जो दिखाई देते हैं संकीर्णता के पक्ष में, ऐसे लोगों से नहीं मैं मित्रता के पक्ष में।
जो दिखाई देते हैं संकीर्णता के पक्ष में।
ऐसे लोगों से नहीं मैं मित्रता के पक्ष में।
ज़हर था बातों में उनकी जानते थे सब मगर
आ गए कुछ लोग उनकी धृष्टता के पक्ष में।
तज़रबे मेरे नहीं अच्छे रहे हैं इसलिए
मैं कभी रहता नहीं हूँ शीघ्रता के पक्ष में।
बंधनों में रह के जीना चाहता कोई नहीं
हैं सभी स्वाधीनता – स्वच्छंदता के पक्ष में।
जिससे कविता को समझ पाना ही हो जाए कठिन
हैं नहीं अब लोग ऐसी विद्वता के पक्ष में।
आपसी सद्भाव संकट में नज़र आता है तब
जब खड़े होते हैं हम धर्मांन्धता के पक्ष में।
नाम पर हम आधुनिकता के भले दें तर्क कुछ
पर ज़रूरी है कि हों वो सभ्यता के पक्ष में।
हम मुसीबत में भी अपनी आस्था खोते नहीं
बोलते रहते हैं अपने देवता के पक्ष में।
चीज़ ऐसी है सियासत अच्छे-अच्छे लोग भी
बोलने से डर रहे हैं योग्यता के पक्ष में।
~~~~ओमप्रकाश यती~~~~
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