Hope: बेबसी और उम्मीद…
Hope: इसने दुन्या को भी वीरान बना डाला है,कितने शहरों को हि शमशान बना डाला है
अब उठाया है कोरोना ने यहां सर ऐसा
आंखें डरने लगी अब देख के मंजर ऐसा
यूं तो देखे है कई हादसे हमने लेकिन
कभी देखा नहीं लाशों का समंदर ऐसा
इसने दुन्या को भी वीरान बना डाला है
कितने शहरों को हि शमशान बना डाला है
हो जो खुशहाल नहीं एक भी अब घर ऐसा
कभी देखा नहीं लाशों का समंदर ऐसा
कोई सांसों को तरसता है, कोई खौता है
कोई अपनो से बिछड़ता है तो दिल रोता है
जा के दिखलाए किसे ज़ख्म है अंदर ऐसा
कभी देखा नहीं लाशों का समंदर ऐसा
वक्त मुश्किल है मगर ये भी गुज़र जाएगा
कल नई शामो सहर ले के ये फिर आएगा
वक्त रहना नहीं, हर वक्त बराबर ऐसा
कभी देखा नहीं लाशों का समंदर ऐसा
फिर से दुनिया में हंसी सबके लबों पर होगी
फिर बहार आएगी, रौनक भी गुलों पर होगी
ये ख़िज़ाँ जाएगी पर हमको रुलाकर ऐसा
कभी देखा नहीं लाशों का समंदर ऐसा
अब मुसीबत मे हर इंसान घिरा है मौला
तेरी कुदरत को भी पहचान गया है मौला
अब तो लाचार से बंदों पे रहम कर ऐसा
कभी देखा नहीं लाशों का समंदर ऐसा
*हमें पूर्ण विश्वास है कि हमारे पाठक अपनी स्वरचित रचनाएँ ही इस काव्य कॉलम में प्रकाशित करने के लिए भेजते है।
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