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World Hindi Day organized in Hamburg University: जर्मनी के हैम्बर्ग विश्वविद्यालय में किया गया विश्व हिंदी दिवस का आयोजन

World Hindi Day organized in Hamburg University: लगभग एक घंटे तक हैम्बर्ग विवि, लाइप्त्सिक (लैपज़िग) विवि और ट्युबिंगन विवि के छात्र-छात्राओं ने अपनी प्रस्तुतियाँ हिंदी में प्रस्तुत कीं।

Amb harish

World Hindi Day organized in Hamburg University: हैम्बर्ग विश्वविद्यालय के भारत-विद्या विभाग ने भारतीय कौंसलावास हैम्बर्ग के साथ मिलकर कोरोना महामारी के कारण इस वर्ष के विश्व हिंदी दिवस का आयोजन 14 जनवरी 2022 को आभासी मंच पर किया। इस बार कार्यक्रम की अध्यक्षता जर्मनी में भारत के महामहिम राजदूत हरीश पर्वथानेनी ने की और विश्व हैम्बर्ग विद्यालय की ओर से मानविकी संकाय के प्रोडीन शोध, प्रो. डॉ. मार्कुस फ़्रीडरिख एवं भारत-विद्या विभाग के विभागाध्यक्ष प्रो. डॉ. माइकल त्सिम्मरमन ने सभी अथितियों एवं वक्ताओं का स्वागत किया।

कार्यक्रम का संचालन भारत-विद्या विभाग के डॉ. राम प्रसाद भट्ट ने किया। प्रो. फ़्रीडरिख ने भारत-विद्या विभाग के एवं विशेषतौर पर संस्कृत एवं हिंदी भाषाओं के अध्ययन के महत्व पर प्रकाश डालते हुए कहा कि “हमारे लिए भारत, भारतीय संस्कृति और भारतीय भाषाओं के अध्ययन का महत्त्व इस बात से लगाया जा सकता है कि हैम्बर्ग में भारत-विद्या विभाग अपनी स्थापना का शताब्दी वर्ष 2014 में मना चुका और हिंदी का शताब्दी वर्ष इस वर्ष, यानि 2022 में मना रहा है।  राजदूत प्रवथानेनी ने सभी को नववर्ष एवं विश्व हिंदी दिवस की शुभकानाओं के साथ अपना अध्यक्षीय वक्तव्य शुरू किया और सभी से सुरक्षित एवं स्वस्थ रहने का आग्रह किया। उन्होंने बताया कि हैम्बर्ग विवि का भारत-विद्या विभाग हैम्बर्ग विवि से भी पुराना है क्योंकि हैम्बर्ग विवि की स्थापना 1919 में हुई जबकि भारत-विद्या विभाग की स्थापना 1914 में हो चुकी थी।

Dr Ram Prasad, World Hindi Day organized in Hamburg University

उन्होंने भारत-विद्या विभाग एवं विश्व-विद्यालय परिवार को विश्वविद्यालय में हिंदी अध्ययन-अध्यापन के सौ वर्ष पूरे होने की बधाई दी।उन्होंने बताया कि “1918 में महात्मा गाँधी ने हिंदी को भारत की राष्ट्रीय भाषा का दर्ज़ा देने का आह्वान किया था। गाँधी जी ने कहा था कि जब तक हिंदी को राष्ट्रभाषा का दर्ज़ा नहीं दिया जाता और अन्य क्षेत्रीय भाषाओं को पर्याप्त महत्व नहीं दिया जाता, तब तक स्वराज्य की सभी बातें निरर्थक होंगी। 14 सितंबर 1949 को, संविधान सभा ने देवनागरी लिपि में हिंदी को भारत की राज भाषा के रूप में स्वीकार किया। विश्व हिंदी दिवस हर साल 10 जनवरी को मनाया जाता है, जो 1975 में आयोजित पहले विश्व हिंदी सम्मेलन की वर्षगांठ को चिह्नित करता है। तब से, भारत, मॉरीशस, त्रिनिदाद और टोबैगो, संयुक्त राज्य अमेरिका, यूनाइटेड किंगडम जैसे विभिन्न देशों में विश्व हिंदी सम्मेलन आयोजित किए गए हैं।

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इसका उद्देश्य दुनिया भर में हिंदी भाषा के उपयोग को बढ़ावा देना है।”उन्होंने आगे बताया कि “भारत में हिंदी सबसे व्यापक रूप से बोली जाने वाली भाषा है, लगभग 551 मिलियन लोग इसे अपनी पहली भाषा के रूप में उपयोग करते हैं। यह अँग्रेज़ी और मैंडेरिन के बाद दुनिया की तीसरी सबसे अधिक बोली जाने वाली भाषा भी है। यह भारत गणराज्य की 22 भाषाओं में से एक है। भारत के अलावा, नेपाल, गुयाना, त्रिनिदाद और टोबैगो, सूरीनाम, फिजी और मॉरीशस जैसे कई अन्य देशों में भी हिंदी बोली जाती है। हिंदी संस्कृत की उत्तराधिकारी है और भाषाई दृष्टि से यह इंडो-यूरोपीय भाषा परिवार के इंडो-ईरानी उप-परिवार से संबंधित है और इसकी प्रमुख यूरोपीय भाषाओं के साथ कई समानताएँ हैं। सूरदास, मुंशी प्रेमचंद, जयशंकर प्रसाद, भारतेंदु हरिश्चंद्र, कृष्णा सोबती, रामधारी सिंह दिनकर और देवकी नंदन खत्री सहित अन्य कुछ महानतम लेखकों की भाषा हिंदी रही है।

गोस्वामी तुलसीदास ने रामचरितमानस, भगवान राम की कहानी और 16 वीं शताब्दी में हिंदी भाषा में हमारे पास सबसे बड़ी साहित्यिक कृतियों में से एक लिखी थी। डिजिटल मीडिया का आगमन और ऑनलाइन प्रकाशन और सोशल मीडिया का उदय हिंदी लेखकों और इसके पाठकों के लिए फ़ायदेमंद रहा है और हाल के दिनों में हिंदी साहित्य की पुस्तकों के पाठकों में जबरदस्त वृद्धि देखी गयी है। पिछले कुछ दशकों में बड़ी संख्या में हिंदी पाठक ऑनलाइन सामग्री पर चले गए हैं, जिसने हिंदी साहित्य के लेखकों और प्रकाशकों के प्रयासों में बहुत योगदान दिया है, जो भाषा के प्रसार और संरक्षण में योगदान देने के लिए अपना योगदान दे रहे हैं। हिंदी एक जीवित भाषा है, अभी भी विकसित हो रही है, भारतीय पहचान का प्रतीक है और भारत में एकमात्र ऐसी भाषा है जो पूरे देश को एकजुट करने की क्षमता रखती है।

”प्रो. त्सिम्मरमन ने हैम्बर्ग विवि में भारत-विद्या विभाग एवं संस्कृत व हिंदी के शिक्षण एवं शोध की परंपरा और उसके इतिहास के बारे में विस्तार से बताया। उन्होंने डॉ. भट्ट द्वारा हिंदी के प्रसार एवं प्रचार के लिए किए जा रहे कार्यों पर भी विस्तार में अपनी बात रखी और उनकी प्रशंसा करते हुए उनको और उनके छात्र-छात्राओं को बधाई दी। तद्पश्चात वाइस कौंसुल गुलशन ढींगरा ने भारत के प्रधानमंत्री का संदेश प्रस्तुत किया और फिर भारत के विदेश मंत्री एवं विदेश राज्यमंत्री के संदेश  सुनाए गए। हर वर्ष की तरह इस वर्ष के विश्व हिंदी दिवस के कार्यक्रम में भी हिंदी के दो महत्वपूर्ण कवियों का परिचय दिया गया और उनकी कविता उन्हीं के द्वारा सुनवायी गयी। पद्मश्री लीलाधर जगूड़ी ने अपनी कविता “रोज़ एक कम” का पाठ किया और प्रयाग शुक्ल ने अपनी कविता “मोह तो होता है” का पाठ किया। जगूड़ी जी का परिचय जेएनयू के प्रोफ़ेसर एवं साहित्यकार देवेंद्र चौबे ने विस्तार में दिया और प्रयाग शुक्ल का परिचय डॉ भट्ट ने दिया। दोनों कविताओं के जर्मन अनुवाद भट्ट जी की छात्रा अमांडा ने प्रस्तुत किया। 

World Hindi Day organized in Hamburg University

चोबे जी ने जगूड़ी जी के कृतित्व की विशेषता पर बात करते हुए बताया कि उनकी कविताओं में कौन-से तत्व प्रमुखता से उभर कर आते हैं और उन्हें कैसे पढ़ा जा सकता है। उन्होंने बताया कि जगूड़ी जी के काव्य में पहाड़, पहाड़ी समाज का जीवन और हिमालय के साथ ही ईश्वर की संकल्पना और समाज के विभिन्न पक्ष उभर कर आते हैं। भट्ट जी ने प्रयाग शुक्ल की कविताओं की विशेषताओं के साथ ही उनके निबंधों पर भी चर्चा की और बताया कि प्रयाग शुक्ल ने “मोह तो होता है” को विश्व हिंदी दिवस के अवसर पर ही लिखी है। दोनों कविताओं को श्रोताओं द्वारा बहुत पसंद किया गया। वरिष्ठ भारतीय पत्रकार कुमार राकेश ने भारतीय पत्रकारिता में हिंदी प्रयोग और प्रसार पर अपनी बात रखी और बताया कि भारत में वर्तमान सरकार की नीतियों की वजह से हिंदी का प्रसार और प्रयोग बढ़ रहा है, जो एक सुखद समाचार है।भारतविद एवं हिंदी के प्रोफ़ेसर क्लाउस पीटर जोलर ने यूरोप में भारत-विद्या एवं हिंदी के शिक्षण पर विस्तार से अपने विचार रखे और यूरोप में अनेक विश्वविद्यालयों द्वार भारत-विद्या विभाग को बंद किए जाने पर चिंता व्यक्त की। इस विषय पर डॉ भट्ट ने भी अपनी संचालकीय टिप्पणियों में कुछ बातें रखीं।

लगभग एक घंटे तक हैम्बर्ग विवि, लाइप्त्सिक (लैपज़िग) विवि और ट्युबिंगन विवि के छात्र-छात्राओं ने अपनी प्रस्तुतियाँ हिंदी में प्रस्तुत कीं। हैम्बर्ग विवि की छात्राएँ होस्निया एवं खातेरा सैदी ने एक बहुत ही रोचक स्वलिखित एकांकी प्रस्तुत की, जिसे यहाँ नीचे भी देखा जा सकता है। हैम्बर्ग विवि की ही छात्रा लक्ष्मी शर्मा, जिसकी माँ जर्मन और पिता मलेशियन हैं, ने बहुत अच्छा हिंदी निबंध लिखा और उसे रोचक ढंग से प्रस्तुत किया। लाइप्त्सिक विवि की छात्राओं ने अपनी अध्यापिका अडेला टिम्मे हेनिंग के कुशल नेतृत्व में अपने विभाग एवं शहर के इतिहास पर स्वयं संवाद लिखकर उसकी वीडियो प्रस्तुति तैयार की। इस वीडियो प्रस्तुति में युद्ध और विशेषतौर पर नेपोलियन की हार को दर्शाता मेमोरियल के बारे में भी सूचना दी गयी। ट्युबिंगन विवि के छात्र-छात्राओं ने अपने अध्यापक दिव्यराज अमिय के नेतृत्व में अपनी प्रस्तुति में “जर्मन छात्रों के जीवन का एक दिन” का चित्रण बड़े दिलचस्प ढंग से किया। पढ़ाई से लेकर खाना बनाने, ठंडे मौसम और घर तथा खाने-पीने में आने वाली समस्याओं का चित्रण किया। 

सभी छात्र-छात्राओं की प्रस्तुतियों से यह स्पष्ट हुआ कि कैसे हिंदी सीखने वाले जर्मन विद्यार्थी अपने विचार टेक्स्ट में परिवर्तित करते हैं और कैसे टेक्स्ट को एकांकी में चित्रित करते हैं। यह हिंदी सीखने का एक सशक्त माध्यम है। इसमें सिर्फ़ भाषा ही नहीं बल्कि सामाजिक तानाबाना, सांस्कृतिक एवं धार्मिक परिप्रेक्ष्य और वर्तमान में परिवार, समाज में फैली समस्याओं को भी बख़ूबी चित्रित किया गया है। जैसे होस्निया और खातेरा ने माता-पिता और बच्चों के संबंध व उनकी इच्छाओं और सोच में विरोधाभास का चित्रण किया। भारतीय प्रवासियों और उनके बच्चों ने अपनी प्रस्तुति में यह दिखाने की कोशिश की कि वे किस तरह से अपना जीवन हैम्बर्ग, जर्मनी में व्यस्थित करते हैं और कैसे  अपने बच्चों को जर्मन समाज के साथ ही भारतीय प्रवेश भी देने की कोशिश करते हैं। प्रवासी बच्चों ने संस्कृत कुछ मंत्रों का पाठ किया। सरस्वती वंदना रश्मि कुलकर्णी ने प्रस्तुत की। अंत में नृत्यांगना गुदरुन मैर्टिंस ने ओडिसी नृत्य प्रस्तुत किया। मात्यास वोल्टर ने सितार एवं यात्सीव कास्पी ने तबला संगीत प्रस्तुत किया। विदित हो कि गुदरुन मैर्टिंस ने ओडिसी नृत्य, मात्यास वोल्टर ने सितार और यात्सीव कास्पी ने तबला का प्रशिक्षण भारत जाकर लिया और वहाँ वहाँ कुछ वर्षों तक रहकर अब यूरोप में अपने-अपने क्षेत्र में प्रशिक्षण दे रहे हैं। 

अंत में विश्व हिंदी दिवस के मुख्य आयोजक एवं कार्यक्रम के संचालक भारतविद डॉ राम प्रसाद भट्ट ने सभी के प्रति आभार प्रकट किया। उन्होंने बताया कि वे 2007 से हर वर्ष भारतीय कौंसलावास, हैम्बर्ग के साथ मिलकर बड़े स्तर पर विश्वविद्यालय में विश्व हिंदी दिवस का आयोजन करते आ रहे हैं, लेकिन पिछले वर्ष एवं इस वर्ष उनको कोरोना की समस्या की वजह से ऑनलाइन कार्यक्रम करना पड़ा। उन्होंने बताया कि विश्व हिंदी दिवस का कार्यक्रम उनके विश्वविद्यालय में एक परंपरा बन चुका है और विद्वानों एवं छात्र-छात्राओं में बहुत लोक प्रिय है। इस अवसर पर जर्मन और भारतीय लोग भी बड़े उत्साह के साथ भाग लेते हैं। छात्र-छात्राएँ हिंदी निबंध, कविता, एकांकी और भारतीय नृत्य एवं संगीत प्रस्तुत करते हैं और अपने हिंदी एवं भारतीय संस्कृति संबंधी ज्ञान को प्रस्तुत करते हैं। 

Student, World Hindi Day organized in Hamburg University

उन्होंने कहा कि इस कार्यक्रम में जर्मनी से बाहर पुर्तगाल, हंगरी, भारत, हॉलैंड जैसे देशों से लोगों ने भाग लिया था और लिस्बन विवि से प्रो शिवकुमार सिंह, हंगरी से कृष्णा मुरारी अग्रवाल, लाइप्त्सिग विवि से अडेलै हैन्निश टेंबे और ट्युबिंगन विवि से दिव्यराज अमिय ने भी सक्रिय भाग लिया। डॉ. भट्ट ने कहा कि “हमारे लिए हिंदी भाषा का संबंध केवल शब्दों से नहीं है बल्कि भारतीय समाज और संस्कृति, सांस्कृतिक परंपराओं, खान-पान, रहन-सहन, इतिहास और भूगोल से भी है। यद्यपि हिंदी मातृभाषा के रूप में मुख्यतः उत्तर और मध्य भारत में बोली जाती है किंतु इस बात से इंकार नहीं किया जा सकता कि हिंदी का प्रवाभ भारत के अन्य क्षेत्रों पर भी है। इस बात के प्रमाण 1704 में दे तूर द्वारा सूरत में बैठकर लिखे गए हिंदी शब्दकोश और हिंदी व्याकरण में भी मिल जाते हैं।”

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