अभी मासूम है मासूमियत जिंदा रहने दो
ग़ज़ल
जो सूरज की मानिंद जलना सीख जाएगा
वो हर अंधेरे से निकलना सीख जाएगा।
न कोई हाथ पकड़ो न कोई सहारा दो उसे
वो खुद गिरकर संभलना सीख जाएगा।
अभी मासूम है मासूमियत जिंदा रहने दो
बड़ा होगा फितरत बदलना सीख जाएगा।
दुनियावी दस्तूर लगते पैरो में जकड़न से
तुम सीखे वो भी चलना सीख जाएगा।
यहाँ पर हर शख्स अलग किरदार रखता है
वो भी देखना सांचे में ढलना सीख जाएगा।
हमें पूर्ण विश्वास है कि हमारे पाठक अपनी स्वरचित रचनाएँ ही इस काव्य कॉलम में प्रकाशित करने के लिए भेजते है।
आप अपनी रचना हमें ई-मेल करें
writeus@deshkiaawaz.in