अंतर्राष्ट्रीय महिला दिवस परिसंवाद- स्त्री (Female): कल , आज और कल

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आज की नारी (Female) स्वतंत्र एवं अपनी अस्मिता को तलाश करने में निरंतर अग्रसर है। स्त्रीवादी चेतना अपने आप में एक नया विषय है जिस पर हम सभी को विचार करने की आवश्यकता है।

  • अपनी अस्मिता को निरंतर तलाश करती आज की (Female) नारी: प्रो .अलका सिंह
  • बेटी बचाओ बेटी पढ़ाओ से पहले बेटा पढ़ाओ मनुष्य बनाओ का लगे नारा

रिपोर्ट : डॉ राम शंकर सिंह

वाराणसी, 08 मार्च: अन्तर्राष्ट्रीय महिला दिवस (Female) के अवसर पर हिन्दी-विभाग, वसंत महिला महाविद्यालय, कृष्णमूर्ति फाउण्डेशन इण्डिया, राजघाट फोर्ट, वाराणसी द्वारा “स्त्री : कल आज और कल” विषयक अन्तर्राष्ट्रीय परिसंवाद का आयोजन किया गया। महाविद्यालय की प्राचार्या एवं ख्याति प्राप्त स्त्री-चिन्तक प्रो. डॉ. अलका सिंह ने अतिथियों का स्वागत करते हुए अपने स्वागत वक्तव्य में कहा कि , आज की नारी स्वतंत्र एवं अपनी अस्मिता को तलाश करने में निरंतर अग्रसर है। स्त्रीवादी चेतना अपने आप में एक नया विषय है जिस पर हम सभी को विचार करने की आवश्यकता है।

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कार्यक्रम की मुख्य संवादी कथाकार सूर्यबाला (मुम्बई) ने कहा कि स्त्रियों (Female)के प्रत्येक स्वरूप को उनके अंतःप्रकोष्ठ में देखना चाहिए। कल की स्त्री दूसरों और अपनों के लिए जीती थी ! चाची, मामी, मौसी, काकी आदि के रूप में उसने रिश्तों को बहुत संभाला था ! आज की स्त्री में कोई रोल मॉडल नहीं दिखता। भौतिक उपलब्धियों से ढकी हुई सफलताएँ स्त्रियों के कदम चूम रही हैं किन्तु क्या उसका लक्ष्य यही था? स्त्री भटकी नहीं बल्कि बुद्धिजीवी उसे भटका रहे हैं। उन्होंने कहा कि अमेरिका में भारत बनना चाहिए भारत में अमेरिका नहीं।

कथाकार गीतांजलिश्री (दिल्ली) ने कहा कि हमें आँकड़ों पर जाकर स्त्रियों की स्थिति को देखने की अपेक्षा घर में स्त्री (Female)की स्थिति क्या है इस पर विचार करना चाहिए। आज की औरत भौतिक दुनिया की चपेट में आकर बुरी तरह फँस गयी है।

कथाकार शिवमूर्ति (लखनऊ) ने आदमी को आदमी बनाए जाने की बात कही। उन्होंने कहा कि स्त्रियों की उन्नति तो हो ही जाएगी किन्तु स्त्रियों के मूल्य को न समझने वाले पुरुषों को अपनी मानसिक बिमारी दूर करनी चाहिए।

कवयित्री एवं कथाकार शैलजा सक्सेना (कनाडा) ने बताया कि वर्तमान स्थिति, अतृप्ति और असंतुलन के बीच स्त्री (Female)तभी अपना स्थान पा सकती है जब उसे उसका ड्यूप्लेस दे दिया जाए। स्त्री को दृष्टि, शक्ति और युक्ति का प्रयोग करते हुए उसे अपनी राह बनानी चाहिए और पुरुष की मानसिकता को बदलनी चाहिए।

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आलोचक रोहिणी अग्रवाल (हरियाणा) ने कहा कि आज की स्त्री (Female)की बात करने से पहले हमें भारतीयता को समझना होगा। कल की स्त्री बनाने में हमें फोकस करना होगा पुरुष के व्यक्तित्व निर्माण पर। बेटी पढ़ाओ बेटी बचाओ से पहले हमें बेटा पढ़ाओ मनुष्य बनाओ का नारा लगाना होगा। मणिक्याम्बा ने तमिल रचनाकारों के माध्यम से स्त्री संघर्ष को रेखांकित किया।

कार्यक्रम की अध्यक्षता करते हुए प्रतिष्ठित साहित्यकार प्रो. चंद्रकला त्रिपाठी ने अपने अध्यक्षीय उद्बोधन में कहा कि स्त्री (Female)के जीवनानुभवों की सीमाएं हैं। स्त्री प्रश्नों के दरम्यान जो चीजें चल रही हैं उसे खुली आँखों से देखने की जरूरत है। स्त्री के नए स्वरूप को देखने के लिए हमें सुभद्राकुमारी चौहान की कहानियों और महादेवी वर्मा को पढ़ना चाहिए। आज महाभारत घर में भी बैठा है। स्त्रियों को घर और बाहर के महाभारत से लड़ने के लिए एक बहुत बड़ा योद्धा बनना होगा।

कार्यक्रम की संयोजक, संचालक, विभागाध्यक्ष एवं वरिष्ठ आलोचक डॉ. शशिकला त्रिपाठी ने अपने बीज वक्तव्य में कहा कि मैं सह-यात्रा के रूप में स्त्री (Female)चिंतन को देखना चाहती हूँ। स्त्री की अस्मिता एवं उसकी स्वतंत्रता हमारे लिए अहम् है। स्त्रियों की स्थितियों को बदलने के लिए स्त्री-पुरुष दोनों को बदलना होगा।उन्होंने, स्त्री अस्मिता ,स्त्री अस्तित्व-संघर्ष, उसकी सुरक्षा आदि के अहं मसले को संवाद के लिए प्रश्नरूप में उठाए। कार्यक्रम में महाविद्यालय के शिक्षक, विद्यार्थी एवं राष्ट्रीय-अंतरराष्ट्रीय प्रतिभागी उपस्थित थे।

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