Mujhe ishq hai: मुझे इश्क है…
Mujhe ishq hai: !! मुझे इश्क है !!
Mujhe ishq hai: मुझे इश्क़ है अफताब से
जो बिखेर देता है क्षितिज पर चारू चंद्र की
चंचल किरणों की तरह
उम्मीद की कुछ नई किरणें
और दे जाता जीने का हौसला
तुम्हें रोशन कर
खुद डूब जाता है मद्धम-मद्धम
कहीं शाम की तरह मदहोशी में….!
मुझे इश्क़ है इन रातों से
जो सारे दिन की थकान के बाद
लिटा लेती है अपनी गोद में और
माथे पर थपकियां देकर सुला लेती है
अपने आगोश में
एक दिलासा देकर
कि फिर सुबह की पहली किरण
कल को एक नया सबेरा लाएगी….!
मुझे इश्क़ है हवाओं से
जो छूकर आती है फूलों को
साथ लाती है अपने महकाने बाली
खुशबू जो तमाम उलझनों को
भुला कर दे जाती है कुछ पल का सुकून
और महका देती है नर्म नर्म सांसों को
और बनकर शीत लहर की
पुरवाईया दे जाती है गालों पर चुम्बन…!
Mujhe ishq hai: मुझे इश्क़ है मौसमी बरसात से
जो उठा लाती है पहाड़ों से घटाएं
दूर कहीं गहरे समुंदर से पानी
और भिगा जाती है
लहलहाती फसलों के साथ-साथ
अंतर्मन की गहराइयों तक मुझे
और देती है ना जाने कितने
नदी,नाले,बावरी,कुएं और प्यासी जमीं
को एक नया संघर्षी और साहसी जीवन….!
मुझे इश्क़ है सर्दियों से
सर्दियों में जलते उस अलाव से
जो खीच लाता है अपनी
ओर गर्माहट के लिए थरथराते होंठ और
और कंपकपाते बदन को देता है राहत
मखमली कंबल से भी कहीं ज्यादा
सुकून बांट देता है साथ ही जला देता है
मन में पनप रही गलत फहमियों को
और आभास कराता है
घनघोर अंधेरों में भी उम्मीद की रोशनी का…!
मुझे इश्क़ है प्रकृति से
पेड़ों से-पौधों से
पहाड़ों से-झरनों से
घटाओं से-वादियों से
फूलों से-कलियों से
धरा से-धरातल से
क्योंकि महसूस किया है मैंने
इन सब में जीवन का सौंदर्य
महसूस करते ही इन्हें आती है
चेहरे पर एक अनूठी सी चमक
सारे इत्र को फीका कर जाए
बारिश के बाद मिट्टी की खुशबू
और अफताब को भी छुपा लेती है
मोहब्बत के आंचल में उस बदली से….!
हां ओजस इश्क़ है….!
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