History of Jain Temple: गुजरात का एक ऐसा नगर जहां गायकवाड़ी स्कूल के नीचे छुपा था जैन मंदिर
History of Jain Temple: उमता का राजगढ़ी टिम्बा, जैन विरासत का अनमोल खजाना दिगंबर और श्वेताम्बर समुदाय के प्रयासों से आया सामने

अहमदाबाद, 07 मार्च:History of Jain Temple: गुजरात में दिगंबर और श्वेताम्बर समुदाय के अनगिनत प्राचीन जैन मंदिर आये हुए है। यह जैन मंदिरे राज्य की धार्मिक और सांस्कृतिक धरोहर की भव्यता को दर्शाते है। ऐसा ही एक जैन मंदिर उत्तर गुजरात के मेहसाणा जिले के विसनगर तहसील के उमता गांव में था लेकिन अलाउदीन खिलजी की सेना के आक्रमण से बचाने के लिए उसको मिटटी और चुने से छुपा दिया गया। कुछ सालों के बाद उसके ऊपर एक गायकवाड़ी स्कूल बना।
जब स्कूल को रिपेयर करने का काम शुरू किया गया तभी जैन भगवान की कुछ मुर्तिया मिली। उसके बाद वहां खुदाई हुई और प्राचीन जैन मंदिर के अवशेष और मुर्तिया सामने आने लगी। इसी खोज के बारे में एक विशेष डाक्यूमेंट्री यूट्यूब पर रिलीज़ हुई है जिसे लोग काफी पसंद कर रहे है।
यह डाक्यूमेंट्री क्यों है खास?
इस डाक्यूमेंट्री में मंदिर के अवशेषों के बारे में विस्तार से प्रस्तुति की गई है। उसके साथ दिगंबर और श्वेताम्बर जैन समुदाय ने आपसी मतभेद को भुलाकर मंदिर की खुदाई के लिए एकजुट होकर किये गए प्रयासों के बारे में विवरण मिलता है। जैन मंदिर के अवशेषों में से मिली मूर्तियों को जिस दिगंबर और श्वेताम्बर जैन मंदिर में दर्शन के लिए रखा गया है वह भी डाक्यूमेंट्री में दर्शाया गया है।
देखें पूरी डाक्यूमेंट्री
राजगढ़ी टिम्बो का इतिहास
राजगढ़ी टिम्बो नामक स्थान, जो 50 फीट ऊँचा और 3000 वर्ग मीटर में फैला हुआ था, एक गाँव से घिरा हुआ था। यह स्थान एक विशाल जैन मंदिर का स्थल था। संभवतः 1299 में अलाउद्दीन खिलजी के जनरलों उलुग खान और नुसरत खान ने गुजरात पर आक्रमण के दौरान इस पर हमला किया था। पहले हमले में मंदिर का ऊपरी भाग नष्ट हो गया, निचले भाग को आक्रमणकारियों से बचाने के लिए टीले के नीचे चूने की परतों से दबा दिया गया।

करीब 250 साल बाद, दरबार उम्मत सिंह राणा ने टीले पर राजगढ़ी (शाही घर) बनवाया। 1726 में, कुंताजी बंदे के नेतृत्व में मराठों ने गाँव को जला दिया, जिसमें राजगढ़ी भी नष्ट हो गई। 1890 में, बड़ौदा राज्य के सयाजीराव गायकवाड़ ने टीले पर एक स्कूल बनवाया। 1985 में, नए निर्माण के लिए जर्जर स्कूल भवन को गिराते समय मंदिर का पिछला हिस्सा खोजा गया।
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