Swami Vivekanand: जग उठी है पूर्व की किरणें गिरी धो रही अँचल काया

Swami Vivekanand: सज रही कुन्तल (स्वामी विवेकानंद की स्मृति में) Swami Vivekanand: जग उठी है पूर्व की किरणेंगिरी धो रही अँचल कायाक्षितिज कोने से देखो वसन्तकरता पदवन्दन तरुवर नरेन्द्र का … Read More

आध्यात्म द्वारा सामाजिक सम्पोषण का स्वप्न

‘सन्यास’ को अक्सर दीन-दुनिया से दूर आत्मान्वेषण की गहन और निजी यात्रा से जोड़ कर देखा जाता है। मुक्ति की ऐसी उत्कट अभिलाषा स्वाभाविक रूप से मनुष्य को अंतर्यात्रा की … Read More