Didi lata ki yaad me: ऐ दीदी लता मंगेशकर वापस आ जा इस दुनिया में…

!! ऐ दीदी लता !!(Didi lata ki yaad me) Didi lata ki yaad me: ऐ दीदी लता मंगेशकरवापस आ जा इस दुनिया मेंक्यों चलें गए हमें छोड़ ?तेरे बिना जीना … Read More

Sarswati Puja: गूंज उठी भुवन में, ज्योति जली सकल अविनाशी

गूंज उठी भुवन में ( काव्य ) सरस्वती पूजा (Sarswati Puja) के शुभ अवसर पर Sarswati Puja: गूंज उठी भुवन में, ज्योति जली सकल अविनाशीसुर सुर सुरेश्वरी, दसो दिशाओ में … Read More

Kavya: इस मिट्टी में वों सुगन्ध कहाँ अब ?: वरुण सिंह गौतम

!! कहर उठी उर में !!(Kavya) Kavya: इस मिट्टी में वों सुगन्ध कहाँ अब ?जब राम कृष्ण बुद्ध की बेला थीकहते वों देश काल के स्वयं प्राणभारत माँ बिखर गई … Read More

Lahar: सुख – दुःख की क्या खींचती व्यथाएँ ? बढ़ – बढ़ लौटती आँगन की जैसी छाया !

शीर्षक :- लहर (Lahar) Lahar: रात गुजर रही मेरे साथचहुँओर दिखा राख – सी चित्रमानो दे रहा कोई संदेशप्रत्याशा है जैसे झींगुर राग घट के दिशा – दिशा तिरती पवनेंमन्द … Read More

Kavya: सान्ध्य बीती जैसे जीवन नूर की नैया बहती रेत – सी पीछे छुटती छैया

!! महोच्चार जाग्रत उर में !! (Kavya) Kavya: सान्ध्य बीती जैसे जीवन नूर की नैयाबहती रेत – सी पीछे छुटती छैयातस्वीर बन रचती जैसी हो शशि रागबन , मुरझा उठीं … Read More

Hind himalay: हिन्द हिमालय के तस्वीर रचाएँ जग में: वरुण सिंह गौतम

Hind himalay: हिन्द हिमालय के तस्वीर रचाएँ जग मेंकर शृंगार खड़ी धरती निहारती अरुण के पथ सतरंगी इन्द्रधनुष रचे अम्बर के कोने मेंकोटि – कोटि नमन करें हम मातृभूमि की … Read More

Watan meghvarna si: भारत ! कोई मुझसे पूछा, आखिर क्या है यह ?: वरुण सिंह गौतम

!! वतन मेघवर्ण – सी…..!! (Watan meghvarna si) Watan meghvarna si भारत ! कोई मुझसे पूछा , आखिर क्या है यह ?मैं असमंजस में ठहरा , त्वरित गया इति के … Read More

Varun Singh Gautam: फूल बरसे या चन्द्रहास, कौन कहें फिर कोमल या तेज धार…..

!! बहुरि अकेला भव में !! नव्य शैशव हुए कितने वीरानप्लव – प्लव – प्लावित मायाअब इस पुलिन की क्या कसूर ?जग – जग हुँकार अब भी त्राण कौन सुने … Read More

गुमनाम पतझड़ के (Gumnam Patajhad ke)

मै गुमनाम बन चला इस पतझड़ के (Gumnam Patajhad ke)किस करीनों से कहूँ क्या गुमशुम व्यथाएँ ?तस्वीर भी टूटी किस दर्रा में फँसी जाखोजूँ , विकलता के किस ओर गयी … Read More

Thoughts of writer: यह तड़प नहीं, विडंबना है, जो हर कोई ढोंग कर ही लेता है इस तमाशा में…

चक्रव्यूह रक्तोच्चार अँधेरे की लपटों छाया में घिराउजालों का आतम था न बिखराकिस – किस रन्ध्रों में ढूढ़ते थे कभी ?क्या , कभी , किसी को न मिला कभी ?बढ़ … Read More