Jay kumar singh

“तेरी नज़र का गणित !”(math of your eyes)

“तेरी नज़र का गणित !”

हमें एक ही बार में वो हाल बता गई।
वो अपने आखों से फिर से आँख मार गई।।
मोहब्बत का दरिया हद से पार हो जाएगा।
नशीली आखों से न देख इश्क हो जाएगा।।

वो अपने नज़रो के नजारों से,
वो अपनी बात इशारों से समझा गई।
मुझ जैसे राह भटकते इंसान को,
मंजिल का राह बता गई।

गले की हिचकियों को बताकर,
अपना नाम मेरे नाम से जोड़ गई।
कुछ पूछें इसके पहले,
वो अपना जबाब हाँ में बता गई।

अब हाल कुछ ऐसा है …..
कुछ पंक्तियों में अर्ज है …..!

रातों को जागते हुए एक उम्र बीत गई।
जैसे किसी के इंतजार में जवानी लूट गई।।
चेहरे पर चेहरा सजाते है लोग,
मौसम से जल्दी बदल जाते है लोग।।

मंत्रों से फ़ूँका मुझे, बाबाओं ने झाड़ा मुझे।
तू ना गई दिल से हर किसी ने लताड़ा मुझे।।
तेरी उस नज़र का गणित आज तक समझ आया नहीं,
जो ग़ायब हो गई पढ़ा के, प्रेम का पहाड़ा मुझे।।

सुबह तक न आयी जो देके दिलासा मुझे,
भरोसे की भैंस ने दिया पाड़ा मुझे ।।
सच कहूँ …..!
तेरी उस नज़र का गणित आज तक समझ आया नहीं।।2

                                   ✍️जय कुमार सिंह, दोयंगमुख, असम

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