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In honor of poet Qadir Hanafi: उस्ताद शायर कादिर हनफी के सम्मान में काव्य गोष्ठी का हुआ आयोजन…

In honor of poet Qadir Hanafi: ” बुला रही थी ये दुनिया मगर गया तो नही, बिछड़ के तुझसे किसी का भी में हुआ तो नही”

राजपुर, 29 नवंबर: In honor of poet Qadir Hanafi: तंजीम बज्मे उर्दू अदब राजपुर द्वारा उस्ताद अब्दुल कादिर हनफी के सम्मान में एक खूबसूरत काव्य गोष्ठी आयोजित की गई जिसे शहर के कवियों और शायरों ने अपनी बेहतरीन रचनाओं से बेहद कामयाब बना दिया।
अध्यक्षता उस्ताद कादिर हनफी ने की, विशेष अतिथि जावेद अहमद कुरेशी थे और अथितियों में थे सैयद आबिद अली और इस्माइल चौधरी ।

देर रात तक चले इस कार्यक्रम की शुरुआत संचालन कर रहे नौजवान शायर वाजिद हुसैन साहिल ने हम्द के अश आर से की, ओर युवा शायर सैयद रिज़वान अली रिज़वान को नाते पाक के लिए आमंत्रित किया रिजवान अली ने नाते पाक पढ़ कर सुनाई।
उसके बाद कवि दिलीप कुशवाह राज ने अपनी रचना ,,प्यार मीरा की पीर जैसा है, प्यार तुलसी कबीर जैसा है। सुनाकर माहोल में श्रृंगार घोल दिया।

In honor of poet Qadir Hanafi

वाहिद साहब कुरेशी ने अपने ही अंदाज में शेर पढ़ते हुए कहा ” आप भी तंज़ कम नहीं करते, इस लिए बात हम नही करते।
मंचीय कवि डॉ अपूर्व शुक्ला तरन्नुम में अपनी रचना ” अब चरागों में भी पहले सी रोशनी ना रही,मसला यह है जिंदगी भी जिंदगी ना रही,
एक तुम ही बचे थे दिल की बात कहने को अब तो तुम मैं भी दोस्त वैसी सादगी न रही ” सुनाते हुए काव्य गोष्टी को नई ऊंचाई प्रदान की।

अपने खुसूसी लबों लहज़े के लिए पहचाने जाने वाले ग़ज़ल के बेहतरीन शायर सैयद रिज़वान अली रिजवान ने अपना कलाम ” अहले-दिल हो तो मुलाक़ात बनेगी अपनी,अक़्ल वालों से कहाँ बात बनेगी अपनी ” सुना कर श्रोताओं की खूब तालीयां बटोरी।
कार्यक्रम का बेहतरीन संचालन कर रहे नौजवान शायर वाजिद हुसैन साहिल ने अपनी रूमानी ग़ज़ल
“बुला रही थी ये दुनिया मगर गया तो नही, बिछड़ के तुझसे किसी का भी में हुआ तो नही,
मज़ा भी लम्स ( स्पर्श) का आंखों से ही किया महसूस, पर हमने ख्वाब में भी यार को छुआ तो नही “
सुना कर समां ही बांध दिया।

अंत में कार्यक्रम की अध्यक्षता कर रहे उस्ताद शायर अब्दुल कादिर हनफी साहब ने अपने अशआर ” हर मंजिल पर धोका क्यों है, मौसम बदला बदला क्यों है,
महंगे महंगे सारे खिलोने, मेरा दिल फिर सस्ता क्यों है “
सुना कर ये साबित कर दिया के उस्ताद बहरहाल उस्ताद होता है।
बेहद कामयाब रही इस काव्य गोष्टी में साबिर शैख सर ,साकिब हनफी,शोएब अली आदि बड़ी संख्या में श्रोता मौजूद रहे।

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