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Swachhata Hi Seva: प्लास्टिक मुक्त गांव बनाने के लिए कच्छी महिला ने छेड़ा अभियान…

  • राज्य सरकार द्वारा फंडिंग और मार्केटिंग सहयोग से राज्य की महिलाएं आत्मनिर्भर बनने की दिशा में अग्रसर
  • गांव की 60 महिलाओं को रोजगार, ऑनलाइन बिक्री से दुनिया के बाजारों तक पहुंचे उत्पाद

Swachhata Hi Seva: प्लास्टिक कचरे से बनाए ट्रेंडी उत्पाद, सालाना टर्नओवर पहुंचा 15 लाख रुपए

गांधीनगर, 17 अक्टूबरः Swachhata Hi Seva: जन आंदोलन के माध्यम से स्वच्छता अभियान का उत्सव मनाने के लिए 2 अक्टूबर को गांधी जयंती के अवसर पर ‘स्वच्छ भारत दिवस’ मनाया जाता है। इस वर्ष स्वच्छ भारत मिशन के तहत ‘कचरा मुक्त भारत’ की थीम के साथ 15 सितंबर से 15 अक्टूबर तक ‘स्वच्छता ही सेवा’ पखवाड़े का आयोजन किया गया था। सरकार का प्रयास है कि स्वच्छता की संस्कृति गांवों तक पहुंचे और भारत ‘कूड़ा मुक्त’ बनकर चमक उठे।

मुख्यमंत्री भूपेंद्र पटेल के नेतृत्व में सरकार ने स्वच्छता को बढ़ावा देकर पर्यावरण अनुकूल नीतियों पर उल्लेखनीय कार्य किया है। राज्य सरकार ने जनभागीदारी के जरिए और दो महीनों तक इस अभियान को व्यापक रूप से आगे बढ़ाने का निर्णय किया है।

आज जब हम स्वच्छ भारत के मिशन की दिशा में आगे बढ़ रहे हैं, तब एक सशक्त महिला की कहानी सभी के लिए प्रेरणादायी बन गई है, जिन्होंने गांवों को प्लास्टिक कचरे से मुक्ति दिलाने के लिए अभियान छेड़ा है। उन्होंने एक आत्मनिर्भर महिला के रूप में ने केवल गुजरात, बल्कि दुनिया भर में नाम रोशन किया है।

प्लास्टिक कचरे से बनाए एक्सपोर्ट क्वालिटी उत्पाद

हम बात कर रहे हैं कच्छ के भुज शहर के निकट स्थित अवध नगर में रहने वाली राजीबेन वणकर की। 50 वर्षीय राजीबेन वणकर प्लास्टिक कचरे को प्रोसेस कर उससे शॉपिंग बैग, पर्स, मोबाइल कवर, ट्रे, योगा मेट, फाइल फोल्डर और चश्मा कवर जैसी ट्रेंडी और दैनिक उपयोग की चीजें बनाती हैं। इस कार्य में उनके साथ 50 महिलाएं भी जुड़ी हैं, जो कटिंग से लेकर उत्पादों के निर्माण के विभिन्न चरणों का कार्य करती हैं।

इस तरह शुरू हुई राजीबेन की यात्रा

जब राजीबेन की उम्र 13 साल थी, तब उन्होंने अपने पिता की बीमारी को देखते हुए बुनाई कार्य सीखने का निश्चय किया। परंपरागत रूप से यह पुरुषों का काम था, लेकिन परिवार की मदद करने के उद्देश्य से उन्होंने यह काम सीखना शुरू किया>

विवाह के कुछ साल बाद पति का निधन हो जाने के कारण उन्होंने परिवार की जिम्मेदारी अपने कंधों पर उठा ली और बुनाई कार्य के माध्यम से स्थानीय रोजगार प्राप्त करना शुरू कर दिया। वे कच्छ की ‘खमीर’ नामक संस्था से जुड़ीं और वहां प्लास्टिक रीसाइक्लिंग का काम सीखा।

राजीबेन कहती हैं, “पहले मैं ‘खमीर’ नामक एक एनजीओ में बुनाई का काम करती थी। यहां एक विदेशी महिला डिजाइनर हमारे साथ जुड़ीं और उन्होंने मुझे प्लास्टिक को रीसाइक्लिंग कर विभिन्न उत्पाद बनाने के लिए प्रोत्साहित किया।” 2012 में राजीबेन ने ‘खमीर’ में प्लास्टिक रीसाइक्लिंग का काम शुरू किया।

पर्याप्त प्रशिक्षण हासिल करने के बाद 2018 में उन्होंने स्थानीय महिलाओं को साथ जोड़कर अपने गांव में ही यह काम शुरू किया। प्लास्टिक रीसाइक्लिंग के इस कार्य में उन्हें गांवों को प्लास्टिक के कूड़े से मुक्त करने का उपाय नजर आया, इसलिए उन्होंने अपने इस कार्य को उस बड़े उद्देश्य के साथ जोड़ दिया।

रीसाइक्लिंग प्रक्रियाः कूड़ा बीनने से लेकर अंतिम उत्पाद तक

यह प्रक्रिया चार चरणों से होकर गुजरती है। सबसे पहले प्लास्टिक एकत्र किया जाता है। फिर प्लास्टिक को साफ कर उसे सुखाया जाता है, बाद में प्लास्टिक की पट्टियां काटी जाती हैं और फिर उससे उत्पाद बनाए जाते हैं।

कूड़ा बीनने वाली महिलाएं प्लास्टिक इकट्ठा कर राजीबेन को देती हैं, जिसके एवज में उन्हें निर्धारित पारिश्रमिक का भुगतान किया जाता है। राजीबेन के साथ काम करने वाली महिलाएं प्रतिमाह 6 हजार रुपए तक कमा लेती हैं। अब उनके उत्पाद ऑनलाइन भी उपलब्ध हैं और दिल्ली, मुंबई तथा बैंगलुरु जैसे देश के बड़े शहरों से लेकर लंदन जैसे दुनिया के प्रमुख शहरों तक पहुंच गए हैं।

राजीबेन कहती हैं, “हम महिलाओं को इस काम से जुड़ने के लिए प्रशिक्षण देते हैं। हमारे आसपास माधापर, भुजोड़ी और लखपत जैसे गांवों में भी महिलाएं काम कर रही हैं। हम एक महीने में लगभग 200 शॉपिंग बैग बनाते हैं और अपना उत्पादन ऑर्डर के हिसाब से चालू रखते हैं।”

प्लास्टिक कचरे से विभिन्न उत्पादों के निर्माण का यह काम 10 हथकरघा और 2 सिलाई मशीन पर किया जाता है। उनका वार्षिक टर्नओवर 15 लाख रुपए तक पहुंच गया है। उनके उत्पादों में शॉपिंग बैग, ऑफिस बैग, ट्रे और चश्मा कवर की मांग सबसे ज्यादा रहती है।

राजीबेन को इस बात का संतोष है कि उनके इस काम से स्वच्छता के साथ-साथ पर्यावरण संरक्षण भी होता है और लोगों में जागरूकता पैदा होती है।

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