Cyclone tauktae: चक्रवाती तूफ़ान, तौकते भी साफ़ तौर पर जलवायु परिवर्तन की पहचान

Cyclone tauktae:लगातार चौथे साल अरब सागर में आया चक्रवाती तूफ़ान, तौकते भी साफ़ तौर पर जलवायु परिवर्तन की पहचान


निशान्त, लखनऊ

Cyclone tauktae: फ़िलहाल जो तौकते नाम के तूफ़ान से जाना जा रहा है, अगले कुछ घंटों में “गंभीर चक्रवाती तूफान” की शक्ल ले सकता है, ये कहना है भारतीय मौसम विभाग का । इस बात का भी अंदेशा है कि यह गंभीर चक्रवाती तूफ़ान मंगलवार तक गुजरात तट से टकरा सकता है।

बाहरहाल, यह तूफ़ान दरअसल जलवायु परिवर्तन की चीख ही है क्योंकि लगातार चार सालों से अरब सागर में, मानसून से पहले, भीषण चक्रवाती तूफ़ान जन्म (Cyclone tauktae) ले रहे है। फ़िलहाल यह तूफान मज़बूत होता जा रहा है और अपनी गति से गुजरात एवं केंद्र शासित प्रदेश दमन-दीव एवं दादरा-नगर हवेली की ओर बढ़ रहा है। इस तूफ़ान ने रौद्र रूप धारण कर लिया है और गुजरात और महाराष्ट्र के तटीय इलाकों में तमाम अस्पतालों से कोरोना के मरीजों को किसी भारी आपदा के डर से  सुरक्षित स्थानों पर ले जाया गया है।

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भारत मौसम विज्ञान विभाग ने रविवार को जारी अपनी चेतावनी में यह साफ़ कर दिया था कि तौकते तूफान के 17 मई की शाम तक गुजरात तट पर पहुँच सकता है और 18 मई को तड़के पोरबंदर और भावनगर जिले में महुवा के बीच से गुजरात के तट को पार करेगा। गुजरात और दमन एवं दीव के लिए भी येलो अलर्ट जारी किया गया है। तौकते के कारण कर्नाटक में तमाम घर और नावें के साथ सैकड़ों बिजली के खंभे और पेड़ गिर चुके हैं।

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जलवायु वैज्ञानिक और आईपीसीसी की मुख्य लेखिका, डॉ रोक्सी कोल इस तूफ़ान के कारण को समझाते हुए बताती हैं, “अरब सागर कभी ठंडा हुआ करता था, लेकिन अब यह एक गर्म पानी के कुंड सा हो गया है – जिसकी वजह से वो तीव्र चक्रवातों के लिए कारण बनता है। ट्रोपिकल या उष्णकटिबंधीय चक्रवात गर्म पानी से अपनी ऊर्जा खींचते हैं और यही कारण है कि वे गर्म पानी के ऐसे क्षेत्रों में बनते हैं जहां तापमान 28 डिग्री सेल्सियस से ऊपर होता है।”

जलवायु परिवर्तन के दुष्प्रभावों की ओर साफ़ इशारा करते हुए रॉक्सी कहती हैं, “उपग्रह युग (1980 के बाद) में पहली बार, लगातार 4 वर्षों (2018, 2019, 2020, और 2021) में प्री-मानसून सीज़न (अप्रैल-जून) में अरब सागर में चक्रवात दिखाई दे रहा है।” फ़िलहाल मौजूदा हालात एक बड़ी तस्वीर को दिखा रहे हैं – मतलब, उष्णकटिबंधीय महासागरों के किसी भी अन्य क्षेत्र की तुलना में पश्चिमी उष्णकटिबंधीय हिंद महासागर एक सदी से भी अधिक समय से तेज़ी से गर्म हो रहा है और वैश्विक औसत समुद्री सतह के तापमान (एसएसटी) में समग्र प्रवृत्ति में सबसे बड़ा योगदानकर्ता बन गया है।

साल 1901 से 2012 के बीच, जहाँ हिंद महासागर में 0.7 डिग्री सेल्सियस की वृद्धि हुई वहीँ पश्चिमी हिंद महासागर ने खास तौर ग्रीष्मकालीन एसएसटी में 1.2 डिग्री सेल्सियस की विषम वृद्धि का अनुभव किया गया। बाकी उष्णकटिबंधीय गर्म पूल क्षेत्र के मुकाबले, आम तौर पर ठन्डे रहने वाले पश्चिमी हिंद महासागर का गर्म होना क्षेत्रीय एसएसटी ग्रेडियेंट को बदल देता है। साथ ही यह न सिर्फ यह एशियाई मानसून को बदलने की क्षमता रखता है बल्कि जैविक रूप से उत्पादक क्षेत्र में समुद्री खाद्य जाल को भी बदल सकता है।

फ़िलहाल इस बात के पूरे सबूत हैं कि इस स्थिति में ग्रीनहाउस वार्मिंग का प्रत्यक्ष योगदान है और गर्मियों के दौरान पश्चिमी हिंद महासागर में दीर्घकालिक वार्मिंग प्रवृत्ति के लिए एल नीनो करेंट और एसएसटी में हो रही बढ़त एक कारक है। (डिस्क्लेमर: ये लेखक के निजी विचार हैं.)

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