Modern dalit history

Makers of Modern Dalit History: मेकर्स आफ मॉडर्न दलित हिस्ट्री

बुक रिव्यू :Makers of Modern Dalit History

Shirish Kashikar
डॉ शिरीष काशीकर, अहमदाबाद

क्या आप जानते हैं कि भारत की सबसे पहली दलित महिला ग्रेजुएट कौन थी? क्या आप जानते हैं उसी महिला ने केरला में महिलाओं को शरीर के ऊपर के भाग को  खुल्ला रखना चाहिए इस प्रथा को तोड़ा था? क्या आप जानते हैं सावित्रीबाई फुले ने ऐसा क्रांतिकारी काम किया था जिसने समाज की रूढ़ियों की नीव को हीला के रख दिया  था ? क्या आप जानते हैं जलियांवाला बाग जैसे घिनौने काम को अंजाम देनेवाले जनरल डायर को “सजा देने वाले” शहीद उधम सिंह कीस परिवार से आते थे? अगर  इनमें से एक भी प्रश्न का जवाब आपको मालूम नहीं है समझ लीजिए की आपको यह पुस्तक (Makers of Modern Dalit History)“द मेकर्स ऑफ मॉडर्न दलित हिस्ट्री” पढ़ने का समय आ गया है।

सामान्यतः जब भारत में दलित इतिहास, दलित चेतना इन शब्दों की चर्चा होती है तो बात घूम फिर कर भारत रत्न डॉ. बाबासाहेब आंबेडकर पर आकर रुक जाती है किंतु डॉक्टर आंबेडकर ने जिन विभूतियों की चेतना में से प्रेरणा ली थी और डॉक्टर आंबेडकर के बाद भी उनकी दलित चेतना की मशाल को जिन्होंने जलाए रखा उन दलित रत्नों को इस किताब में स्थान दिया गया है। हमारे आदि लेखक महर्षि वेदव्यास और महर्षि वाल्मीकि से लेकर आधुनिक भारत के डॉ. आंबेडकर तक का यह सफर  एक लंबे दौर से गुजरता है जिसमें दलित पीड़ा और दलित संघर्ष के साथ-साथ दलित विचार में परिवर्तन, संघर्ष और समाज में अपना स्थान पाने की जद्दोजहद भी शामिल है।

इस पूरी प्रक्रिया में जिन लोगों ने अपना योगदान दिया ऐसे दलित नायकों को इस पुस्तक में स्थान दिया गया है, ऐसे पीड़ित, शोषित समाज के असली नायक जो इतिहास के पन्नों में या तो अपना स्थान नहीं पा सके या उन्हें जानबूझकर भुला दिया गया। इस किताब की सबसे बड़ी खासियत यह है कि इसमें पूरे भारत के विभिन्न राज्यों में से दलित चेतना को प्रज्वलित करने वाले पुरुषों एवं महिलाओं को स्थान दिया गया है।

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जिस प्रश्न से हमने शुरुआत की थी उसका उत्तर देकर हम आगे चलते हैं। केरला की दक्षायणी वेलयुद्न भारत की पहली दलित महिला ग्रेजुएट थी और उन्होंने एक और रिकॉर्ड बनाया था वह भारत की कांस्टीट्यूएंट असेंबली में चुनी गई १५ महिलाओं में एक थी। दक्षायणी का अर्थ होता है दुर्गा। उनका व्यक्तित्व और उनके विचार भी वैसे ही स्वतंत्र थे। केरला में पहले महिलाएं कमर के ऊपर का वस्त्र नहीं पहनती थी। दक्षायणी ने इस प्रथा को तोड़ा और वस्त्र पहन कर समाज को ललकारने वाली वह पहली दलित महिला बनी।

सावित्रीबाई फुले ने महाराष्ट्र की दलित क्रांति और महिला शिक्षण क्रांति में अपनी पूरी जिंदगी लगा दी। अपने पति यानी कि महात्मा फुले की चिता को मुखाग्नि देने वाली दलित समाज की और तत्कालीन समाज की वह पहली महिला बनी। उनके इस कदम ने तत्कालीन समाज को झकझोर के रख दिया। उन्होंने विधवा विवाह को प्रोत्साहन दिया और बाल विवाह का जबरदस्त निषेध किया।

जलियांवाला बाग के खलनायक जनरल डायर को गोलियों से भूनने वाले शहीद उधम सिंह भी एक दलित परिवार से ही आते थे। कांबोज परिवार से आने वाले उधम सिंह गदर पार्टी के संगठन में बहुत महत्वपूर्ण स्थान रखते थे। यह वही गदर पार्टी थी जिसने इस देश को स्वतंत्र और संगठित देखना चाहा। गदर पार्टी के ५०% से भी ज्यादा क्रांतिकारी कार्यकर्ता दलित समाज के प्रतिनिधि थे।

  • भारत रत्न डॉ. बाबासाहेब आंबेडकर के जाने के बाद भी देश में दलित चेतना की ज्योत को प्रज्वलित रखने वाले कुछ मुखर नेताओं में एक नाम है श्री कांशीराम का। श्री कांशीराम ने कहा था “आंबेडकर पुस्तकों से सीखे किंतु मैं अपनी जिंदगी और लोगों से सीखा, उन्होंने किताबे एकट्ठा की और मैंने लोगों को इकट्ठा करने का प्रयास किया।” बहुजन समाज पार्टी के नाम से आज सारे देश में बहुजन समाज को संगठित करनेवाली एक राजनीतिक ताकत को खड़ी करने का श्रेय  श्री कांशीराम  को जाता है।

हालांकि यह किताब (Makers of Modern Dalit History) सिर्फ कुछ जाने माने या जाने पहचाने दलित नामों के बारे में ही बात नहीं करती है किंतु कुछ ऐसे लोगो के जीवन का परिचय करवाती है जिनके बारे में शायद हमने सुना भी नहीं या हमें यह पता भी नहीं था कि वह बहुजन समाज से ताल्लुक रखते हैं, चाहे वह केरला के अय्यंकली हो, हमारे देश के पूर्व उप प्रधानमंत्री बाबू जगजीवन राम हो, केरला की ही दक्षायणी वेलयुद्न हो, गुर्रम जाशुआ हो, गुरु रविदास, कबीरदास, श्री काशीराम, पहले दलित राष्ट्रपति के. आर. नारायणन, नंदनार, रानी लक्ष्मीबाई के कंधे से कंधा मिलाकर युद्ध में लड़ने वाली रानी झलकारी बाई,  जोगेंद्र नाथ मंडल, संत जनाबाई, सावित्रीबाई फुले, सोयराबाई, शहीद उधम सिंह, महर्षि वाल्मीकि, महर्षि वेदव्यास और भारत रत्न डॉ. बाबासाहेब आंबेडकर इन सभी मानव रत्नों को यहां आप चमकते हुए देख सकते हैं।

इस पुस्तक (Makers of Modern Dalit History) की प्रस्तावना में लेखक द्वय कहते हैं कि इन व्यक्तित्वो को पाठकों के सामने प्रस्तुत करके हम उन्हें इस बात से वाकिफ करवाना चाहते हैं कि कैसे इन लोगों के साथ अनअपेक्षित तिरस्कार हुआ है जो कि समाज में समानता, समता हमेशा ढूंढ रहे थे। और इन रत्नों की क्षमता का परिचय हमे तब होता है जब हम डॉ.बी. आर. आंबेडकर का यह वाक्य पढ़ते हैं “हिंदुओं को वेद चाहिए थे उन्होंने वेदव्यास को बुलाया, जो जाति से हिंदू नहीं थे। हिंदुओं को महाकाव्य चाहिए था उन्होंने वाल्मीकि को बुलाया, जो कि अछूत थे। हिंदुओं को संविधान चाहिए था,उन्होंने मुझे बुलाया।”

Makers of Modern Dalit History

यह किताब (Makers of Modern Dalit History) सिर्फ इन दलित रत्नों को हमारे सामने लाती हैं ऐसा नहीं है, कुछ और भी महत्वपूर्ण बातें इसमें शामिल है। लेखक द्वय प्रस्तावना में लिखते है “नेशनल क्राइम रिकॉर्ड ब्यूरो भारत सरकार के गृह मंत्रालय का हिस्सा है जिसकी रिपोर्ट कहती हैं कि जाति आधारित तिरस्कार के केसेस में २००७ से २०१७ के दशक में ६६% इजाफा हुआ है…२०१० की नेशनल ह्यूमन राइट्स कमीशन की रिपोर्ट तो और भी चौंकाने वाली बात करती है जिसमें कहा गया है कि हर १८ मिनट में एक दलित के साथ क्राइम होता है, हर दिन औसतन ३ दलित महिलाओं पर बलात्कार होते हैं, २ दलितों की हत्या होती हैं, और दो दलितों के घर जलाए जा रहे हैं।” दलितों के लिए जमीन का महत्व समझाते हुए लेखक द्वय कहते हैं कि “जिन राज्यों में जमीनदारी का इतिहास रहा वहां खेत मजदूर के तौर पर ज्यादातर दलित ही रहे। जिसमें बिहार, हरियाणा, पंजाब, गुजरात, आंध्र प्रदेश, तमिलनाडु और केरल है। ज्यादातर दलित किसान खेत मजदूर है और ज्यादातर जिलों में यह संख्या ९०% से भी ज्यादा है।”

पर सब कुछ दलितों के साथ गलत ही हो रहा है ऐसा भी नहीं है। २०११ के बाद भारत के दलितों में शिक्षा का दर सामान्य श्रेणी के नागरिकों से ज्यादा है। यह ५४.७ % से बढ़कर ६६.१ % हो गया। यानी ११.४ % की बढ़ोतरी। जबकि सामान्य श्रेणी के नागरिकों में यह ६४.८ से बढ़कर ७३% हुआ है यानी ८.२% की बढ़ोतरी।

इस देश ने दलित राष्ट्रपति, दलित उप प्रधानमंत्री, दलित लोकसभा स्पीकर जी. एम. सी. बालयोगी दिए हैं। तो कई वाइस चांसलर, शिक्षाविद, फिल्म मेकर्स, नौकरशाह, नेता और बुद्धिजीवी नागरिक भी दिये है। भारत की राजनीति में भी एक बड़ा परिवर्तन दलित ला रहे हैं। २०१४/१५ में मध्य प्रदेश के ग्राम पंचायत के चुनाव में दलितों ने १८१८३ सीटें जीती थी जो कि कुल मिलाकर २२६०४ सीटों का ८०% है जबकि कुल सीटों के ६७% यानी १५१३६ सीटें ही दलितों के लिए रिजर्व थी, यह एक नई राजनीतिक चेतना का संचार है। दलित इंडियन चैंबर आफ कोमर्स एंड इंडस्ट्री की मिलिंद  कांबले ने स्थापना की। इसके करीब करीब ५००० छोटे-बड़े सदस्य हैं। और इसी की वजह से प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की स्टैंड अप इंडिया योजना में देश की पब्लिक सेक्टर बैंकों की १,२५,००० शाखाओं को शेड्यूल कास्ट शेड्यूल ट्राइब उद्यम साहसिको को आर्थिक सहायता देने का आदेश दिया गया है।

आज के नए दौर में जहां सोशल मीडिया हम सब पर हावी हो रहा है और लंबे लंबे लेख या बहुत मोटी किताबें पढ़ना लोग अब लाजमी नहीं समझते हैं ऐसे वक्त में नई पीढ़ी को  देश के इन मानवरत्नों का सुंदर परिचय कराने का काम इन दोनों लेखकों ने किया है। हालांकि इसमें कुछ नाम और भी जुड़ सकते थे और जिन दलितरत्नों के बारे में यहां लिखा गया है उनके बारे में थोड़ी और जानकारी भी पाठकों को मिलनी चाहिए थी। उन्होंने जो आजीवन संघर्ष किया उस संघर्ष में से थोड़ी बहुत भी प्रेरणा नई पीढ़ी के युवाओं को मिली तो हो सकता है किसी का जीवन बदल जाए।

पेंगुइन बुक्स द्वारा प्रसिद्ध यह किताब लेखकद्वय सुदर्शन रामभद्रन और गुरुप्रकाश पासवान ने लिखी है। सुदर्शन एक लेखक, पत्रकार और कॉलमिस्ट हैं, जबकि गुरुप्रकाश पासवान पेशे से वकील और कोलमिस्ट है।यह किताब एमेजॉन पर उपलब्ध है जिसकी किम्मत ३९९ रूपये है। (डिस्क्लेमर: ये लेखक के निजी विचार हैं.)

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