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Virah jee raha hoon: मैं विरह जी रहा हूं, विरह का त्याग नहीं किया

Rajesh rajawat
राजेश राजावत “ओजस”
दतिया, मध्य प्रदेश

Virah jee raha hoon: !!मैं विरह जी रहा हूं!!

Virah jee raha hoon: तेरे जाने के बाद 
विरह की पीढ़ा में 
आँसू नहीं बहाए मैंने 
पी गया दर्द की कड़वाहट को 
दही की मीठी लस्सी की तरह 
आंखों में आंसू आए तो उन्हें समझा दिया 
तुम इकलौती निशानी हो उसकी 
तुम्हें जाया नहीं होने दूंगा 
अब तक संभाल रखे हैं 
तेरे गम के वो मोती पलकों ने थाम रखे है
वो लम्हें तस्सबूर के फिर मैं दुबारा नहीं जिया
मैं विरह जी रहा हूं (Virah jee raha hoon) विरह का त्याग नहीं किया 

याद है तुम्हे
गांव से कुछ दूर उस बगीचे में
जब तुम मुझसे मिलने के लिए
फूल तोड़ने का बहाना लेकर आती थी
तुम्हारे आने से पहले 
तुम्हारी आहट पहचान लेता था
और तुम आकार पीछे से 
मेरी आंखें मूंद लेती थी
इतने गुलाबों के बीच सिर्फ तुम्हारे गजरे की
महक मुझे लुभाती थी
वो बागबां आज भी तुम्हारी राह देख रहे है
और मैं उसी रास्ते पर नजरें गढ़ाए बैठा हूं
मुझे यकीन है तुम लौट आओगे किसी रोज
तेरे अलावा मैंने किसी का सजदा नही किया
मैं विरह जी रहा हूं विरह का त्याग नहीं किया

छोड़ दिया है मैंने
दुनियां का मोह एक तेरी लत है
जो मुझसे छुड़ाई नहीं गई
छल-कपट से दूर निकलकर बन गया
प्रेम वैरागी जो तेरे प्रत्यक्ष
अपना सर्वस्त समर्पण कर डूब गया
प्रीत लहर में एक सुकून सा मिलता रहा
तेरे एहसासों में
झील सी आंखों में उतरकर
फिर निकलना ना चाहा कभी
और तुम जाते जाते ले गए
आंखों से नींद
दिल से करार
सांसों से सुकून
बस खाली रह गए मेरे पास
तो वो तेरे-मेरे दरमियाँ जन्में अहसास
गुजार ली इन्हीं एहसासों के सहारे जिंदगी
पर तुम्हारा हक़ अब तक किसी को नहीं दिया
मैंने विरह जिया है विरह का त्याग नहीं किया।

आती है तुम्हारी याद प्रिय
सांस आने से पहले तो महसूस का लेता हूं 
आंख बंद कर तुम्हारे आने की आहट 
चूड़ियों की खनखन, पायल की छन-छन,
वो उड़ता हवा में आंचल, घनेरे जुल्फों के साये
हाथ पकड़ते ही तुम्हारा शर्मा जाना
और बिजली की गरज सुनकर 
तुम्हारा सीने से लग जाना
तुम्हारी गैर मौजूदगी में भी महसूस कर लेता हूं तुम्हें,
इसी उम्मीद में किसी रोज तो रोशन होंगी
मेरी गालियां 
और फिर आंख खोलते ही
सब बिखर सा जाता है 
दूर दूर तक तुम्हारा साया नज़र नहीं आता
और कहने को तुम मेरे दिल में ही मौजूद हो
‘ओजस’ की डायरी का ये आखिरी पन्ना नहीं है तुम महफूज रहोगे
हर क्षण मेरी कलम किताब और दिल में
तुम्हारे प्रेम के प्रकाश पुंज
आसमान में सितारों के भांति चमक रहे है
तेरे मोह के अलावा मैंने दूजा मोह नहीं लिया
मैं विरह जी रहा हूं विरह का त्याग नहीं किया 

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