स्लो-लर्नर बच्चों (Children) की समस्या का समाधान
पेरेन्ट्स और टीचर्स के लिये ऐसे बच्चों (Children) की क्षमता को ध्यानमें रखते हुए उनके लिए छोटे और आसान टार्गेट्स (लक्ष्य) सेट करना आवश्यक है
यदि बच्चा (Children) जल्दी से सीख नहि पाता, तो उसके पेरेन्ट्स और टीचर्स यह मानने लगते हैं कि या तो वह क्लास में ठीकसे ध्यान नहीं दे रहा है या उसका दिमाग ही ठीक नहि है। ये दोनों मान्यताएं अक्सर गलत होती हैं। धीमी गति से सीखने वाले स्लो-लर्नर बच्चों के डेवलपमेंटल मार्कर (प्रगति दर्शक) अन्य सामान्य बच्चों की तुलना में बहुत धीमे होते हैं। उन्हें निर्देशों और जानकारियों को “प्रोसेस” करने में अधिक समय लगता है, जिस कारण पढाये जा रहे पाठ, कन्सेप्ट्स और सिद्धांतों को वे बहुत देरसे ही सीख पाते हैं। इस समस्या के कारण अभी तक स्पष्ट नहीं हो पाये हैं, लेकिन यह साबित हो चूका है कि शीघ्र निदान से इसका समाधान अवश्य हो सकता है।
स्लो-लर्नर का अर्थ क्या होता हैं?
- उनकी सोचने की क्षमता और कौशल का विकास अन्य हमउम्र बच्चों (Children) की तुलना में धीमा होता है।
- वे अन्य बच्चों की तरह ही विकास के सभी चरणों से गुजरते हैं, लेकिन उनकी गति धीमी होती है।
- जब वे बड़े हो जाते हैं, तब भी उनकी सीखने की गति तो धीमी ही रहती है।
स्लो-लर्नर बच्चों के लक्षण
- वे मैथ्स में कमजोर होते हैं। गणित का अभ्यास उनके लिये अधिक कठिन होता है।
- पठन और ग्रहण क्षमता कम होती है। विचार और तर्क की क्षमता भी कम होती है।
- शोर्ट एटेन्शन स्पान (छोटी ध्यान अवधि) होनेसे वे किसी एक विषय पर देर तक ध्यान केंद्रित नहीं कर पाते ।
- मेमरी (याददाश्त) एवम ओडियो प्रोसेसिंग (श्रवण प्रसंस्करण) कमजोर होते हैं।
- उनका रिस्पोन्स टाइम (प्रतिक्रिया देने में लगता वक्त) धीमा रहता है।
- वे अपने विचारों और भावनाओं को ठीक से व्यक्त नहीं कर पाते।
- उन्हें कुछ वाणी-विषयक समस्याएं हो सकती हैं। सामाजिक व्यवहार अपरिपक्व होने से वे स्थिति को समझने और सही निर्णय लेने में गडबड कर बैठते हैं।
- निष्फ़ल होने पर वे बहुत जल्दी निराश हो जाते हैं। उनमें आत्मसम्मान की कमी, हीनता की भावना और भावनात्मक अस्थिरता पायी जाती है।
- नए कौशल सीखने के लिए उन्हें अधिक अध्ययन करना पडता है।
स्लो-लर्नर बच्चों की समस्याएं
स्लो-लर्नर बच्चों को कुछ विशेष कठिनाइयों का सामना करना पड़ता है। उन्हें अपने सहपाठियों की समकक्ष गतिसे कुछ भी सीखने के लिए संघर्ष करना पड़ता है। वे क्लासमें में पिछड़ जाते हैं। उन्हें लगातार अध्ययन के लिए प्रेरणा और मनोबल बनाए रखना मुश्किल लगता है। वे अन्य बच्चों के साथ दोस्ती या सामाजिक सम्पर्क बनाने से कतराते हैं। यदि आपका बच्चा इस प्रकार की समस्या का सामना कर रहा है, तो किसी अनुभवी डेवलपमेंट स्पेश्यालिस्ट या सायकोलोजिस्ट को कन्सल्ट करना बेहतर है, ताकि आपको बच्चे की वास्तविक स्थिति और समस्याओं को समझने में मदद के साथ एक्सपर्ट गाइडन्स भी मिल सके।
स्लो-लर्नर्स के लिए कुछ उपयोगी टिप्स
- प्रशंसा: निरंतर अध्ययन के लिए उनका मनोबल को बनाए रखने के लिए, उन्होंने जिन लेसन्स/ चेप्टर्स/कन्सेप्ट्स को ठीकसे समझ लिया है उसकी सराहना करते रहें। बेहतर प्रदर्शन के लिए उन्हें प्रेरित करने के लिए उनकी उपलब्धियों का स्वीकार और प्रशंसा बहुत जरुरी होते है।
- पुरस्कार: अध्ययन के लिए उनका उत्साह बनाए रखने के उद्देश्य से उनकी हर उपलब्धि को रिवोर्ड देने के हेतु से उन्हें टोकन स्वरुप छोटे- छोटे पुरस्कार देते रहें।
- छोटे और आसान टार्गेट्स (लक्ष्य) देना : पेरेन्ट्स और टीचर्स के लिये ऐसे बच्चों की क्षमता को ध्यानमें रखते हुए उनके लिए छोटे और आसान टार्गेट्स (लक्ष्य) सेट करना आवश्यक है जो बिना आसानी से हासिल किए जा सकें। जटिल प्रकरणों को को छोटे-छोटे हिस्सों में विभाजित करके पढ़ाने से उनके लिए उसे सीखना आसान हो जायेगा।
- लगातार याद दिलाएं कि असफलता ही सफलता का एकमात्र रास्ता है: यह सुनिश्चित करें कि बच्चे के दिमाग में यह ग्रंथि कभी न बन पाये कि सभी असफलताओं का परिणाम हमेशा खराब ही होता है । उनमें यह समझदारी विकसित करें कि असफलताओं से ही सफलता का मार्ग मिलता है, इसलिए कभी हार न मानें और कोशिश जारी रखें।
*यदि आप मानसिक स्वास्थ्य के बारे में अधिक जानकारी प्राप्त करना चाहते हैं या डॉक्टर से संपर्क करना चाहते हैं, तो इस लिंक पर क्लिक करें….www.itishuklapsychologist.com
यह भी पढ़े…..सड़क हादसों की रोकथाम के लिए (IRAD APP) द्वारा डेटाबेस का विकास कार्य शुरू