Kashi Vishwanath: सावन के प्रथम सोमवार को श्रद्धालुओं ने किया बाबा काशी विश्वनाथ का जलाभिषेक
Kashi Vishwanath: श्रावण मास की कथा को श्रवण करने का है बहुत महात्म्य,इसीलिए इस मास को श्रावण( सावन) कहते है
- Kashi Vishwanath: कोरोना प्रोटोकॉल के तहत सीमित मात्रा मे ही श्रद्धालुओं को मिली इजाजत
रिपोर्ट : डॉ राम शंकर सिंह
वाराणसी 26 जुलाई: Kashi Vishwanath: वैसे तो सावन का महीना हर व्यक्ति और शहर के लिए महत्व रखता है. परन्तु काशी मे श्रावण मास का कुछ विशेष ही महत्त्व है. बाबा काशी विश्वनाथ की दिव्य नगरी होने के कारण सावन के प्रत्येक सोमवार को बाबा को जलाभिषेक करने की परम्परा सदियों से चली आ रही हैं . कोरोना काल के पूर्व सावन मास के प्रत्येक सोमवार को श्रद्धालुओं की उमरने वाली लाखो लोगो की भीड़ भले ही अब गत दो वर्षों से सीमित हो गयी हैं , फिर भी बाबा के भक्तों मे जल चढ़ाने की ललक कहीं से भी कमतर नहीं हुई है. 89 वर्षों से प्रथम सोमवार को हजारों यादव बंधुओ की जलाभिषेक भीड़ को भी इस बार जिला प्रशासन ने सीमित करके मात्र 5 लोगो को ही इजाजत दी .
कोरोना प्रोटोकॉल को ध्यान मे रखते हुए बाबा काशी विश्वनाथ मंदिर (Kashi Vishwanath) मे दर्शन पूजन हेतु कांवरिया दल को भी इजाजत नहीं मिली . आज प्रथम सोमवार को बहुत ही सीमित संख्या मे श्रद्धालुओं को बाबा के दर्शन की अनुमति मिली . काशी के अन्य शिव मंदिरो …तिलभांडेश्वर महादेव , अमरेश्वर महादेव , शूलटंकेश्वर महादेव , केदारेश्वर महादेव , मारकंडे महादेव आदि मंदिरों मे बाबा के भक्तों ने जलाभिषेक किया .
सावन माह के बारे में एक पौराणिक कथा है कि- “जब सनत कुमारों ने भगवान शिव ( Kashi Vishwanath) से उन्हें सावन महीना प्रिय होने का कारण पूछा तो भगवान भोलेनाथ ने बताया कि जब देवी सती ने अपने पिता दक्ष के घर में योगशक्ति से शरीर त्याग किया था, उससे पहले देवी सती ने महादेव को हर जन्म में पति के रूप में पाने का प्रण किया था। अपने दूसरे जन्म में देवी सती ने पार्वती के नाम से हिमाचल और रानी मैना के घर में पुत्री के रूप में जन्म लिया। पार्वती ने युवावस्था के सावन महीने में निराहार रह कर कठोर व्रत किया और शिव को प्रसन्न कर उनसे विवाह किया, जिसके बाद ही महादेव के लिए यह विशेष हो गया।”
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एक अन्य कथा के अनुसार, मरकंडू ऋषि के पुत्र मारकण्डेय ने लंबी आयु के लिए सावन माह में ही घोर तप कर शिव की कृपा प्राप्त की थी, जिससे मिली मंत्र शक्तियों के सामने मृत्यु के देवता यमराज भी नतमस्तक हो गए थे।
भगवान शिव को सावन का महीना प्रिय होने का अन्य कारण यह भी है कि भगवान शिव सावन के महीने में पृथ्वी पर अवतरित होकर अपनी ससुराल गए थे और वहां उनका स्वागत आर्घ्य और जलाभिषेक से किया गया था। माना जाता है कि प्रत्येक वर्ष सावन माह में भगवान शिव अपनी ससुराल आते हैं। भू-लोक वासियों के लिए शिव कृपा पाने का यह उत्तम समय होता है।
पौराणिक कथाओं में वर्णन आता है कि इसी सावन मास में समुद्र मंथन किया गया था। समुद्र मथने के बाद जो हलाहल विष निकला, उसे भगवान शंकर ने कंठ में समाहित कर सृष्टि की रक्षा की; लेकिन विषपान से महादेव का कंठ नीलवर्ण हो गया। इसी से उनका नाम ‘नीलकंठ महादेव’ पड़ा। विष के प्रभाव को कम करने के लिए सभी देवी-देवताओं ने उन्हें जल अर्पित किया।रावण ने भी कावड़ यात्रा कर शिव जी का जला अभिषेक किया था . इसलिए शिवलिंग पर जल चढ़ाने का ख़ास महत्व है। यही वजह है कि श्रावण मास में भोले को जल चढ़ाने से विशेष फल की प्राप्ति होती है। ‘शिवपुराण’ में उल्लेख है कि भगवान शिव स्वयं ही जल हैं।
इसलिए जल से उनकी अभिषेक के रूप में अराधना का उत्तमोत्तम फल है, जिसमें कोई संशय नहीं है। शास्त्रों में वर्णित है कि सावन महीने में भगवान विष्णु योगनिद्रा में चले जाते हैं। इसलिए ये समय भक्तों, साधु-संतों सभी के लिए अमूल्य होता है। यह चार महीनों में होने वाला एक वैदिक यज्ञ है, जो एक प्रकार का पौराणिक व्रत है, जिसे ‘चौमासा’ भी कहा जाता है; तत्पश्चात् सृष्टि के संचालन का उत्तरदायित्व भगवान शिव ग्रहण करते हैं। इसलिए सावन के प्रधान देवता भगवान शिव बन जाते हैं।
Kashi Vishwanath: सावन में चतुर्दशी तिथि और प्रदोष का बहुत महात्म्य है इस दिन तोह अवकाश( काम से छुट्टी) ले कर शिव जी की पूजा अर्चना जप तप और दान करना चाहिए । इसी सावन मास में 16 अगस्त 2021सोमवार को दिन भर अनुराधा नक्षत्र भी पड़ रही है , इस नक्षत्र में शिव पूजा करने का फल की महिमा बता पाना नामुमकिन है क्योंकि यह योग बहुत कम पड़ता है और बहुत ही ज्यादा पुण्यप्रदायक और मुक्तिप्रद है । सावन मास में सोमवार को अनुराधा नक्षत्र पड़ने पर काशी में गंगा स्नान कर गौरी केदारेश्वर(केदार घाट) के दर्शन का भी विधान है ।