Red chilli: मिर्च सिर्फ तीखी नहीं होती
Red chilli: सूखी लाल मिर्च के बीजों के तेल (1 बूँद) को बताशे पर टपकाकर दूध या छाछ के साथ लेने से प्रमेह में बहुत लाभ होता है।
- वानस्पतिक नाम apsicum annuum (कैप्सिकम एनम )
- कुल- सोलेनेसी (Solanaceae)
- हिन्दी- मिर्च, गाच मरिच, लाल मिर्च
- अंग्रेजी- रेड चिल्ली, पपरिका (Red Chilli, Paparika)
- संस्कृत- मरिचिका, बरुहि, कटुवरा, लंका
Red chilli: मिर्च का स्वाद तीखा होता है। यह दुनिया भर में किचन मसाले के रूप में काफी मशहूर है। ना सिर्फ मसाले के तौर पर बल्कि मिर्च का उपयोग अनेक व्यंजनों और अचार के रूप में प्रचलित है। मिर्च का वानस्पतिक नाम कैप्सिकम एनम है। सूखी लाल मिर्च के बीजों के तेल (1 बूँद) को बताशे पर टपकाकर दूध या छाछ के साथ लेने से प्रमेह में बहुत लाभ होता है।
आदिवासी मानते हैं कि बरसात के मौसम के दौरान होने वाले फोड़े-फुंसियों और खुजली में खाने के साथ अधिक मात्रा में मिर्च और मिर्च के तेल का सेवन करना चाहिए, फोड़े फुंसी जल्दी ठीक जाते हैं। पातालकोट के आदिवासी लगभग 100 ग्राम सूखी लालमिर्च (Red chilli) को आधा लीटर सरसों के तेल में डालकर पकाने के लिये रख देते हैं, और फिर इसे छानकर रख लेते हैं। इनका मानना है कि इस तेल से कई सालों पुरानी फुंसियों को भी ठीक किया जा सकता है।
वैसे डाँग- गुजरात के आदिवासी इस तेल को मिर्च का तेल कहते हैं और इस तेल से सूजन वाले शारीरिक अंगों पर लगाकर सूजन दूर करने का दावा भी किया जाता है। इसी तेल से कमर और जाँघों की मालिश की जाए तो दर्द में आराम अतिशीघ्र मिलता है। पातालकोट के आदिवासी लाल सूखी मिर्ची (Red chilli) को पानी में उबालते हैं। इस पानी का छिड़काव खाट, लकड़ी के फर्नीचर आदि पर करते हैं जिससे खटमल मर जाते हैं और दुबारा नहीं आते। डाँगी आदिवासी इस पानी का छिड़काव अपनी फसलों पर भी करते हैं, कहा जाता है कि यह एक जबरदस्त कीटनाशक होता है। (साभार: आदिवासियों की औषधीय विरासत पुस्तक से )