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A difficult daughter-in-law: एक मुश्किल बहू को कैसे संभालें?

बहू जिद्दी हो तो ससुराल वालों की हालत बहुत खराब हो जाती है। उसके सहयोग के बिना वे अपने पुत्र और उसके बच्चों से न तो ठीक से मिल पाते हैं, न बात कर पाते हैं। कुछ तो ऐसी दयनीय हालत में होते हैं कि अगर बहू न चाहे तो वे उन्हें देख तक नहि पाते ।  इसका प्रभाव बहुत गहरा और दूरगामी होता है। बहू यदि जिद्दी और कठोर स्वभाव की हो तो उसका पति, अक्सर चाहकर भी, अपने माता-पिता के लिए हस्तक्षेप नहीं कर पाता।

जीवनसाथी के प्रति प्राथमिक निष्ठा की कानूनन और सामाजिक आवश्यकता और अपेक्षाओं के प्रचंड दबाव से अभिभूत होकर वह अपनी पत्नी की इच्छाओं का पालन करने के लिए मजबूर हो जाता है। कई बहूएं तो अलग हो जाने के बाद सास-ससुर के साथ किसी भी तरह का संपर्क रखने से भी इनकार करती हैं। ऐसेमें वीक-एन्ड पर या छुट्टियोंमें, बच्चोंको उनके दादा-दादी से मिलाना हो तो बेचारे पतिको उन्हें अकेले ही उनके पास ले जाना पडता है जबकि उसकी पत्नी- एकदम फ़्री होते हुए भी- अपने खुदके घर में अकेले में आराम करना प्रिफ़र करती है।

मुश्किल बहूओं के ऐसे व्यवहार के कारणों को समझना एक जटिल पहेली की तरह होता है। संभव है कि का उनके प्रति व्यवहार या रवैया इतना आपत्तिजनक रहा हो कि उसे उनके साथ संपर्क करनेमें डर लगता हो। लेकिन वास्तवमें ऐसा बहुत कम पाया जाता है। अधिकांश तो यही देखा जाता है कि उम्र-दराज इन-लोझ अपने बेटा-बहू और उनके बच्चों को साहजिक निष्ठा एवं उत्कटता से चाहते हैं और उनके साथ घनिष्ठ संपर्क रखने को उत्सुक और प्रयत्नशील रहते हैं।

उन्हें बदले हुए जमाने के हिसाबसे खुदको ढालने की आवश्यकता का एहसास होता है, जिसके चलते वे स्वयं अपने व्यवहार तथा अपेक्षाओं में बहुत समझौते भी करते हैं। उनकी तमाम प्रमाणिक कोशिशों के बावजूद, अगर बहू की ओरसे अनुकूल प्रतिभाव और सहयोग न मिले तो वे समझ जाते हैं कि उन्होंने तो बहू को दिलसे अपना लिया है मगर उसने उन्हें न तो अपनाया है और न ही अपनाना चाहती है ! उसे तो केवल अपने पतिसे मतलब है, उसके माता-पितासे उसे कोई सरोकार नहि है। जाहिर है कि बूढापेमें यह एहसास कितना डरावना हो जाता है।

आमतौर पर एक मुश्किल बहू के लक्षण शादी की प्रारंभिक अवस्था में ही स्पष्ट हो जाते हैं।(A difficult daughter-in-law) झगड़ालू परिवारों में पली-बढ़ी लड़कियों में शादी के बाद अपने माता-पिता के उदाहरण का अनुसरण करने की संभावना अधिक रहती हैं। इसके अलावा जो युवतियां शादी से पहले मनमाना जीवन जीने की आदी हैं,  जो एकाकी और घमंडी हैं, और जिनके माता-पिता या भाई-बहनों के साथ हमेशा बड़े मनभेद या मतभेद रहे हैं,  वे शादी की शुरुआत से ही इन-लोझ के साथ घनिश्ठता की स्थापना होने ही नहि देतीं। बडी सिफ़तसे वे पतिको यह बात समझा देती हैं कि अगर वह उसके साथ सुखसे दाम्पत्य जीवन जीना चाहता है तो उसे अपने माता-पितासे दूर ही रहने देना होगा। 

मुश्किल बहूओं में यह विशेषता देखी जाती है कि वे पति के सिलेक्शन के मामले में कुछ ज्यादा ही स्मार्ट होती हैं। चतुराई से वे ऐसे युवक का ही चयन करती हैं जो अच्छे केरियर प्रोस्पेक्ट्स और सोश्यल बेकग्राउंड के उपरांत, अत्यधिक नर्म-दिल,  फ़्लेक्षिबल अर्थात लचीला और समाधानकारी स्वभाव का हो जिसे वे आसानीसे अपनी इच्छाओं के अनुसार ढाल सके । शादी के बाद, जब वह इन-लॉस के साथ रहने या संबंध बनाए रखने से इनकार करती है, तो ऐसा पति ज्यादा विरोध नहि कर पाता।  

A difficult daughter-in-law
Pic credit: social media

वह एक समझौतावादी रवैया अपनाते हुए उसकी सभी मांगों का स्वीकार कर लेता है, और “सब की भलाई का खयाल रखते हुए” ऐसा इंतजाम ढूंढ लेता है कि उसकी पत्नीका उसके माता-पिता से कम से कम संपर्क हो और वह उनका भी यथासंभव ध्यान रख सके। ऐसे में बेचारे माता-पिता, बिना किसी अपराध के, अपने पुत्र और उसके परिवार के साथ रह पाने से वंचित हो जाते हैं और अकेले रहने पर मजबूर हो जाते हैं। यह एक बहुत नाजुक और चिंताजनक स्थिति होती है, मगर एक मुश्किल बहू को संभालने के लिए निम्नलिखित प्रयास तो संनिष्ठतापूर्वक अवश्य किए जा सकते हैं जिसका मूल मंत्र है “लघुत्तम अपेक्षा, महत्तम अनुकूलन” अर्थात अपेक्षाएं कम-से-कम की जाएं और समाधानकारी अनुकुलन ज्यादा-से-ज्यादा ।

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मुश्किल बहू को संभालने के लिए कुछ उपयोगी टिप्स (A difficult daughter-in-law)

  1. अपने परिवार में उसकी भूमिका को पहचानें। आपकी बहू अपने घर की “गृह मंत्री” है। अपने विवेक के अनुसार उसे अपने बच्चों के संबंध में सभी निर्णय लेने का पूरा हक है। उसका अपना एक व्यक्तिगत और विशिष्ठ कार्य क्षेत्र है जिसकी मर्यादा का उल्लंघन आपसे न हो जाए  इसका विशेष ध्यान रखने की आपको आवश्यकता है। उसकी सत्ता, स्वतंत्रता और स्वायत्तता को स्पष्टता से समझें और स्वीकार करें ताकि इगो के इश्यूझ अर्थात अहंकार के टकराव के मुद्दे उठने ही न पाएं। आप यह दूराग्रह न रखें कि वह घर या परिवार को ठीक वैसे ही चलाए जैसे कि आपने हमेशा चलाया है। आप स्वयं उसे अपनी समझ और मर्जी के मुताबिक सब कुछ करने दें। इसके लिये आपको खुद ही छोड देना सीखना होगा।
  • कभी भी उसकी तुलना अपनी बेटी या परिवार/ पडौस की अन्य बहू से न करें।
  • अपने मतभेदों को जल्द से जल्द सुलझाएं। हर घरमें किसी न किसी बात पर मत-मतांतर तो होते रहते है, लेकिन उन्हें बिना किसी विलंबके सुलझा लिया जाए यह बहुत जरुरी होता है।ऐसेमें आपको चाहिए कि अपने सौहार्द्रपूर्ण व्यवहारसे बहू को यह एहसास दिलाएं कि आप उसके हितैषी हैं और उसे दिलसे चाहते हैं। उसे महसूस होना चाहिए कि उसके साथके मतभेदों को ठीकसे सुलझाने की आप पूरी कोशिश करेंगे ।
  • उसके जीवन में एक सुखद शक्ति बनने की कोशिश करें। जब आप साथ हों तो सुखद चीजों पर चर्चा करें। जरूरत पड़ने पर स्वयं आगे बढकर उसकी मदद करें। उसके तनाव और संघर्ष में उसे भरपूर सपोर्ट और समर्थन दें। आपके पोझीटीव अभिगम और सहायक चेष्टाओंसे वह आपकी उपस्थिति में सहजता, सहूलियत और सुरक्षितता महसूस करेगी, जिससे आपके बीच अच्छे संबंधों की संभावना बढ़ जाएगी।
  • अपने अंदर प्रोब्लेम-सोल्विंग एप्रोच अर्थात समस्या-समाधानकारी रुझान को विकसित करें। जब भी आप दोनों के बीच कोई समस्या हो, तो उसके समक्ष शांत स्वर में अपनी चिंता को व्यक्त करते हुए उसे बताएं कि  आपको उसकी इच्छा और भलाई का पूरा खयाल है और इसी लिये यह जरुरी है कि दोनों मिलकर मौजुद समस्याको कैसे हल किया जाए उसकी चर्चा करें और ऐसा मार्ग ढूंढ निकालें जिससे वह भी संतुष्ट हों और प्रश्न का निराकरण भी हो जाए।
  • आप दोनों के बिच बात-चीत के द्वार हमेशा खुले रखें। आपकी बहू जब किसी बात पर रुठ जाए और बात करना बंद कर दे, तब स्वयं शांत रहें और उसके मूड या मिजाज के बदलने की धैर्यपूर्वक प्रतीक्षा करें। इस बीच, जब भी आपको जरूरत महसूस हो, उसे प्यार से बुलाएं और दिखाएं कि आपके मनमें उसके लिए सारे रास्ते खुले है। उम्मीद बनाए रखें कि वक्त के साथ उसका दिमाग ठिकाने पर आ जाएगा।
  • याद रहे कि उसकी अपनी एक व्यक्तिगत जीवन शैली है जिसके मुताबिक जीने का उसे पूरा अधिकार है। घर के रख-रखाव या उसके ऑफिस या व्यवसाय से संबंधित किसी भी बात या पहलु पर उसकी आलोचना न करें। उसके निजि दायरे की सीमाओं का उल्लंघन कभी भी न करें। एक पत्नी या माता के तौर पर उसके द्वारा लिए गए किसी भी निर्णय के खिलाफ़ ऐसा कुछ भी न कहें जिससे उसे बुरा लगे।
  • दोनों के कोमन इन्टरेस्ट की कुछ ऐसी मज़ेदार प्रव्रुत्तियां/ गतिविधियाँ खोज लें जिन्हें आप दोनों एक साथ मिलकर कर सकें। परस्पर आनंददायक और समान हितों की गतिविधियां एकसाथ करनेसे आपका रिश्ता ज्यादा सुखद और मजबूत हो सकेंगा।
  • उसे बिना किसी शर्त के बिल्कुल अनकन्डीशनली स्वीकार करें। आपके लाडले बेटे की पत्नी के रूप में, वह आपके पूरे प्यार और सम्मान की पात्र है। उसमें जो भी दोष या त्रुटियां हो, उन्हें नज़रअंदाज करें और उसे संपूर्णत: वैसे ही स्वीकार करें जैसी कि वह है।
  1. सभी प्रयासों के बावजूद, यदि समस्याएं बनी रहती हैं, तो बेहतर होगा कि बिना और देर किए, किसी अच्छे प्रोफ़ेश्नल सायकोलोजिस्ट को कन्सल्ट किया जाए और व्यक्तिगत तथा फ़ेमिलि काउन्सेलिंग सेशन्स के जरिये अपनी विशिष्ठ समस्याओं का समय पर समाधान पाया जाए ।

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