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Vijayadashami 2022: सर्व मंगल मांगल्ये….

Vijayadashami 2022: विजयादशमी’ का उत्सव लोक-मंगल के लिए शक्ति के आवाहन का भव्य अवसर है। यह अपने ढंग का अकेला त्योहार है जो शारदीय नवरात्र और भगवान श्री राम की विजय-गाथा के पावन स्मरण से जुड़ा हुआ है।

Vijayadashami 2022: आश्विन महीने के शुक्ल पक्ष की दशमी की तिथि को मनाया जाने वाला ‘विजयादशमी’ का उत्सव लोक-मंगल के लिए शक्ति के आवाहन का भव्य अवसर है। यह अपने ढंग का अकेला त्योहार है जो शारदीय नवरात्र और भगवान श्री राम की विजय-गाथा के पावन स्मरण से जुड़ा हुआ है। पश्चिम बंगाल, आसाम, त्रिपुरा, बिहार, दिल्ली, उत्तर प्रदेश, गुजरात, हिमाचल आदि में इन दिनों दुर्गा-पूजा की धूम मची रहती है।

यह उत्सव स्वयं को शुद्ध कर मातृ-शक्ति का आह्वान करने और अपनी सामर्थ्य के संवर्धन का अवसर देता है। भारतीय उपमहाद्वीप की यह अत्यन्त प्राचीन आध्यात्मिक संकल्पना है जिसके संकेत सिंधु घाटी की सभ्यता के अवशेषों में भी मिलते हैं। भारत के बाहर बंगलादेश, नेपाल, कम्बोडिया और इंडोनेशिया तक दुर्गा की उपस्थिति मिलती है।

‘दुर्गा’ शब्द का अर्थ अजेय होता है और तैत्तिरीय आरण्यक में इसका उल्लेख मिलता है। देवी के आठ से अट्ठारह भुजाओं तक का वर्णन मिलता है। वे दुष्ट दैत्यों के नाश के लिए नाना प्रकार के अस्त्र-शस्त्रों से युक्त रहती हैं। मार्कण्डेय पुराण में ही ‘दुर्गा सप्तशती’ है जो तेरह अध्यायों में देवी के माहात्म्य का सरस काव्यात्मक वर्णन है। अपने कल्याण की कामना के साथ आस्थावान भक्त बड़े ही विधि-विधान से कवच, अर्गला, कीलक और रात्रि सूक्त के साथ इसका स्वयं पाठ करते हैं अथवा किसी पुरोहित से कराते हैं।

दुर्गा सप्तशती के अध्यायों में देवी द्वारा मधु-कैटभ, महिषासुर, धूम्रलोचन, चंड-मुंड, रक्तबीज, शुम्भ-निशुम्भ आदि विभिन्न राक्षसों के संहार और देवताओं तथा ऋषियों द्वारा देवी की स्तुति का समावेश किया गया है। देवी की आराधना के प्रमुख मंदिर ‘शक्ति-पीठ’ कहे जाते हैं और उनकी गणना कई तरह से की गयी है जिनमें इक्यावन पीठों का विशेष माहात्म्य है। लोक-प्रसिद्ध शक्ति-पीठ हैं: विंध्यवासिनी, त्रिपुरसुंदरी, कालिका, वैष्णवी, ज्वालामुखी, महामाया, दाक्षायणी, कामाख्या, ललिता, चंद्रभागा, नंदिनी, इंद्राक्षी, तथा कपालिनी।

देश के अनेक भागों में नवरात्र की अवधि में शक्ति, सुरक्षा, बल और मातृत्व की देवी दुर्गा, जो ‘जगदम्बा’ के रूप में लोक मानस में बिराजती हैं, उनकी आराधना बड़े उत्साह और निष्ठा के साथ की जाती है। हमारा सारा अस्तित्व ही देवी द्वारा अनुप्राणित है। ऐसा इसलिए भी है कि माता कभी बच्चे का अनभला नहीं सोचती या चाहती है, बच्चा तो कुपुत्र हो सकता पर माता कभी कुमाता नहीं होती। ऐसे में देवी की सत्ता अत्यंत व्यापक ढंग से परिकल्पित की गयी है।

दुर्गा सप्तशती के पाँचवे अध्याय में देवी को चेतना, बुद्धि, निद्रा, क्षुधा, छाया, शक्ति, तृष्णा, क्षांति, जाति, लज्जा, शांति, श्रद्धा, कांति, लक्ष्मी, वृत्ति, स्मृति, दया, तुष्टि, माता, भ्रांति, व्याप्ति और चिति के रूप में स्मरण और नमन किया गया है। मनुष्य जीवन का ताना-बाना अनेक स्तरों वाला है और शारीरिक, मानसिक और आध्यात्मिक सभी स्तरों होने वाले अनुभवों और कार्य परस्पर सम्बन्धित होते हैं और एक दूसरे को प्रभावित करते हैं। इस तरह हमारी और आस्था और विश्वास हमें ऊर्जा प्रदान करते हैं।

देवी-कवच में नव दुर्गा के वर्णन में शैलपुत्री, ब्रह्मचारिणी, चंद्रघंटा, कूष्मान्डा, स्कंद माता, कात्यायनी, कालरात्रि, महागौरी तथा सिद्धिदात्री का उल्लेख किया गया है। इनके अतिरिक्त चामुंडा, वाराही, ऐंद्री, वैष्णवी, माहेश्वरी, कौमारी, लक्ष्मी, ईश्वरी, ब्राह्मी की भी माताओँ के रूप चर्चा आती है। सभी दिशाओं और शरीर के सभी अंगों की रक्षा के लिए भी देवी के विभिन्न रूपों का आवाहन किया गया है।

एक स्थान पर चतुर्दिक उन्नति की इच्छा से कहा गया है कि जया आगे से, विजया पीछे से, बाएँ से अजिता और दक्षिण से अपराजिता हमारी रक्षा करें। अर्गला स्तोत्र में जयंती, मंगला, काली, भद्रकाली, कपालिनी, दुर्गा, क्षमा, शिवा, धात्री, स्वाहा और स्वधा नाम वाली जगदंबिका का स्मरण किया गया है।

आयोजन की परिणति श्रीराम द्वारा लंकापति प्रतापी राक्षस रावण के विनाश के प्रतीक रावण-दहन में होती है। इस दिन के पहले अनेक क्षेत्रों में राम-लीला का आयोजन होता है जिसमें श्रीराम के चरित की विभिन्न घटनाओं का मंचन किया जाता है। शांति और धर्म की व्यवस्था को नष्ट करने को तत्पर आसुरी शक्ति से पार पाने और सत्य धर्म पर टिका राम राज्य स्थापित करने के लिए सन्न्द्ध श्रीराम की कथा सतत संघर्ष, परीक्षा और मर्यादा की रक्षा के लिए युगों-युगों से प्रेरित करती आ रही है।

आज के जीवन में जब नैतिक मूल्यों का क्षरण हो रहा है विजयादशमी आश्वस्त करती है। इसकी पूरी की पूरी संकल्पना जीवन में अभय की प्रतिष्ठा और शक्ति के जागरण के महान अनुष्ठान के रूप में परिचालित है और तब आशा बंधती है – होगी जय, होगी जय, हे पुरुषोत्तम नवीन!

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