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Illegal sand mining in Ganga river; वाराणसी में गंगा नदी के पूर्वी छोर पर अवैध बालू खनन जारी

Illegal sand mining in Ganga river: वाराणसी में अवैध बालू खनन के विरुद्ध एनजीटी में याचिका दायर

  • जिला प्रशासन की चुप्पी से बालू ठेकेदारों पर नहीं लगा अंकुश
  • याचिका में वर्तमान बालू खनन को बताया गया सुप्रीम कोर्ट के आदेश के विरुद्ध

रिपोर्ट : डॉ राम शंकर सिंह

वाराणसी, 23 जनवरी: Illegal sand mining in Ganga river: एक तरफ केंद्र सरकार गंगा की स्वच्छता और पारिस्थितिकी की चिंता को लेकर नमामि गंगे जैसी योजना के माध्यम से सक्रिय है तो वहीं दूसरी तरफ प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के संसदीय क्षेत्र वाराणसी में तमाम शिकायतों के बाद भी अवैध बालू खनन की लूट अहर्निश जारी है। इसके विरुद्ध नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल, प्रधान पीठ, नई दिल्ली (राष्ट्रीय हरित अधिकरण, नई दिल्ली) के न्यायालय में वाराणसी के सामाजिक कार्यकर्ता डॉ अवधेश दीक्षित द्वारा प्रयागराज उच्च न्यायलय के अधिवक्ता सौरभ तिवारी के माध्यम से याचिका दायर की गयी है।

ज्ञातव्य है कि वर्ष 2021 में वाराणसी में गंगा घाटों की विपरीत दिशा में प्रशासन ने रेत में नहर का निर्माण कराया था. प्रशासन का दावा था कि इससे गंगा घाटों पर जल दबाव कम होगा । बिना किसी विशेषज्ञ समिति की अनुशंसा के मनमाने ढंग से 11.95 करोड़ रुपए लगा कर दर्ज़नो पोकलैंड और जे सी वी के द्वारा खोदी गई नहर गत वर्ष जून माह में पूर्ण हुई. परन्तु बरसात आते ही अगस्त 2021 में उक्त बालू का नहर पूरी तरह से बाढ़ में डूब गई. परिणाम स्वरुप जलप्रवाह के नैसर्गिक व स्वाभाविक वेग से बालू के बह कर गड्ढों में भरने से, प्रशासन की कथित रेत की नहर ने पूरी तरह अपना अस्तित्व खो दिया ।

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यहाँ यह भी बताते चले कि नहर ड्रेजिंग के समय ही इसकी प्रासंगिकता पर जल वैज्ञानिक और गंगा प्रेमियों ने कई बार सवाल उठाए. जब इसे पैसे की बर्बादी करार दिया गया तो, जिलाधिकारी वाराणसी द्वारा आनन-फानन में निस्तारित बालू के उठान का निविदा जारी कर यह सिद्ध करने की कोशिश की गई कि इस नहर की ड्रेजिंग के एक हिस्से की लागत हम बालू उठान की निविदा से निकाल रहे हैं। ड्रेजिंग के नाम पर 12 करोड़ की लूट के बाद यह निविदा प्रशासनिक मनमानेपन व लूट की दूसरी किस्त थी, जिसमें व्यापक पैमाने पर भ्रष्टाचार हुआ।

गौरतलब है कि जिलाधिकारी ने जून 2021 में मात्र 6 महीने की अवधि के लिए रामनगर क्षेत्र में कुल 9 लाट बालू के उठान की निविदा जारी की थी जिसमें तब केवल 3 लाट की निविदाएं ही स्वीकृत हुईं। जिन ठेकेदारों को निविदा प्राप्त हुई उन्होंने 1 महीने तक खूब धड़ल्ले से किनारे का खनन कर डाला और ड्रेज मैटेरियल न उठाकर अपनी सुविधानुसार किनारे से ही बालू की लूट शुरू कर दी। तब भी इसकी लिखित शिकायत की गई लेकिन कोई कार्यवाही नहीं हुई ।

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अगस्त माह में बाढ़ आने के पश्चात नहर पूरी तरह से डूब कर समाप्त हो गई. ड्रेज्ड मटेरियल कुछ भी नहीं बचा। नवंबर माह में पानी समाप्त हो जाने तथा रेत उभर आने के बाद से पुनः ठेकेदारों ने मनमाने ढंग से किनारे के बालू खनन को शुरू कर दिया. जबकि न तो एक इंच भी नहर बची है और न हीं नहर से निस्तारित बालू, जिसके लिए निविदा हुई थी। इसकी शिकायत खनन अधिकारी से करते हुए हस्तक्षेप की मांग की गई लेकिन वह हीला हवाली करते रहे।

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याचिकाकर्ता का आरोप है कि जून 2021 से जारी निविदा की अवधि दिसंबर 2021 में समाप्त हो चुकी है; लेकिन तब से अभी तक लगातार मनमाने ढंग से दर्जनों जेसीबी और हजारों ट्रैक्टर लगा कर के अवैध बालू खनन जारी है . जिसमें जिला अधिकारी की चुप्पी और जिला खनन अधिकारी की मिलीभगत से इन ठेकेदारों ने लूट मचा रखी है। निश्चित मात्रा में नहर से निस्तारित बालू को उठाने की बजाए अब तक उससे कई गुना ज्यादा बालू यहां वहां से खोद कर नदी के तट का स्वरूप विद्रूप कर दिया गया जो आगामी बाढ़ में किनारे के कटान का सबब बन सकता है।

साक्ष्य पूर्ण शिकायतों के बाद भी प्रशासन की तरफ से इस लूट पर कोई कार्यवाही नहीं की गई तो सामाजिक कार्यकर्ता डॉ अवधेश दीक्षित की तरफ से इलाहाबाद उच्च न्यायालय के अधिवक्ता सौरभ तिवारी के माध्यम से नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल में एक याचिका दायर कर इस पर अविलंब हस्तक्षेप करने, अवैध बालू खनन पर त्वरित रुप से रोक लगानें व स्वतंत्र जांच समिति गठित करते हुए मामले की उच्च स्तरीय जाँच व दोषियों पर कार्रवाई तथा गंगा व पर्यावरण की रक्षा की प्रार्थना की गई है।

याचिका में वर्तमान बालू खनन को सुप्रीम कोर्ट व एनजीटी द्वारा दिये फैसले के विरुद्ध बताया गया है।

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