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Ganesh Chaturthi 2023: धर्म की रक्षा के लिए भगवान गणेश ने लिए आठ अवतार, जानें सभी अवतारों के बारे में…

Ganesh Chaturthi 2023: भगवान गणेश ने समय-समय पर धर्म की रक्षा के लिए आठ अवतार लिए हैं, ये आठ अवतार अष्टविनायक कहलाते हैं

धर्म डेस्क, 19 सितंबरः Ganesh Chaturthi 2023: देशभर में आज गणेश चतुर्थी का पर्व काफी धूमधाम से मनाया जा रहा हैं। इस तिथि को सिद्धि विनायक व्रत के रूप में भी जाना जाता हैं। पुराणों के अनुसार, आज के दिन भगवान गणेश का जन्म हुआ था।

मालूम हो कि, भगवान गणेश ने समय-समय पर धर्म की रक्षा के लिए आठ अवतार लिए हैं। ये आठ अवतार अष्टविनायक कहलाते हैं। आइए गणेश चतुर्थी के खास मौके पर जानते हैं गणेश के आठ अवतारों के बारे में खास बातें…

वक्रतुंड अवतार

भगवान गणेश ने वक्रतुंड अवतार मत्सरासुर नामक राक्षस का वध करने के लिए लिया था। मत्सरासुर भगवान शिव का भक्त था उसने भगवान शिव से वरदान पा लिया था कि वह किसी भी योनि के प्राणी से नहीं डरेगा।

वरदान पाने के बाद मत्सरासुर ने शुक्राचार्य की आज्ञा से देवताओं को प्रताड़ित करना शुरू कर दिया। तब भगवान गणेश ने वक्रतुंड अवतार लेकर मत्सरासुर का वध किया।

एकदंत अवतार

एकबार महर्षि च्यवन अपने तपोबल के माध्यम से मद की रचना की थी और वह महर्षि का पुत्र भी कहलाया। मद से दैत्य गुरु शुक्राचार्य से दीक्षा लेकर देवताओं पर अत्याचार करने लगा। तब सभी देवताओं ने भगवान शिव और माता पार्वती के पुत्र का आह्वान किया, तब भगवान ने एकदंत के रूप में अवतार लिया।

महोदर अवतार

दैत्य गुरु शुक्राचार्य ने मोहासुर नामक एक राक्षस को अस्त्र-शस्त्र की शिक्षा-दीक्षा देकर देवताओं के विरुद्ध लड़ने के लिए तैयार किया। मोहासुर के अत्याचारों से परेशान देवी-देवताओं ने मिलकर भगवान गणेश का आह्वान किया। तब भगवान गणेश ने महोदर अवतार लिया।

विकट अवतार

एकबार भगवान विष्णु ने जलंधर के विनाश के लिए उसकी पत्नी वृंदा का सतीत्व भंग कर दिया था। उसके बाद जालंधर का एक पुत्र हुआ कामासुर। कामासुर ने भगवान शिव की कठोर तपस्या की थी, जिससे प्रसन्न होकर महादेव ने त्रिलोक विजय का वरदान दे दिया था।

वरदान पाकर कामासुर ने देवताओं पर अत्याचार करना शुरू कर दिया। असुर से परेशान होकर सभी देवताओं ने भगवान गणेश का ध्यान किया और राक्षस से मुक्ति की प्रार्थना की। तब भगवान ने विकट अवतार लिया।

गजानन अवतार

भगवान कुबेर के लोभ से लोभासुर का जन्म हुआ था। लोभासुर दैत्य गुरु शुक्राचार्य की शरण में गया और वहां से शिक्षा प्राप्त की। शुक्राचार्य के कहने पर लोभासुर ने भगवान शिव से वरदान पाने के लिए कठोर साधना की। साधना से प्रसन्न होकर लोभासुर को निर्भय होने का वरदान दे दिया। वरदान पाकर लोभासुर ने सभी लोकों पर कब्जा जमा लिया। तब सभी ने गणेशजी की प्रार्थना की और भगवान गणेश ने गजाजन के रूप में अवतार लिया।

लंबोदर अवतार

एक बार क्रोधासुर नामक राक्षस ने सूर्यदेव की तपस्या की। तपस्या से प्रसन्न होकर सूर्यदेव ने क्रोधासुर को ब्रह्मांड पर विजय पाने का अवतार दे दिया। इसके बाद सभी देवी-देवता क्रोधासुर से डरने लगे और भगवान गणेश का आह्वान किया। देवताओं की प्रार्थना को सुनकर गणेशजी ने लंबोदर का अवतार लिया।

विघ्नराज अवतार

एक बार माता पार्वती अपनी सखियों के साथ कैलाश पर्वत पर टहल रहीं थी, तभी बातचीत में हंसी आ गई। उनकी हंसी से एक विशाल पुरुष की उत्पति हुई और उन्होंने उसका नाम मम रख दिया। मम वन में तप करने चला गया, जहां उसकी मुलाकात शंबासुर से हुई। शंबासुर ने मम को कई आसुरी शक्तियां दी। इसके बाद मम ने गणेशजी को प्रसन्न करने ब्रह्मांड का राज मांग लिया।

जब इसके बारे में शुक्राचार्य को जानकारी मिली तब उन्होंने मम को दैत्यराज का पद दे दिया। पद मिलने के बाद मम ने देवताओं को पकड़कर कारागार में डाल दिया। तब देवताओं ने भगवान गणेश का आह्वान किया और उनको अपनी समस्याओं के बारे में अवगत कराया। भगवान गणेश ने विघ्नराज अवतार लिया और फिर ममासुर का मान मर्दन करते हुए देवताओं को बंदी गृह से छुड़वाया।

धूम्रवर्ण अवतार

एक बार ब्रह्माजी ने सूर्य भगवान को कर्म राज्य का स्वामी बना दिया, इससे उनके अंदर घमंड आ गया। राज करते हुए सूर्य भगवान को छींक आ गई, जिससे एक दैत्य की उत्पत्ति हुई। छींक से उत्पन्न हुए दैत्य का नाम अहम पड़ा। अहम दैत्य गुरु शुक्राचार्य के पास चला गया और वह अहंतासुर बन गया। इसके बाद उसने खुद का राज्य भी बना लिया और भगवान गणेश की पूजा करके वरदान भी प्राप्त कर लिया।

वरदान पाकर अहंतासुर देवताओं पर अत्याचार करने लगा, तब सभी ने भगवान गणेश को आह्वान किया। देवताओं के आह्वान पर भगवान गणेश ने धूर्मवर्ण का अवतार लिया। धूर्मवर्ण का रंग धुएं जैसा था और वे काफी विकराल थे। उनके एक हाथ में भीषण पाश थे, जिसमें से भयंकर ज्वालाएं निकल रही थीं। धूर्मवर्ण ने अहंतासुर का अंत किया और देवताओं को राहत दी।

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