Dadi ki kahani: दादी की “पान की टोकनी”: रेणु तिवारी
Dadi ki kahani: पान की टोकनी कपूरी पान,चुना, कत्था, कमल किशोर तंबाकू,सुपारी और पिपरमिंट की डिब्बी से सुसज्जित रहती थी,अभी भी है।
“अरे! दादी अभी अभी झाड़ू लगाई थी! और आपने फिर ये पान की टोकनी का कचरा नीचे डाल दिया दिन भर बस पान के डंठल,सुपारी के टुकड़े, तंबाकू का कचरा,यही पड़ा रहता है आपकी ये टोकनी तो हटा ही देना चाहिए”….. रेणु तुनक के बोल रही थी.
“तुम्हे नहीं साफ करना तो मत करो हम कर देंगे,पर हमारे जीते जी तो ये पान की टोकनी कही नहीं जाने वाली” इस बार दादी भी गुस्से में बोली।
मम्मी ने रेणु को आंख दिखाई तो वो भी थोड़ा चुप हो गई,मम्मी को डर था कि दादी गुस्सा ना हो जाए,और दादी गुस्सा हो गई तो फिर खाना ही नही खायेंगी।बड़ा वक्त लगेगा उन्हे मानने में। दिन में एक बार तो मैं लड़ ही लेती थी इस पान की टोकनी के लिए दादी (Dadi ki kahani) से,जब तक मेरी शादी नही हुई थी तब तक,फिर क्या शादी के तीन साल बाद दादी भी नहीं रही,पर वो पान की टोकनी आज भी हमारे घर की शोभा बढ़ाती है,जिसकी कमान अब मम्मी के हाथो में है।
आज सोचती हूं तो कितनी सारी बातें याद आ जाती है बचपन की,कितने लोग तो हमारे यहां बस दादी (Dadi ki kahani) के हाथो का पान खाने ही आते थे।
रेलवे कालोनी से एक दाढ़ी वाले शुक्ला जी आते थे,जिनका पूरा नाम मुझे आज तक नही पता बस उनकी दाढ़ी बढ़ी थी सफ़ेद धोती और कुर्ता पहनते थे, गले में एक गमछा रहता था।दादी को माई कहते थे,और तीन किलोमीटर पैदल चल के हमारे घर आते थे दादी के हाथ का पान खाने।
ऐसे ही दादी की दूर की कोई नन्द लगती थी जिनका घर गंज में नाले के पास था जिनको सब नल्ले वाली बुआ के नाम से जानते थे,उनका भी असली नाम मुझे नहीं पता।
ऐसे बहुत से लोग थे जो हमारे घर बस पान खाने ही आते थे,और दादी से बाते करने।
केशिया वाली दादी, पटेलन मौसी, वरमाइन बड़ी मम्मी और भी बहुत लोग सब दादी से जुड़े थे।
कही जाना हो तो पहले पान और उसका सामान रखा जाता था फिर कोई दूसरी चीज।
पान की टोकनी कपूरी पान,चुना, कत्था, कमल किशोर तंबाकू,सुपारी और पिपरमिंट की डिब्बी से सुसज्जित रहती थी,अभी भी है।
पर दादी के समय की बात ही कुछ और थी, पूरे साल के लिए पहले कत्था खल बत्ते में कुटा जाता था फिर मिक्सी में पीसा जाता और फिर छान के डब्बे में भरा जाता था। इसी तरह चुना भी भिगो के घर पर ही खाने लायक बनाया जाता और सुपारी तो किलो से भरी जाती थी।
Dadi ki kahani: दादी साल भर की तैयारी करती अपनी पान की टोकनी को हमेशा परी पूर्ण रखने के लिए। और वो कपूरी पान, जो भी बजार जाता दादी पैसे देकर बुला ही लेती चाहे कितने भी रखे हो घर मे,पर उन्हे लगता कम ना पड़ जाए। पान भी तो बाजार से आ कर धोए जाते फिर गिले कपड़े में बांध के फ्रिज में रखे जाते जो लंबे समय तक चले।
पान खाने का शौक तो सब रखते है पर खिलाने का शौक और इतने तरीके से सब रिश्तों को पान से सहेजने की कला तो बस मेरी दादी के पास ही थी। आज दादी नहीं है,आज भी सारे रिश्ते बड़े प्यार से निभते है आज भी सब होता है सजती है पान की टोकनी,मम्मी संभाले हुए है दादी की जिमेदारी।
मम्मी लगा ही देती है आवाज़ “अरे रजत बाजार जा रहे हो पचास कपूरी पान ले आना”
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