dilip vachchhani edited

मेरे चेहरे पर खुशी उसे मंजूर ही नही

गज़ल

dilip vachchhani edited
डॉ दिलीप बच्चानी
पाली मारवाड़, राजस्थान

चाहे दबा हुआ है लाख परतों तले
पर होता हर मन मे वैराग का मोह।

घर की दीवारें कारावास की तरह
छोड़ता कहा है अनुराग का मोह।

ऐसे कैसे सौप दू किसी अंजान को
किसे दू मै अपने अनुभाग का मोह।

कइयो बार छला गया ठुकराया गया
पर पा न सका मै मेरे भाग का मोह।

मेरे चेहरे पर खुशी उसे मंजूर ही नही
छिन लेता हैं वो हर विभाग का मोह।

धमनियों का रक्त जब तक न रुके
चलता रहेगा द्वेष औऱ राग का मोह।

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