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Master Stroke for Modi Government: तीनों कृषि कानूनों की वापसी मोदी सरकार के लिए साबित हो सकता है ‘मास्टर स्ट्रोक’

Master Stroke for Modi Government: तीनों कृषि कानूनों की वापसी मोदी सरकार के लिए साबित हो सकता है ‘मास्टर स्ट्रोक’ जानें इस निर्णय के पीछे क्या हो सकती है मुख्य वजह

✍️ पूजा सिंह

Master Stroke for Modi Government: साल 2021 में 19 नवंबर का दिन हमेशा याद किया जाएगा क्योंकि इसी दिन मोदी सरकार ने लंबे समय से चले आ रहे विरोध को खत्म करने के लिए तीनों कृषि कानूनों को वापस लेने का फैसला किया। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी से ऐसे निर्णय की अपेक्षा शायद ही किसी को रही होगी। प्रत्येक वर्ष की तरह इस बार भी सभी के दिमाग में यही था कि पीएम गुरु नानक देव की जयंती के दिन गुरुद्वारे जाएंगे, लेकिन हुआ इसके उलट। लोगों ने ठीक से आंख भी नहीं खोली थी कि खबर आती है कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी देश को संबोधित कर रहे हैं।

सुबह करीब 9 बजे के आस-पास प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने देश के नाम संबोधन शुरू किया। जैसे ही पीएम ने क्षमा मांगते हुए कहां कि किसानों के कुछ तबके को वह समझाने में असमर्थ रहे हैं, जिसके चलते देश हित में सरकार तीनों कृषि कानून वापस लेती है। फिर क्या था, मानों सभी अचंभित हो गए। क्योंकि करीब एक साल से किसान इस बिल के खिलाफ दिल्ली के बॉर्डरों समेत देश के कई हिस्सों में आंदोलन कर रहे हैं। इतना ही नहीं सरकार और किसान दलों की बैठक कई बार हो भी चुकी है, लेकिन वह असफल रही है। ऐसे में एक तरफ जहां विपक्ष इसे अहंकार की हार बता कर किसानों की जीत करार दे रहा है वहीं सत्ताधारी इसे सरकार का बडप्पन बता रही है।

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✍️ पूजा सिंह, पत्रकार दिल्ली

इसके अलावा कई राजनीतिक विशेषज्ञ इसे भाजपा का मास्टरस्ट्रोक भी बता रहे हैं। क्योंकि अगले साल पांच राज्यों में विधानसभा चुनाव होने हैं, ऐसे में भाजपा किसी भी कीमत पर खासकर यूपी-पंजाब में जीतना चाहती है। यानी इस फैसले को राजनीतिक समीकरण से भी जोड़ा जा रहा है और ऐसा होना भी ठीक कहा जा सकता है क्योंकि इतने लंबे समय के बाद प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने इस तरह का फैसला लेकर ये साबित कर दिया कि लोकतंत्र में कुछ भी हो सकता है। वहीं सरकार के इस फैसले के बाद शासन पर सवाल खड़ा होता है कि बिना जमीनी हकीकत को जानें आपने ऐसे कानून को पास किया जिसको आज फिर आपको वापस लेने पर मजबूर होना पड़ा। इतना ही नहीं सरकार के निर्णय लेने की क्षमता पर प्रश्न उठता है। क्योंकि आप अपने ही फैसले को नकारते हुए लोगों के सामने क्षमाप्रार्थी हैं।

इसके अलावा इस फैसले को मास्टर स्ट्रोक समझना भी गलत नहीं होगा। क्योंकि अगले साल होने वाले विधानसभा चुनाव से पहले ही भाजपा की छवि धूमिल हो रही है। पिछले दिनों लखीमपुर में जिस तरीके से केन्द्रीय मंत्री अजय मिश्र के बेटे पर किसानों के ऊपर गाड़ी चढ़ाने का वीडियो सोशल मीडिया पर देखा गया उसके बाद भाजपा बैकफुट पर नजर आ रही थी। खासकर पश्चिमी उत्तर प्रदेश में भाजपा अपने आपको पीछे होते देख रही थी। विपक्ष लगातार इस मुद्दें को लेकर भाजपा पर हमलावर रही।

इतना ही नहीं सभी विपक्षी पार्टियां को भाजपा के खिलाफ एक मजबूत मुद्दा मिल गया था। वहीं इस किसान आंदोलन के चलते पंजाब में भाजपा से अकाली दल ने अपना रिश्ता तोड़ लिया था। ऐसे में कृषि कानून की वापसी के दूरगामी परिणाम आगामी विधानसभा चुनाव में भी जरूर देखने को मिल सकते हैं। कुछ हो या ना हो लेकिन इस आंदोलन के चलते पंजाब और यूपी को अपने हाथों से खिसकते हुए भाजपा कतई नहीं देख पाती। क्योंकि भाजपा को पिछले दिनों हिमाचल प्रदेश में उप-चुनाव में मिली हार और आंदोलन के चलते बने उसके खिलाफ महौल को भांपते हुए यह कदम उठाया।

इसके बाद अब माना जा रहा है कि पंजाब का अकाली दल और कांग्रेस से नाराज होकर अलग हुए पंजाब के पूर्व सीएम कैप्टन अमरिंदर सिंह भाजपा के साथ खड़े हो सकते है, जिससे पंजाब में कांग्रेस की राह मुश्किल हो सकती है। हालांकि, कांग्रेस हर जगह अपने आंतरिक कलह से ही परेशान है क्योंकि पहले अमरिंदर सिंह को सीएम पद से हटाना उसके बाद राजस्थान में सचिन पायलट और मुख्यमंत्री अशोक गहलोत की तनातनी के बीच कैबिनेट फेरबदल करने का फैसले के साथ पिछले दिनों छत्तीसगढ़ में मुख्यमंत्री भूपेश बघेल और टीएस सिंह देव की कलह बहुत बड़ा फैक्टर है।

इसके अलावा हाल ही में कांग्रेस पंजाब अध्यक्ष नवजोत सिंह सिद्धू का करतारपुर कॉरिडोर जाकर फिर से पाकिस्तान की प्रशंसा करना पार्टी को रेस में और भी पीछे करने का संकेत है। खैर, टक्कर की लड़ाई में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी किसी भी फैक्टर में पीछे नहीं रह सकते हैं।

इसके अलावा अंतरराष्ट्रीय स्तर पर भी किसानों के आंदोलन की गूंज पहुंची थी, जिसके चलते भाजपा की छवि खराब हुई थी। ऐसे में कुल मिलाकर मोदी सरकार यह फैसला कई मायने में चुनावी फैक्टर के अलावा अपनी छवि को धूमिल होने से बचाना भी था। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी द्वारा उनके संबोधन में कहे शब्द ‘देशहित में कानून वापस लिया गया फैसला’ कई मामले में सही हो सकते हैं। जैसे ही पीएम ने कहा कि देशहित में यह कानून वापस लेना पड़ रहा है। तो इससे ये नकारा नहीं जा सकता है कि किसानों की आड़ में इस आंदोलन को भारत में दंगे कराने के लिए भी इस्तेमाल किया जा रहा है। हो ना हो सरकार ने सही समय रहते यह भांप लिया था कि इस कानून की आड में होने वाले परिणाम बेहद घातक साबित हो सकते हैं। (यह लेखक के अपने निजी विचार है।)

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