in memory of a friend: ऐ दोस्त… तुम कहा चले गए इस भीड़ में छोड़ तन्हा हमें: ममता कुशवाहा
in memory of a friend: ऐ दोस्त….. अब तो करती हूँ दूआ बस तेरे रूह(आत्मा) को मिले सुकून…
ऐ दोस्त
तुम कहा चले गए इस भीड़ में छोड़ तन्हा हमें
ना जाने क्या बैर था रब को हमारी दोस्ती से,
कि बुला लिया तुझे अपने पास
कर दिया हमारी महफ़िलो में एक दोस्त की कमी,
ऐ दोस्त
ये अब कौन कहेगा हमसे
कि “दीपक हूँ खुद को जलाकर
दूसरे के जीवन को प्रकाशमय करता हूँ ”l
अब तो बस तेरे अल्फाज ही सताती है,
जो तुम कहा करते थे बनऊंगा उच्च अधिकारी
करूँगा देश सेवा तमाम उम्र,
मिटाऊंगा, भ्रष्टाचारी, भूखमरी इत्यादि,
कर सबको शिक्षित करूँगा दूर बेरोजगारी,
बस सवाल है रब से क्यों दिखाया ख़्वाब
उस घर को जिसके चिराग जलाने से
पहले ही बझाने थे…
ऐ दोस्त
अब तो करती हूँ दूआ बस
तेरे रूह(आत्मा) को मिले सुकून
बड़ा निश्छल मन के चंचलता से परिपूर्ण
था तुम्हारा व्यक्तित्व…
और तुम्हारे कलम भी चलती थी
बेसुमार उम्दा …..
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