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Balika vadhu: ये कैसा समाज; जो एक छोटी बिटिया को ही बालिका वधू बना देता है: आशीष बादल

बालिका वधू (Balika vadhu)

Balika vadhu

जिसके हाथ में खेलने के लिए गुड़िया होनी चाहिए,
उस मासूम को गुड़िया बना के बैठा देता है..
ये कैसा निर्लज्ज समाज है आज कल का,
जो एक छोटी बिटिया को ही बालिका वधू बना देता है.

जिसकी उम्र खेलने कूदने और पक्षियों सी फुदकने की हो,
जिसके अरमान अपने सपने पूरे करने के हों,
उस चिड़िया के पर बिना उड़े ही काट देता है,
क्यों आज कल का इंसान बच्चियों को ऐसे दलदल में झोंक देता है?

अभी तो वो स्कूल में पढ़ना सीखती है,
चार सहेलियों के साथ मस्ती से जीती है,
करती है खुला विचरण अपनी कल्पना की दुनिया में,
संजोती है सपने अपने जीवन के,
फिर क्यों उसे यूँ किसी अनजान के मत्थे थोप देता है?
क्यों आजकल का इंसान बच्चियों को ऐसे छोड़ देता है?

जीने दो उसे भी आज के माहौल में,
उड़ने दो उसे भी ऊँची उड़ानों में,
उसे भी हक़ है अपनी जिंदगी जीने का,
मन बांधों उसे इन फालतू रिवाजों में..
तब शायद उस लाडो को भी सुकून होगा,
कोई मासूम तब ना बंधेगी इस अनचाहे बंधन में,
और तब ही बालविवाह नामक अभिशाप दूर होगा…
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