर कैसे निकलें?

राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रम्प की फरवरी 2020 में भारत के आधिकारिक दौरे के दौरान, कोविड-19 के वैश्विक प्रसारकी बढ़ती चिंताओं के बीच, भारत और अमेरिका ने (depression) मानसिक स्वास्थ्य के क्षेत्र में सहयोग के लिए एक समझौता किया था जो वर्तमान स्थिति में दोनों देशों के लिये निहायत आवश्यक है। कुछ साल पहले, डिप्रेशन या अवसाद के मामलों में अमेरिका दुनिया में पहले स्थान पर था, जबकि अब भारत है! WHO द्वारा हाल ही में प्रायोजित एक अध्ययन के अनुसार, विश्वभ्ररमें डिप्रेशन का सबसे अधिक प्रचलन अब भारत में पाया जाता है, जहां करीब 36% लोग किसी न किसी मेजर डिप्रेसिव डिसॉर्डर के लिए इलाज ले रहे हैं,

जिनमें महिलाओं की संख्या पुरुषों से दोगुनी हैं। चिन्ता की बात यह है कि यह संख्या समग्र देशमें डिप्रेशन (depression) से वास्तवमें जूझ रहे लोगों की कुल संख्या का एक बहुत ही छोटा हिस्सा हैं। आजकी एक गंभीर वास्तविकता यह है कि भारतमें इलाज लेनेवालों की बनिस्बत इलाज न पानेवाले डिप्रेशन पिडितों की संख्या कहीं ज्यादा बडी है, जो कि और भी बडी चिन्ता का विषय है क्यूंकि अनुपचारित डिप्रेशनके पिडित असहनीय मानसिक पीड़ा के चलते अक्सर आत्महत्या की ओर बढ जाते हैं। डिप्रेशन से होनेवाली आत्महत्याओं का उच्चतम दर भी अब भारतमें ही पाया जाता है ।

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लेकिन डिप्रेशन (depression) का एक आशाजनक पहलु यह भी है कि किसी व्यक्ति में इसके लक्षण अगर परिवार, मित्र या सहयोगी द्वारा पहचान लिये जाएं तो उसे, किसी अच्छे मनोवैज्ञानिक या मनो चिकित्सक की मदद से, भयंकरअवसाद की गर्ता में डूबकर आत्महत्या करने से बचाया सकता है। उचित समय पर उचित उपचार किसी भी पिडित को डिप्रेशन से न केवल उबार सकता है, वरन उसे सामान्य जीवन जीने के लिये पून: समर्थ बना सकता है। इसी लिये डिप्रेशन के खतरों से अनजान लोगों में इसकी जागरुकता खडी करना अत्यंत आवश्यक है।

इसी हेतु कुछ समय पहले प्रतिष्ठित फिल्मस्टार दीपिका पादुकोण ने जाहिर किया था कि वे स्वयं एक बहुत ही तीव्र डिप्रेशन से पिडित हुई थीं और कैसे उचित उपचार से इससे बाहर आ सकी थीं।उन्होंने इस बात पर खास जोर दिया था कि डिप्रेशन से पीड़ित लोग अपनी विशेष स्थिति और आवश्यकता को पहचानें और, अपने मानसिक स्वास्थ्य के हितमें, निजि शर्म और संकोच से उबर कर, मदद के लिये आगे आयें यह निहायत जरुरी है।

स्वयं का उदाहरण देते हुए उन्होंने कहा था कि इस तरह की पहल करना एक व्यक्ति की मानसिक शक्ति का द्योतक होती है, न कि किसी मानसिक कमजोरी का। पिडित व्यक्ति और उसके परिवार जन अक्सर सामाजिक टिका-टिप्पणी या “लोग क्या कहेंगे” के भयसे किसी मनोवैज्ञानिक या के पास जानेसे कतराते हैं, जिस कारण उनकी समस्या का उपचार नहि हो पाता और उनकी हालत बद से बदतर होती जाती है। इसी लिये हमें सर्वत्र यह जागरुकता जगानेकी जरुरत है कि शारीरिक बिमारी के लिये जिस सहजता और आत्मविश्वासके साथ लोग डोक्टर के पास चले जाते हैं उसी तरहसे मानसिक अस्वस्थता की स्थितिमें भी योग्य इलाज के लिये विशेषज्ञ के पास जाना ही चाहिये।

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डॉ राजेश सागर, सचिव, एम्स, नई दिल्ली, और सेंट्रल मेंटल हेल्थ अथॉरिटी के मनोचिकित्सा के प्रोफेसर के अनुसार अधिकतर भारतीयों के लिए मानसिक समस्याओं के लिये सहायता प्राप्त करना अभी भी वर्जित, शर्मनाक और कलंकजनक माना जाता है। डिप्रेशन जैसी मानसिक समस्याओं के उपचारके लिए सभी बिना किसी हिचकिचाहट के आगे आ सकें उसके लिए सही माहौल बनाना बहुत जरुरी है। इसी कारण हम सभी के लिए यह समझना बहुत महत्वपूर्ण है कि डिप्रेशन क्या है और इसे कैसे रोका जाए ? 

डिप्रेशन क्या है? 

जीवन संघर्ष के दौरान अप्रत्याशित झटकों या हार की स्थितिमें हर व्यक्ति बडी हताशा का अनुभव करता है, जिसमें मानसिक आघात की साहजिक प्रतिक्रियाओं के तौर पर उसे एकाएक तीव्र उदासी का अनुभव होता है, लेकिन डिप्रेशन में जो मनोव्यथा होती है वह इतनी जबर्दस्त होती है कि व्यक्ति एक तरहसे विवश हो जाता है। उसके दैनिक जीवन में इसका बहुत गहरा कुप्रभाव होता है, जिसके फ़लस्वरुप उसकी खाने-पीने, सोने और आनन्द लेने में अभिरुचि तथा अध्ययन या ओफ़िसका रुटिन कार्य करनेकी क्षमता एकदम कम हो जाती है। वह लगातार असहाय, निराश और निरर्थक महसूस करता है।यदि 21 दिनों तक कोइ व्यक्ति इस अवस्थामें लगातार बना रहता है तो उसे क्लिनिकल डिप्रेशन होने की संभावना हो सकती है, जिसके निदान और उपचार के लिये निम्नलिखित कदम लिये जा सकते हैं:

  • पहला कदम है यह स्वीकार करना कि व्यक्ति को अवसाद की समस्या है ।
  • दूसरा कदम है यह पता लगाना कि क्या उसे वास्तवमें डिप्रेशन है ?
  • डिप्रेशन के इलाज के लिए कहां कहाँ, किससे और कैसे मदद लें?
  • क्या केवल काउंसलिंग या परामर्श के जरिए इसे ठीक किया जा सकता है? 
  • क्या इसे ठीक करने के लिए दवा की भी जरूरत है?
  • डिप्रेशन को रोकने के लिए क्या कदम लिए जायें और पिडित की सहायता कैसे करें? 
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डिप्रेशन के लक्षण

यदि निम्न लक्षण 3 हफ़्तोंसे ज्यादा लंबे समय से हैं, तो डिप्रेशन होने की संभावना ज़्यादा रहती है। जब ये लक्षण इतने जबरदस्त हों कि व्यक्ति पूर्णतया विवश और असहाय महसूस करने लगे, तो समझें कि यह मदद लेने का समय है।

  • लगातार निराशा और लाचारी का अनुभव
  • दोस्तों से मिलने में कोई रूचि ही न रहे 
  • दैनिक गतिविधियों को पूरा करने में कोई दिलचस्पी न रहे
  • हर समय थकान लगे
  • रातोंको बार-बार नींद उड़ जाए अथवा नींद ही न आए 
  • भूख बहुत कम हो जाए, कुछ भी खाने को मन ही न करे 
  • पढ़ाई करने में या ओफिसमें अपना ऱुटिन कार्य करने में असमर्थता
  • बिना किसी कंट्रोल के बुरे और नकारात्मक विचार लगातार आते ही रहें
  • अत्यधिक चिड़चिड़ापन; बात-बातमें भड़क जाना

डिप्रेशन से बाहर कैसे निकलें? 

  • पारिवारिक और सामाजिक समर्थन बहुत महत्वपूर्ण है। परिवार के सदस्य के साथ अपनी भावनाओं को साझा करना बहुत मददगार हो सकता है।
  • जीवनशैली में बदलाव बहुत उपयोगी हो जाते हैं, जैसे नियमित व्यायाम, संगीत सुनना।
  • भावनात्मक कौशल विकसित करना बहुत महत्वपूर्ण हैं, जैसे कि सकारात्मक आत्म-प्रोत्साहन (पोझिटिव ओटो-सजेशन) करना, प्रेरणादायक विचारों-विवरणों को पढ़ना और सुनना।
  • एक अनुभवी पेशेवर सायकोलोजिस्ट की मदद लेना बहुत महत्वपूर्ण है ताकि दवाओं के अलावा, काउंसलिंग सेशन के जरिये व्यक्ति में  डिप्रेशनकी रोकथाम की समझ और कौशल विकसित हो सके। 

डिप्रेशन का एक क्लासिक केस  

मानसी, 32, एक बड़ी मल्टीनेशनल कंपनी में एक एक्झीक्युटीव है, जो8 महिनों पहले तलाक के बाद एक छोटे अपार्टमेंट में रह रही है। 6 महीने पहले, एक रात उसकी नींद उड़ गई और वह बेचैन हो उठी और अचानक रोने लगी । निपट अकेले रहना, तनाव पूर्ण वातावरण में काम करना तथा तलाक की पिडामय भावनात्मक उथल पुथल से गुजरना – उसके  मानसिक स्वास्थ्य पर आखिरकार इन सबका विनाशकारी प्रभाव पड़ा था। कई हफ्तों से  मनमें बहुत नकारात्मक विचार आते रहे थे, जिनसे निजात पाने के लिये उसने कई बार आत्महत्या  करने की भी सोची थी। 

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एक दिन उसने महसूस किया कि अपनी गंभीर मानसिक समस्याओंके उपचार के लिए उसे एक पेशेवर सायकोलोजिस्ट की सख्त जरूरत थी। पता लगाकर वह मेरे पास आई। वह लंबे  समय से डिप्रेशन से पीड़ित थी। उसे अपनी अंतरंग भावनाओं और अनुभवों को एक विश्वसनीय  मित्र के साथ साझा करने की सलाह दी गई । उसे अपनी अव्यक्त आंतरिक मनोव्यथा और भावनाओं को केथार्सिस के जरिये बाहर निकालने की आवश्यकता थी.

क्योंकि मानसिक समस्याओं कोहल करने में कैथारिस प्रक्रिया बहुत महत्वपूर्ण भूमिका निभाती है।कुछ काउंसलिंग सेशन में ही उचित मार्गदर्शन से उसने अपने कार्यों की असरदार प्राथमिकता सूचि बनाना, एक स्वस्थ दैनिक कार्यक्रम विकसित करना, मनोरंजन के लिए समय निकालना, व्यायाम करना और अपने मन को शांत करने के लिए  आवश्यक गतिविधियाँ करना सीख लिया । केवल 1 महीने में उसके भितर जीने के लिए आत्मविश्वास और उत्साह फ़िरसे जाग उठा और उसकी  मनोस्थिति  में जबरदस्त सुधार हुआ। समय पर निदान और डिप्रेशन के उपचार से उसका जीवन नाटकीय रूप से बदल गया । 

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