वात रोग में अरबी
आयुर्वेद से आरोग्य – 09
- वानस्पतिक नाम- Colocasia esculenta (कोलोकेसिया एस्कुलेंटा)
- कुल- एरेसी (Araceae)
- हिन्दी- घुइयां, अरबी
- अंग्रेजी- टारो, कोकोयम, ऐवी (Taro, Cocoyam, Aivi) संस्कृत- अलुकम, अलुकी, अलुका, काचवी
भारत के अनेक प्रांतों में अरबी या घुईयाँ की खेती इसके कंद के लिए की जाती है। अरबी भारतीय किचन की एक प्रचलित सब्जी भी है। अरबी का वानस्पतिक नाम कोलोकेसिया एस्कुलेंटा है अरबी के पत्तों से बनी सब्जी बहुत स्वादिष्ट होती है। इसके पत्तों में बेसन लगाकर भजिये तैयार किए जाते हैं और माना जाता है कि ये भजिये वात रोग से पीड़ित व्यक्ति को जरूर खाना चाहिए। जहाँ एक ओर अरबी का कंद शक्ति और वीर्यवर्धक होता है वहीं इसकी पत्तियाँ शरीर को मजबूत बनाती हैं। आदिवासी हर्बल जानकारों की मानी जाए तो अरबी के कंदों की सब्जी का सेवन प्रतिदिन करने से हृदय मजबूत होता है।
अरबी की पत्तियों के डंठल को तोड़कर जलाया जाए और इसकी राख को नारियल के तेल के साथ मिलाकर फोड़ों और फुन्सियों पर लेपित किया जाए तो काफी फायदा होता है। प्रसव के बाद माताओं में दूध की मात्रा कम बनती हो तो अरबी की सब्जी प्रतिदिन देने से अतिशीघ्र फायदा होता है। अरबी के पत्ते डण्ठल के साथ लिए जाए और पानी में उबालकर पानी को छान लिया जाए, इस पानी में उचित मात्रा में घी मिलाकर 3 दिनों तक दिन में दो बार दिया जाए तो लंबे समय से चली आ रही गैस की समस्या में फायदा होता है। प्रतिदिन अरबी की सब्जी का सेवन उच्च-रक्तचाप में भी काफी उपयोगी है। (साभार: आदिवासियों की औषधीय विरासत पुस्तक से )
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