Varanasi Education seminar

Education: भारत विश्वगुरु था, जिसने अपना गुरुत्व कहीं खो दिया है, जिसे हमें अपनी योग्यताओं और क्षमताओं से प्राप्त करना है: डॉ. अखिलेश कुमार दुबे

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अंतर्राष्ट्रीय कार्यशाला :राष्ट्रीय शिक्षा (Education) नीति 2020

रिपोर्ट : डॉ राम शंकर सिंह
वाराणसी, 11 मार्च
: वाराणसी भारत मे श्रेष्ठ स्त्री शिक्षा (education) के क्षेत्र मे शताब्दी पुराना ख्यात संस्थान , वसंत महिला महा विद्यालय, राजघाट,वाराणसी तथा महात्मा गाँधी अंतर्राष्ट्रीय हिंदी विश्वविद्यालय के संयुक्त तत्वावधान में ,शिक्षा विद्यापीठ पंडित मदन मोहन मालवीय राष्ट्रीय शिक्षक एवं शिक्षण अभियान,शिक्षा मंत्रालय,भारत सरकार के अंतर्गत, नई शिक्षानीति: 2020 पर चौदह दिवसीय अंतर्राष्ट्रीय ऑनलाइन कार्यशाला का आयोजन सफलता पूर्वक किया जा रहा है।

कार्यशाला के ग्यारहवें दिन प्रथम सत्र में डॉ. अखिलेश कुमार दुबे(आचार्य एवं अकादमिक निर्देशक, क्षेत्रीय केंद्र, प्रयागराज, म.गा.अ.हिं.वि., वर्धा ) ने अपने विषय राष्ट्रीय शिक्षा (education) नीति 2020 और तुलनात्मक साहित्य पर वक्तव्य दिया। उन्होंने कहा हमारी संस्कृति हमारा प्राण तत्व है, जिसको छिपाना/मिटाना बहुत देर तक संभव नहीं है। भारत विश्वगुरु था, जिसने अपना गुरुत्व कहीं खो दिया है, जिसे हमें अपनी योग्यताओं और क्षमताओं से प्राप्त करना है ! विश्व पथ प्रदर्शक के रूप में इसे सामने आना ही है।

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इस नीति में भाषा के बारे में, दर्शन के बारे में, साहित्य के बारे में, कलाओं के बारे में बात की गई।उन्होंने कहा कि अभी तक तुलनात्मक साहित्य में पश्चिमी देशों के साहित्य पर केंद्रित रहे, विशेष रूप से अंग्रेजी ! लेकिन नई शिक्षा (education)नीति में किसी एक भाषा के साहित्य पर नहीं , दुनिया के तमाम भाषाओं के साहित्य के अध्ययन का प्रावधान बनाया गया है।

द्वितीय सत्र के वक्ता डॉ.चक्रधर त्रिपाठी (आचार्य, हिन्दी विभाग, विश्वभारती शांतिनिकेतन, प.बंगाल) ने ‘राष्ट्रीय शिक्षा नीति 2020 से समृद्ध होती राजभाषा हिन्दी’ विषय पर अपना वक्तव्य देते हुए कहा कि राष्ट्रीय शिक्षा (education) नीति 2020 हर स्तर पर हस्तक्षेप कर रहा ! यह विकासशील, गतिशील, व्यक्तित्व निर्माण, ज्ञानार्जन, प्रतिभा, एवं मनुष्यता के स्तर पर विकास करते दिखाई देती है। आपने सुधारात्मक सुझाव देते हुए कहा कि एक लाख शब्दावली के शब्दकोष यदि हम विद्यालय और महाविद्यालय स्तर पर बनाए तब हम अनुवाद के स्तर को और साहित्य के स्तर को और बेहतर कर सकते हैं।

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हिन्दी विभागों की आत्मनिर्भरता के संदर्भ में बताया कि दो प्रांतीय भाषाओं से जुड़े शब्दकोष का हमें विकास करने की आवश्यकता है‌। विदेशी साहित्य को हम अपनी भाषा में विकसित करें,अनुवाद के साधनों को बढ़ाए, जिससे हमारी राष्ट्रीय समृद्धि का विकास हो सके।

तीसरे सत्र में प्रोफेसर वशिष्ठ अनूप ने गजलों के बहाने तुलनात्मक अध्ययन,भाषा की विरासत कि बात की। एक ही देश में उत्पन्न दूसरी भाषा विभिन्न संस्कृतियों के उपादान को कैसे अपनी कहन में ढालती है, इसे हम हिंदी उर्दू के गजलकारों में देख सकते हैँ । तुलनात्मक अध्ययन में भाषिक परिवेश की महत्ता राष्ट्रीय शिक्षा (education) नीति का लक्ष्य है।

चौथे सत्र में डॉ पुष्पिता अवस्थी (राष्ट्रीय अध्यक्ष ,गार्जियन ऑफ अर्थ एण्ड ग्लोबल कल्चर ,हॉलैंड) ने ‘राष्ट्रीय शिक्षा की अस्मिता की आधार भाषा और साहित्य’ विषय पर व्याख्यान देते हुए कहा कि भाषा और संस्कृति नव उन्मेषशालिनी है।भाषा ही वह शक्ति है जो किसी भी शिक्षा (education) के अमरत्व को हमारे व्यक्तित्व में और आने वाली पीढी में समाहित करती हैं। पर्यावरण प्रदूषण के साथ -साथ भारतवर्ष में घनीभूत रूप से भाषा में हो रहे प्रदूषण जो वाचिक और लेखन दोनों स्तर पर हो रहा हैं दूर करने की बात की।

भारतीय संस्कृति के साथ-साथ हिंदुस्तानी संस्कृति के माध्यम से इसे दूर करना होगा। हिन्दी भाषा के परिवार की बोलियों में जब हिंदी भाषा को शामिल करते है तो कही न कही अपने गांव, अपने समाज ,अपने लोक संस्कृति से जुड़ते हैं।भारत की संस्कृति में वह ताक़त है जो हिन्दी और संस्कृत की संस्कृति से विश्व संस्कृति को धारण कर सकती हैं।वसुधैवकुटुम्बकम में हमारे पूरे संस्कृति का मूल मन्त्र ,प्राणतत्त्व और आत्मा हैं।

कार्यक्रम का संचालन अमरावती से डॉ.तेजल मेहता एवं आनंद गुजरात से डॉ.ज्योतिका पटेल ने किया। इस चौदह दिवसीय कार्य शाला की संयोजक डॉ. बंदना झा ने अतिथियों का स्वागत तथा धन्यवाद ज्ञापन किया।प्रतिभागियों ने अंत में वक्ताओं के साथ संवाद भी किया।

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