कभी कभी यह मन (Mann)भी कुछ अलग सा किरदार निभाता है,
!! मन Mann!!
Mann: कभी कभी यह मन भी कुछ अलग सा किरदार निभाता है,
कभी लगता है बहुत समझदार है तो कभी बेवकूफी सी कर जाता है.
कभी तो लगता है यह हमारे वश में ही है,
तो कभी खुद हमको ही बेवश सा कर जाता है..
कभी बचढ़ा देता है आसमां पर झट से,
अगले ही पल आसमान से धरा पे लें आता है .
एक पल दें देता है बेइंतेहा खुशियाँ अंदर से,
अगले पल सब धुंधला सा नजर आता है..
कभी लगता है मिल गया सारा जहाँ हमें,
तो कभी सब कोई बेगाना नजर आता है…
लाख समझाना चाहो आप इसे किसी भी तरह,
यह तो मन (Mann) है अपनी मनमानी कहाँ छोड़ पाता है…
आशीष बादल, हमीरपुर, उत्तर प्रदेश
*हमें पूर्ण विश्वास है कि हमारे पाठक अपनी स्वरचित रचनाएँ ही इस काव्य कॉलम में प्रकाशित करने के लिए भेजते है।
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