देश बड़ा या धर्म?(Country big or religion?)


Country big or religion: देश बड़ा या धर्म?: गिरीश्वर मिश्र

Country big or religion: देश की मौजूदा सियासत के हालात कुछ ऐसे हो रहे हैं कि उसकी उठापटक में सभी पार्टियों को मुद्दों का इंतज़ार रहने लगा है. छोटा हो बड़ा, साथक हो या निरर्थक सब कुछ खाली बैठे राजनेताओं के लिए जायज हो जाता है और मीडिया के भरोसे एक से एक आख्यान गढे जाने लगते हैं. इस माहौल में हर चीज का फौरी तौर पर फ़ायदा उठाया जाता है चाहे वह व्यापक नजरिए में नुकसानदेह ही क्यों न हो. बात का बतंग बनाने में नेतागण माहिर होते जा रहे हैं. ताजी घटना कर्नाटक से जुड़ी है जो राजनीति की बयार में कुछ इस तरह घुली है कि सरहद पार भी उसकी सनसनाहट सुनाई पड़ने लगी है.

घटना है उडुपी जिले की जहां एक सरकारी प्री यूनिवर्सिटी कालेज की पांच मुस्लिम छात्राओं ने स्कूल के द्वारा नियत किये गए यूनीफार्म को न मानते हुए स्कूल में हिजाब पहन कर आने की जिद पकड़ी. उनके हिसाब से हिजाब उनके धार्मिक मत या विशवास का हिस्सा है. हिजाब पर स्कूल के द्वारा प्रतिबन्ध लगाने के खिलाफ उच्च अदालत में इन बच्चियों ने अर्जी लगाई है कि यह उनके मौलिक धार्मिक अधिकारों का हनन है.

धर्म की दुहाई देने वाले आगे बढ़ कर हिजाब को इस्लाम का आधारभूत अभ्यास मानते और घोषित करने लगे और यह तर्क भी दिया जाने लगा कि कोई भी कुछ भी पहने यह उसकी मर्जी है उसमें कोई दखल नहीं होनी चाहिए. स्कूल अपने यहाँ पढाई के लिए आने वाले सभी विद्यार्थियों के लिए एक तरह के यूनीफार्म की व्यवस्था करते हैं और यह आधुनिक शिक्षा जगत में जीवन-चर्या का स्वीकृत अंग हो चुका है. समानता, भाई-चारा और विद्यालय से लगाव आदि विभिन्न उद्देश्यों के लिए यूनीफोर्म अपनाने की बात एक सामान्य व्यवस्था है जो पूरे देश में प्रचलित और स्वीकृत है . संदर्भित मामले में हिजाब पहनना स्कूल द्वारा निश्चित यूनीफोर्म से परे है. इस विवाद ने अनावश्यक तनाव और नफ़रत का माहौल खडा किया जिसे टूल भी दिया जा रहा है .

इस बीच पांच राज्यों में हो रहे विधान मंडलों के चुनाव में भी इसकी छाया पड़ने की संभावना से नहीं नकारा जा एकता. स्कूल की कारवाई के खिलाफ जगह-जगह विरोध प्रदर्शन हो रहे हैं और मौलिक अधिकारों के हनन का प्रश्न उठाया जा रहा है. हिन्दी और मुस्लिम प्रजा जनों के बीच भेद की दीवार खडी की जा रही है. हिजाब पर्दे का काम करता है और सामाजिक जीवन में भागीदारी से दूरी बढाए रखता है. स्त्रियों की उन्नति और उनका हक़ उन्हें दिलाने के लिए ताकि वे भी अपने पैरों पर खड़े हो सकें, शिक्षा कितनी महत्त्व की है यह बात किसी से छिपी नहीं है. साथ ही तुलनात्मक रूप से मुस्लिम स्त्रियों की अवस्था को लेकर गाहे-बगाहे चिंता जताई जाती रही है पर सुधार लाने के लिए आवश्यक व्यवस्था करते हुए जमीनी हकीकत बदलने के लिए जरूरी पहल करने में सभी पिछड़े हुए हैं.

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गौर तलब है कि निजी शिक्षा संस्थान में धार्मिक वेश-भूषा के निरादर की बात को लेकर संदर्भित विवाद खड़ा हुआ है. क्राइस्ट नगर सीनियर सेकेंडरी स्कूल में यूनीफोर्म तय है. मुस्लिम समुदाय की लड़कियों की ओर से उनके अभिभावकों ने मुकदमा किया और हिजाब को धर्म की व्यवस्था का हिस्सा मानते हुए मामला खडा किया गया . स्कूल इसे ठीक नहीं मानता. उच्च न्यायालय ने मुख्य न्यायाधीश की पीठ द्वारा यह फैसला लिया कि विद्यार्थी स्कूल द्वारा निश्चित किए गए परिधान (ड्रेस) में स्कूल आएं.

स्मरणीय है कि ड्रेस कोड को लेकर हर किसी को छूट है पर स्कूल का भी मौलिक अधिकार है कि अपनी व्यवस्था चलाए . स्त्रियों को धर्मानुकूल ड्रेस धारण करने की छूट मूल अधिकार बनता है, अगर वह धर्म के लिए अनिवार्य हो. शिक्षा देने की व्यवस्था राज्य की जिम्मेदारी है. इस तरह निजी शैक्षिक संस्थान सार्वजनिक काम कर रहे हैं. मौलिक अधिकार निरपेक्ष और सापेक्ष दोनों ही तरह के होते हैं. निरपेक्ष में कोई रद्दोबदल नहीं हो सकता. धार्मिक अधिकार सापेक्ष अधिकार की श्रेणी में आते हैं. राज्य की ओर से कोई प्रतिबन्ध नहीं है. भारतीय संविधान ऐसे समाज की कल्पना करता है जहां अधिकारों को व्यापक सामाजिक हित की दृष्टि से संतुलित किया जाय. इस दृष्टि से संस्था की व्यवस्था व्यक्ति की पसंद से अधिक महत्त्व की होती है.

स्वतंत्रता (लिबर्टी) का अर्थ यही है कि व्यापक हित को महत्त्व दिया जाय. संस्था और छात्रों के बीच उनके हितों की रक्षा महत्त्व की है. हाईकोर्ट ने यह निर्देश दिया है कि जब तक कोई फैसला नही आ जाता तब तक विद्यार्थी स्कूल कालेज में धार्मिक पहचान वाले ड्रेस न पहनें. परीक्षा सन्निकट है इसलिए शिक्षा संस्थान खोले जाने चाहिए. छात्रों को जिद नहीं करनी चाहिए. विवाद को सामान्य जीवन को प्रभावित नहीं करने देना चाहिए. तीन दिन संथाओं को बन्द करने के बाद उनके आसपास २०० मीटर के दायरे में इकट्ठा होने पर दो हफ्ते तक पाबंदी लगाईं गई है. बात दूर चलते हुए उच्च तम न्यायालय भी पहंच गई पर न्यायालय ने कहा कि उच्च न्यायालय को सुनवाई करने दें.

हिजाब की जंग की आंच तमिलनाडु पहुँच रही है जहां धोती के ड्रेस कोड का मामला शुरू है. चेन्नई में उच्च अदालत ने एक वाजिब सवाल किया है सर्वोपरि क्या है देश या धर्म ? (Country big or religion) याद रहे ऋग्वेद भी यहाँ नाना धर्मों को मानने वालों और नाना भाषाओं के बोलने वालों का उल्लेख मिलता है जिनका मातृभूमि द्वारा पालन किया जाता है. देश को , देश की एकता और प्रगति के लक्ष्य को सामने रख कर आपसी सौहार्द का कोई दूसरा विकल्प नहीं है. आज इसी दृष्टि से विचार की जरूरत है . शिक्षा इसी अर्थ में मुक्त करने वाली होती है कि वह भ्रमों को दूर करती है. मुक्त मन से ही शिक्षा आगे बढ़ सकेगी और सभी आगे चल सकेंगे.

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