BHU researchers: आईआईटी बीएचयू के शोधकर्ताओं ने प्रदूषित जल को स्वच्छ करने हेतु विकसित किया नई तकनीक

BHU researchers: बायोकेमिकल के शोधकर्ताओं का शोध, बायोकेमिकल इंजीनियरिंग जर्नल में प्रकाशित

रिपोर्टः डॉ राम शंकर सिंह

वाराणसी, 05 सितंबरः BHU researchers: भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थान स्थित बॉयोकेमिकल इंजीनियरिंग विभाग के शोधकर्ताओं ने अपशिष्ट जल को साफ करने में सूक्ष्म शैवाल और मशीन लर्निंग का सफलता पूर्वक अनुप्रयोग किया हैं। इस अनुप्रयोग के अंतर्गत फोटो बॉयोरिएक्टर में सूक्ष्म शैवाल को उचित तापमान, प्रकाश तीव्रता, कार्बन डाईऑक्साइड की मात्रा, पीएच लेवल को निर्धारित कर अपशिष्ट जल को 90 प्रतिशत तक साफ किया जा सकता है तो वर्तमान में बैक्टिरिया आधारित जलशोधन प्रक्रिया से बेहतर हैं।

BHU researchers: इस संबंध में जानकारी देते हुए बॉयोकेमिकल इंजीनियरिंग के अस्सिटेंट प्रोफेसर डॉ विशाल मिश्रा ने बताया कि संयुक्त राष्ट्र विश्व जल विकास रिपोर्ट 2021 वैल्यूइंग वॉटर के अनुसार पिछले 100 वर्षों में वैश्विक मीठे पानी के उपयोग में छह गुना वृद्धि हो गई हैं। बावजूद इसके अपशिष्ट जल का 80 प्रतिशत से अधिक हिस्सा बिना ट्रीटमेंट के जलधाराओं में छोड़ दिया जाता हैं।

वर्तमान में मौजूद कन्वेशनल वाटर ट्रीटमेंट प्रक्रिया बेहद खर्चीली है। इसमें ज्यादा विद्युत खर्च, कीचड़ का निपटान और भारी मात्रा में कार्बन डाइऑक्साइड का उत्सर्जन बड़ी समस्या हैं। उन्होंने बताया कि इन्हीं समस्याओं को ध्यान में रखते हुए सूक्ष्म शैवाल द्वारा मध्यस्थता वाली जैविक अपशिष्ट जल उपचार एक बेहतर विकल्प हैं।

BHU researchers: इससे न सिर्फ अपशिष्ट जल 90 प्रतिशत तक साफ होगा बल्कि सूक्ष्म शैवाल बॉयोमास के रूप में उच्च गुणवत्ता वाली खाद भी बेहद उपयोगी साबित होगी। उनके साथ शोध टीम में शामिल पीएचडी छात्र विशाल सिंह ने बताया कि सूक्ष्म शैवाल आधारित अपशिष्ट जल उपचार प्रक्रिया को अनुकूलित करने के लिए मशीन लर्निंग टूल्स को सफलतापूर्वक लागू किया गया है और यूएस आधारित बायो केमिकल इंजीनियरिंग जर्नल में शोध प्रकाशित हो चुका हैं।

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इस शोध से प्राप्त जानकारी प्रयोगात्मक डिजाइन बनाने में सहायता कर सकती है और बड़े पैमाने पर अपशिष्ट जल उपचार करने में सहायता कर सकती हैं। निकाली गई जानकारी का उपयोग माइक्रोएल्गे आधारित तृतीयक अपशिष्ट जल उपचार संयंत्र को डिजाइन करने के लिए आसानी से किया जा सकता है, जिसे आसानी से वर्तमान माध्यमिक अपशिष्ट जल उपचार संयंत्रों के साथ एकीकृत किया जा सकता है, जहां बैक्टीरिया द्वारा उपचार किया जाता हैं।

BHU researchers: सूक्ष्म शैवाल अपशिष्ट जल उपचार संयंत्र वर्तमान पारंपरिक अपशिष्ट जल उपचार संयंत्रों को पूरी तरह से बदल सकते हैं।सूक्ष्म जीव आधारित उपचार संयंत्र से उत्पन्न उपचारित पानी डब्ल्यूएचओ द्वारा निर्धारित मानदंडों को पूरा करता है, और इसे आसानी से नदियों में छोड़ा जा सकता है। इसके अलावा, उपचारित पानी का उपयोग सिंचाई और सफाई के उद्देश्य से किया जा सकता है, इस प्रकार उपलब्ध प्राकृतिक मीठे पानी के संसाधनों पर भार कम हो जाता है। इससे पेयजल की किल्लत की समस्या का समाधान कर समाज को फायदा होगा।

BHU researchers: यही नहीं, वाटर ट्रीटमेंट के बाद उत्पादित प्रोटीन पूरक माइक्रोबियल बायोमास का उपयोग पशुचारा, उर्वरक और जैव ईंधन के उत्पादन के लिए किया जा सकता है।साथ ही इससे प्रकाश संश्लेषण के दौरान ऑक्सीजन का विकास भी संभव है । इसके अलावा, सूक्ष्म शैवाल प्रकाश संश्लेषण की प्रक्रिया के दौरान वातावरण से बड़ी मात्रा में कार्बनडाइऑक्साइड का उपभोग करते हैं और ऑक्सीजन उत्पन्न करते हैं।सूक्ष्म शैवाल द्वारा वातावरण में कार्बनडाइऑक्साइड के भार को कम करने से ग्लोबल वार्मिंग की समस्या काफी हद तक हल हो जाएगी।

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