Super Tech’s multi-storey twin towers: हम कहाँ जा रहे हैं ?

Super Tech’s multi-storey twin towers: टी वी पर नोयडा में सुपर टेक की बहुमंज़िले ट्विन टावरों के गिराने और उससे उड़ते धूल धुआँ भयावह दृश्य दिखाने के कुछ समय बाद उसके निर्माता का बयान आ रहा था कि उन्होंने सब कुछ नियम से किया था और हर कदम पर ज़रूरी अनुमति भी ली थी। शायद ८०० करोड़ की लागत की यह सम्पत्ति थी जिसे १० सिर्फ़ सेकेंड में जमीदोज कर दिया गया। वहाँ के निवासी कुछ राहत की साँस ले रहे हैं। निश्चय ही यह एक क़ाबिले गौर घटना है जो भ्रष्टाचार होने और उस पर लगाम लगाने इन दोनों ही पक्षों पर रोशनी डालती है। टी वी के ऐंकर ने यह भी बताया कि सालों से चलते इस पूरे मामले में काफ़ी बड़ी संख्या में अधिकारी संलिप्त थे पर तीन के निलम्बन के सिवा शेष पर कोई कारवाई नहीं हुई है।

उत्तर प्रदेश के मंत्री का बयान था कि जाँच के अनुसार उचित कार्रवाई की जाएगी। कुल मिला कर यह पूरा घटना चक्र भारत में भ्रष्टाचार की व्यापक उपस्थिति के ऊपर बहुत कुछ कहता है। भ्रष्टाचार-निरोधी उपाय कमजोर और समय-साध्य होने के कारण इतने लचर हैं कि उनका ज़्यादा असर नहीं पड़ता। एक पखवाड़ा पहले पंद्रह अगस्त के दिन लालक़िले से बोलते हुए प्रधानमंत्री ने भ्रष्टाचार की समस्या की विकरालता की ओर देशवासियों का ध्यान दिलाया था। यह दुखद है आज प्रतिदिन के समाचारों में क़िस्म क़िस्म के भ्रष्टाचारों की घटनाओं की ही संख्या सर्वाधिक होती है। ये घर, परिवार, निजी और सरकारी संस्थाओं हर कहीं फ़ैलता जा रहा है और इसका परिणाम जन, जीवन और धन की हानि के रूप में दिख रहा है जो सामाजिक जीवन को विषाक्त और खोखला करता जा रहा है। आर्थिक लोभ के चलते अधिकाधिक कमाई करने के लिए नीचे से लेकर ऊपर तक लोग भरोसे, विश्वास और ज़िम्मेदारी को दांव पर लगा रहे हैं।

पश्चिम बंगाल और झारखंड में जिस तरह शासन के उच्च स्तर पर गहन भ्रष्टाचार के तथ्य सामने आए हैं वह आम आदमी के भरोसे को तोड़ने वाला है। आर्थिक अपराध करने वाले किस तरह बड़े पैमाने पर धोखाधड़ी कर रहे हैं। आजकल लोग उन अवसरों की तलाश में रहते पाए जा रहे हैं जहां कम से कम लागत में ज़्यादा से नफ़ा कमाया जा सके और लोग उनके झाँसे में पड़ कर नुक़सान उठाते रहते हैं । इसके लिए झूठ, बेईमानी, घूस और ग़ैर क़ानूनी रास्ते अपनाए जाते हैं। पर इसका संस्थागत रूप भी बन चुका है।

मसलन ज़मीन जायदाद की रजिस्ट्री, नक़्शा पास करने वाला दफ़्तर, अग्नि-शमन विभाग, कचहरी और पुलिस थाना, चुंगी आदि बहुत सी ऐसी जगहें हैं जहां बिना सुविधा शुल्क के काम ही नहीं चलता। इसलिए इसके केंद्रों पर तैनाती के लिए सेवारत लोग दक्षिणा देते लेते हैं और इस तरह ग़ैर वाजिब धन उगाही स्थापित व्यवस्था का स्थायी अंग बन चुका है। इसमें नीचे से ऊपर तक सबका हिस्सा बंधा होता है जो आपसी सहमति से बंटता है। बेरोज़गारी के दौर में नौकरी देने के लिए घूस देने लेने के मामले नीचे से ऊपर तक व्यवस्था को और भी रुग्ण और कमजोर बना रहे हैं। शिक्षा के क्षेत्र में भी जहां चरित्र अत्यंत महत्वपूर्ण होता है और समाज पर व्यापक असर पड़ता है भ्रष्टाचार तेज़ी से पाँव पसार रहता है।

श्रीमद्भागवत में एक बड़ा रोचक प्रसंग आता है। कृष्ण भगवान के पृथ्वी से जाने के बाद धर्म बैल का रूप धार कर एक पैर पर चलता हुआ घूम रहा था। रास्ते में उसे गाय के रूप में श्रीहीन पृथ्वी मिली। उससे पूछा कि तुम क्यों दुखी हो? कहीं तुम मेरे लिए तो चिंता नहीं कर रही या फिर दुर्भिक्ष के कारण तो नहीं उदास हो? या फिर राक्षस जैसा व्यवहार कर रहे मनुष्यों के कारण तो परेशान नहीं हो? या राजा कलियुगी और जनता स्वेच्छाचारी हो रही है इस बात से उदास हो? या फिर कृष्ण के लीला संवरण से विचलित हो? बताओ आख़िर क्या बात है? लगता है काल ने तुम्हारा सौभाग्य छीन लिया है! पृथ्वी ने कहा कि धर्म तुम तो जानते ही हो जिनके कारण तुम चारों पैरों से युक्त थे जिनमें सत्य, पवित्रता, दया, क्षमा, संतोष सरलता, शाम, दम, ताप, समता, तितिक्षा, उपरति, ज्ञान, वैराग्य, वीरता, तेज, बल, विनय, शील, साहस, स्थिरता, गम्भीरता, आस्तिकता , कीर्ति, गौरव, निरहंकारिता जैसे प्राकृत गुण और महत्वाकांक्षी जनों के शरणागत वत्सलता आदि गुण उनकी सेवा करने के लिए निरंतर लगे रहते थे ऐसे कृष्ण के जाने के बाद पापमय कलियुग की कुदृष्टि का शिकार हो गया। यह देख मुझे कष्ट है।

मैं देवताओँ और मनुष्यों सबके लिए दुखी हूँ और सोचती हूँ की मुझे क्यों मुझे छोड़ दिया। तभी वहाँ राजा परीक्षित आ गए। उन्होंने देखा कि एक राजवेशधारी शूद्र गाय बैल के जोड़े को पीटा रहा है। उन्होंने उसे ललकारा और बैल से पूछा की आप श्वेत वर्ण कोई देवता तो नहीं हैं? आप और गो माता कष्ट न करें। मैं हूँ न ! राजा का धर्म है दुखियों का दुःख दूर करे। मैं इसे मार डालूँगा। बैल रूप वाले धर्म ने कहा कि दुःख के कई कारण हो सकते हैं – खुद मनुष्य, उसका प्रारब्ध, उसके कर्म, उसका स्वभाव, ईश्वर, और अतर्क्य तथा अनिर्वचनीय कारण भी हो सकता है, आप जो भी मानें। राजा परीक्षित को लगा कि हो न हो बैल के रूप धरे हुए यह धर्म ही हैं। वे धर्म से बोले धर्मदेव ! सत्य युग में आपके चार चरण थे : तप, पवित्रता, दया और सत्य । अब आपका सिर्फ़ एक चरण है सत्य जिस पर आप चल रहे हैं। असत्य से पुष्ट कलियुग उसे भी छिनना चाहता है। राजा परीक्षित ने धर्म और पृथ्वी को सांत्वना दी और कलियुग को मारने के लिए तलवार उठाई। उसने उनके पाँव पकड़ लिए। पर राजा ने कहा तूँ मेरे राज्य से भाग जा। तेरे राजाओं के शरीर में रहने से लोभ, झूठ, चोरी, दुष्टता, स्वधर्म-त्याग, दरिद्रता, कपट, कलह, दम्भ, और तमाम दूसरे पाप बढ़ रहे हैं ।

कलि ने कहा ‘ राजन आप हर जगह मेरे पीछे लगे हैं। बताएँ कहाँ जाऊँ? आपकी आज्ञा मानूँगा। तब परीक्षित ने कहा – द्यूत या जूआ, मद्यपान, स्त्री-संग, और हिंसा यहाँ असत्य, मद, आसक्ति और निर्दयता इनमें जा कर रहो। इनमें अधर्म रहता है। फिर इसमें सुवर्ण भी जोड़ दिया। इस तरह कुल पाँच स्थान- झूठ, मद, काम, वैर, और रजोगुण ऐसे रहे जहां अधर्म रहने लगा। इसलिए आत्मकल्याण चाहने वाले को इनसे बचाना चाहिए। धार्मिक राजा, लौकिक नेता, धर्मोपदेशक गुरु सबको सावधानी से इनका त्याग कर देना चाहिए। फिर परीक्षित ने वृषभ रूपी धर्म के तपस्या, शौच और दया के तीन पैर जोड़ दिए और पृथ्वी को आश्वस्त किया।

श्रीमद्भागवत में ही आगे यह उल्लेख आता है कि धर्म की पत्नियाँ हैं श्रद्धा, मैत्री, दया, शांति, तुष्टि, पुष्टि, क्रिया, उन्नति, बुद्धि, मेधा, तितिक्षा, ह्री और मूर्ति। इन सबके पुत्र हैं शुभ, प्रसाद, अभय, सुख, मोद, अहंकार, योग, दर्प, अर्थ, स्मृति, क्षेम, और प्रश्रय (विनय)। आज चारों ओर धर्म का लोप हो रहा है और उसके दुष्परिणाम भी दिख रहे हैं। धर्म से हीन व्यक्ति को पशु कहा गया है : धर्मेंणहीना: पशुभि: समाना:। धर्म सबको बांध कर रखता है।भौतिक साधन और सुविधा अंतत: सीमित होती है।सीमाओं का अतिक्रमण करते हुए लोभ की चकाचौंध विनाशकारी है। आचार अर्थात् परस्पर उचित व्यवहार करना ही श्रेयस्कर है। धर्म में ही गति है।

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