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Ek ped maa ke naam: हालोल नगर पालिका के ‘कृष्णवड अभियान’ से सोने पे सुहागा

Ek ped maa ke naam: औषधीय गुणों से युक्त तथा दुर्लभ कृष्णवड गुजरात में केवल 15 स्थानो पर उपलब्ध है; अब उसे 157 नगर पालिकाओं में रोपा जाएगा

  • Ek ped maa ke naam: डाकोर से द्वारका तक की वडवृक्ष यात्रा : हालोल नगर पालिका तथा पंचमहाल वन विभाग ‘मिशन कृष्णवड’ द्वारा दे रहे हैं प्रकृति के संरक्षण का संदेश
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गांधीनगर, 21 नवंबर: Ek ped maa ke naam: प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने ग्लोबल वॉर्मिंग की चुनौतियों को ध्यान में रखते हुए पर्यावरण की रक्षा के उम्दा उद्देश्य के साथ देशभर में ‘एक पेड़ माँ के नाम’ अभियान शुरू किया है। उन्होंने इस अभियान द्वारा लोगों को अपनी माता के साथ मिल कर या माता को श्रद्धांजलि के रूप में एक पेड़ लगाने की प्रेरणा दी है। प्रधानमंत्री के इस विजन को मिशन मोड में साकार करने को संकल्पबद्ध है। मुख्यमंत्री के नेतृत्व में ‘एक पेड़ माँ के नाम’ अभियान के अंतर्गत गुजरात में ग्रीन कवर की वृद्धि के लिए बड़े पैमाने पर वृक्षारोपण किया जा रहा है। मार्च-2025 तक गुजरात में 17 करोड़ पेड़ लगाने का लक्ष्य रखा गया है।

इस ‘एक पेड़ माँ के नाम’ अभियान अंतर्गत पंचमहाल जिले की हालोल नगर पालिका (नपा) ने एक विशेष प्रयास किया है और अपने प्रकृति प्रेम को स्वर्णिम अवसर में बदला है। हालोल नगर पालका तथा पंचमहाल वन विभाग द्वारा समग्र गुजरात की नगर पालिकाओं में पेड़ की दुर्लभ प्रजाति कृष्णवड (कृष्णबड़) उगाने का विशिष्ट कार्य शुरू किया गया है।

डाकोर से द्वारका तक पर्यावरण प्रेम का संदेश देगा ‘कृष्णवड अभियान’

‘सर्वे भवन्तु सुखिनि:’ के भाव से नागरिकों के लिए हमेशा कार्यरत रहने वाली हालोल नगर पालिका ने इस वडवृक्ष यात्रा की शुरुआत गत 27 अगस्त, 2024 को नंद महोत्सव के दिन कृष्णमय भूमि डाकोर से की थी। पेड़ों की दुर्लभ प्रजातियों के संरक्षण का बीड़ा उठाने वाली हालोल नपा की मुख्य अधिकारी हिरलबेन ठाकोर ने अधिक से अधिक लोगों का इस अभियान में शामिल होने का आह्वान किया है।

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प्रकृति की सेवा के लिए सदैव तत्पर रहने वालीं हिरलबेन ने ‘मिशन कृष्णवड’ के विचार बीज के विषय में बताया, “हमारे प्रधानमंत्री नरेन्द्रभाई मोदी द्वारा शुरू किए गए ‘एक पेड़ माँ के नाम’ अभियान के अंतर्गत मुझे पेड़ों की दुर्लभ व लुप्तप्राय प्रजातियों को विकसित करने का विचार आया। कृष्णवड पेड़ की वह भारतीय प्रजाति है, जो गुजरात में केवल 15 स्थानो पर उपलब्ध है। मैंने अपने खेत में लगाए कृष्णवड की डालियाँ काट कर हालोल में राणीपुरा स्थित फॉरेस्ट नर्सरी को दीं और उन्होंने कृष्णवड की 200 से अधिक पौधे विकसित कर इस वडवृक्ष यात्रा को गति दी।

नगरपालिकाओं के क्षेत्रीय आयुक्त एस. पी. भगोरा, वन विभाग की विभागीय वन अधिकारी (डीएफओ) डॉ. मीनल जानी, रेंज वन अधिकारी (आरएफओ) निधि दवे तथा हालोल वन विभाग के फॉरेस्टर रोहित मकवाणा के सहयोग से यह अभियान संभव हुआ है।”

‘मिशन कृष्णवड’ : 157 नगर पालिकाओं में दुर्लभ प्रजाति के पौधे लगाए जाएंगे

प्रधानमंत्री द्वारा शुरू किए गए ‘एक पेड़ माँ के नाम’ अभियान अंतर्गत हालोल नपा की दुर्लभ कृष्णवड पेड़ लगाने की पहल एक विचार बीच से वटवृक्ष बनने जा रही है। इस पहल का मुख्य उद्देश्य कृष्णवड को लुप्तप्राय प्रजाति की वृत्त से बाहर लाना है। इस अभियान के अंतर्गत आगामी 26 जनवरी, 2025 तक राज्य की सभी 157 नगर पालिकाओं में वृक्षारोपण किया जाएगा और कृष्णवड जैसी रेयर प्रजाति के संरक्षण के साथ प्रकृति की रक्षा का संदेश अधिकतम् लोगों तक पहुँचेगा। इस अभियान अंतर्गत वडोदरा जोन की सभी नगर पालिकाओं में कृष्णवड का रोपण हो चुका है तथा गुजरात के अन्य 5 जोन की नगर पालिका क्षेत्रों में मिला कर कुल 40 कृष्णवड लगाए गए हैं।

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डाकोर से शुरू हुई यह वडवृक्ष यात्रा 25 जनवरी, 2025 को भगवान श्री कृष्ण की नगरी द्वारका में सम्पन्न होगी। हालांकि हिरलबेन ठाकर कहती हैं कि एक प्रकृति प्रेमी के रूप में यह यात्रा तो अनावरत ही रहेगी।

‘एक पेड़ माँ के नाम’ अभियान के तहत कृष्णवड का चयन क्यों किया गया ?

‘एक पेड़ माँ के नाम’ अभियान के तहत वृक्षारोपण के लिए हालोल नपा ने कृष्णवड का ही चयन क्यों किया ? इस प्रश्न का उत्तर देते हुए श्री हिरलबेन ठाकर कहती हैं, “प्रकृति परमात्मा है। सनातन संकृति में प्रकृति को पूजा जाता है। भगवान श्री कृष्ण ने भी गीता में कहा है, ‘मैं वृक्षों में अश्वथ: यानी पीपल हूँ।’ कृष्ण के साथ जुड़ा वृक्ष यानी वडवृक्ष। वड (बरगद/बड़) तो धार्मिक के अलावा वैज्ञानिक दृष्टि से भी बहुत महत्वपूर्ण है। इसी कारण इस दुर्लभ वनस्पति के संरक्षण का संदेश पहुँचाना आवश्यक है।”

अनेक औषधीय गुणों से युक्त कृष्णवड का दूसरा नाम ‘माखण कटोरा वड’ कैसे पड़ा ?

बड़ की विशेषता यह है कि इसमें अनेक औषधीय गुण हैं। इस कारण यह स्वास्थ्य के लिए बहुत लाभदायी है। चर्म रोग, दंत रोग, मधुमेह के निवारण के लिए यह बड़ काफी उपयोगी है। बरगद की पत्तियों में प्रोटीन, फाइबर, कैल्शियम तथा फॉस्फरस जैसे पोषक तत्व होते हैं और हिन्दू धर्म में तो बड़ की पेड़पूजा भी की जाती है। बड़ की जड़ों का दतून दाँतों का हिलना बंद कर देता है और नि:सतान स्त्रियों के लिए बड़ का दूध दवाई के रूप में उपयोग में लिया जाता है।

बरगद के फल पर कई पक्षियों का जीवन निर्भर है। कृष्णवड भी बड़ की ही एक दुर्लभ प्रजाति है, जिसे पूरी तरह विकसित होने में वर्षों लगते हैं। दिलचस्प बात यह है कि कृष्णवाड के साथ एक किवदंती जुड़ी हुई है, जिसके अनुसार कृष्णवड के पत्ते मुड़ हुए होने यानी कटोरे की भाँति होने के कारण भगवान श्री कृष्ण उस कटोरे में मक्खन छिपा कर रखते और खाते थे। इसी कारण कृष्णवड को माखण कटोरा वड यानी मक्खन कटोरा बड़ भी कहा जाता है।

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