Ajeeb sa hai kissa: अजीब सा है किस्सा: ममता कुशवाहा

Ajeeb sa hai kissa: अजीब सा है किस्सा

अजीब सा है किस्सा ये गाँव का
हा अजीब सा हिस्सा ये गाँव का
किस्सा गाँव -शहर, घर -घर का
पूराने रीति-रिवाजों का टूटने का ,

सुनो वो दौर गुजर जा रहा
जहाँ होता था एक बुढा पेड़
जिसके होता था विशाल छाया
जो कर देता सबको शितल,

अपने पावन पत्ते के कण-कण से
शहर-शहर, गाँव-गाँव ये किस्सा हुआ
नया प्रचार-प्रसार हाँ वह दौर गुजरा जा रहा
देखो जहाँ होती थी एकता आपस में,

जहाँ होती थी रिश्तों में अटूट प्रेम
और बड़े बुजुर्गों ही हुआ करते
परिवार के विशाल छाया हमारे
हाँ वह दौर गुजरा जा रहा देखो ,

आधुनिकता के इस माया जाल में
होते जा रहे लोग स्वार्थी, लोभी
ना कदर करते अपने संस्कारों का
बस फिक्र करते अपने आप की ,

तो कहा से होगा विकसित समाज
जब करते सब अपना-अपना का पाठ
इस आधुनिकता के जमाने में अब
अपने ही रिश्ते नाते होते जा रहे पराये।

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