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Wardha Sahitya Mahotsav: वर्धा साहित्‍य महोत्‍सव में गूंजे महानायकों के स्‍वर

Wardha Sahitya Mahotsav: वर्धा साहित्‍य महोत्‍सव में मंगलवार 26 अप्रैल को विभिन्‍न सत्रों में वक्‍ताओं ने महानायकों पर आधारित उपन्‍यासों पर गहन विचार-विमर्श किया।


वर्धा, 27 अप्रैल: Wardha Sahitya Mahotsav: महात्मा गांधी अंतरराष्ट्रीय हिंदी विश्‍वविद्यालय के अंतर्गत अमृतलाल नागर सृजनपीठ की ओर से 26-28 अप्रैल को साहित्‍य में समाज के महानायकों पर आधारित वर्धा साहित्‍य महोत्‍सव में मंगलवार 26 अप्रैल को विभिन्‍न सत्रों में वक्‍ताओं ने महानायकों पर आधारित उपन्‍यासों पर गहन विचार-विमर्श किया।

महोत्‍सव के उदघाटन (Wardha Sahitya Mahotsav) के बाद साहित्य विद्यापीठ के महादेवी सभागार में अमृतलाल नागर द्वारा लिखे गये ‘मानस का हंस’ उपन्यास पर आयोजित सत्र की अध्‍यक्षता प्रख्‍यात विद्वान डॉ. प्रेमशंकर त्रिपाठी ने की। सत्र का संयोजन डॉ. प्रियंका मिश्र ने किया। डॉ. प्रियंका मिश्र ने तुलसीदासजी के जीवन पर अमृतलाल नागर जी द्वारा रचित ‘मानस का हंस’ पर प्रस्तावना रखी। उन्‍होंने कहा कि महान कवि तुलसीदास जी ऐसे कवि, रचनाकार हैं जिनके काव्य में भारत और भारतीयता का संस्कृति का बोध होता है। सत्र में लेखक प्रो. सुरेश कुमार अग्रवाल ने भारतीय उपन्यास की यात्रा के बारे में बताते हुए कहा कि अमृतलाल नागर ने शिल्प में सुंदरता, विभिन्नता लाने के लिए विभिन्न रचनात्मक पद्धतियों का उपयोग किया है।

लेखक ने तुलसीदास के जीवन के आंतरिक और बाहरी संघर्ष का वर्णन किया है। प्रो. अलका पाण्डेय ने कहा कि मानस का हंस परिपक्‍व और परिष्‍कृत रचना है जिसके माध्यम से तुलसीदास जी के व्यक्तित्‍व को मानवीय ढंग से सामाजिक उपन्यासिकता प्रदान की है। दैनिक भास्कर के श्री आनंद निर्वाण ने कहा कि उपन्‍यास में तुलसीदास जी की सजीवता प्रस्तुत करने का प्रयास किया है। उन्होंने रामचरित मानस के गठन का सबसे अधिक श्रेय रचनावली को दिया। मुंबई की प्रो. बीना बुदकी ने बताया कि उपन्‍यास में तुलसीदास का पात्र एक न्याय संगत दीन बंधु नायक के रूप में प्रस्तुत होता है। सच के साथ ही तुलसीदास समाज की रुढिवादी सोच से नहीं डरते। इस उपन्यास में तुलसीदास का चरित्र दो रूपों में उभरता है। उन्‍होंने कहा कि नागर जी ने तुलसीदास की पत्‍नी रत्‍ना की बुद्धिमत्‍ता और तेज पर अधिक लिखा है।

Wardha Sahitya Mahotsav

Wardha Sahitya Mahotsav: वरिष्ठ पत्रकार राजू मिश्र ने कहा कि नागर जी ने कई फिल्मों के गाने, पट कथा और संवाद भी लिखे है। ‘मानस का हंस’ में उनकी विराट अनुभव की झलक मिलती है। वरिष्ठ पत्रकार राकेश मंजुल ने नागर जी के बारे में विस्‍तार से बताया और उनके लिखने का उद्देश्‍य भी बताया। हिंदी के प्रसिध्द साहित्यिकार एवं समीक्षक प्रो. रामजी तिवारी ने कहा कि मानस का हंस पर अनेक विचार आये वे हमें जागृत करते हैं। उन्‍होंने इस उपन्‍यास को कालजयी करार देते हुए उसपर विस्‍तार से अपनी बात रखी। सत्र के अध्यक्ष प्रेम शंकर त्रिपाठी ने अध्यक्षीय उद्बोधन में कहा कि ‘मानस का हंस’ एक अद्भूत रचना है।

गिरिराज किशोर के कालजयी उपन्यास ‘बा’ पर चर्चा

वर्धा साहित्य महोत्सव (Wardha Sahitya Mahotsav) के प्रथम अकादमिक समानांतर सत्र में गिरिराज किशोर के लोकप्रिय उपन्यास बा पर चर्चा हुई। सत्र में उपन्यासों की दृष्टियों पर बहुआयामी प्रस्तुतियां इस सत्र के आकर्षण का केंद्र रहीं। डॉ. श्यामाप्रसाद मुखर्जी भवन में आयोजित इस सत्र में महानायकों के जीवनपरक उपन्यासों पर चर्चा हुई। सत्र की अध्यक्षता करते हुए प्रो. सुमन जैन ने अपने अध्यक्षीय उद्बोधन में कहा कि बा का विराट चरित्र समझने के लिए गांधी के चरित्र को भी समझने की आवश्यकता है। यह एक सेतु स्रोत की भांति है जिसे प्रायः एक सूक्ति की तरह देखा जाता जाना चाहिए कि सफल स्त्री के निर्माण में एक पुरुष का भी बहुत बड़ा हाथ होता है।

समानांतर सत्र में(Wardha Sahitya Mahotsav) वक्ता के रूप में डॉ. वीर पाल सिंह ने ‘बा’ उपन्यास के साहित्यिक पक्षों पर विस्तृत चर्चा की। वहीं हर महापुरुष की सफलता के पीछे एक स्त्री होती है। इस आलोक में अपनी बात रखते हुए श्री शरद जायसवाल ने गांधी की सफलता के पीछे बा की मेहनत को चरितार्थ बताया। बा के दक्षिण अफ्रीका के गिरमिटिया अनुभवों से जोड़ते हुए डॉ मुन्नालाल गुप्ता ने बताया कि ‘बा’ जैसे महानायक का उपन्यास नया दृष्टिकोण देता है। इस कड़ी में डॉ. सूर्य प्रकाश पांडे ने ये कहा की नारी सशक्तिकरण की बात होने पर बा का उल्लेख अति महत्वपूर्ण हो है।

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सत्र में ऑनलाइन चर्चा करते हुए वर्धा विश्वविद्यालय के प्रयागराज केंद्र से डॉ अवंतिका शुक्ला ने उपन्यास को व्यक्तित्व निर्माण का उद्गम बताया। उनका मानना है कि बा एक महान संन्यासी के साथ गृहस्थ दायित्व का उत्कृष्ट निर्वहन करने वाली नारी हैं जो भारतीय नारी का अदृश्य भाग रहा है। उपन्यास की सार्थकता पर बात की करते हुए डॉ. आशा मिश्र के अलावा विश्वविद्यालय के शोधार्थियों ने शोध दृष्टि से नया आयाम प्राप्त किए।

सत्र में विशेष टिप्पणी करते हुए स्त्री अध्ययन विभाग की विभागाध्यक्ष डॉ सुप्रिया पाठक ने बा उपन्यास के माध्यम से सामाजिक, आर्थिक, राजनीतिक आदि पहलुओं पर प्रस्तुत शोध पत्रों पर सम्यक बात रखी। सत्र का सफलता पूर्वक संचालन डॉ सुरभि विप्लव द्वारा किया गया।

मराठी साहित्यकार शिवाजी सावंत द्वारा लिखित “छावा” पुस्तक पर चर्चा

महात्मा गांधी अंतरराष्ट्रीय हिंदी विश्‍वविद्यालय, वर्धा के अंतर्गत अमृतलाल नागर सृजनपीठ के द्वारा त्रिदिवसीय साहित्‍य महोत्‍सव के समानांतर सत्र में महानायकों पर चर्चा में मराठी साहित्यकार शिवाजी सावंत द्वारा लिखित “छावा” पुस्तक केंद्र में रही। सत्र संयोजक डॉ. संदीप मधुकर सपकाले ने छावा के मुख्‍य पात्र संभाजी और उसके अन्य पात्रों से अवगत कराया। डॉ. सतीश पावड़े ने छावा उपन्‍यास की प्रासंगिकता पर प्रकाश डाला और उसके तथ्यों, प्रमाणों और इतिहास को समझने की आवश्‍यकता को बताया।

चर्चा सत्र में वक्ता के रूप में प्रो. दत्तात्रय मुरुमकर अपनी बात रखते हुए कहा कि सबसे सशक्त और सबसे ताकतवर लोगों का सांस्कृतिक और राजनीतिक इतिहास इस उपन्‍यास के माध्‍यम से जानने और समझने की जरूरत है। सत्र की अध्‍यक्षता करते हुए डॉ. दामोदर खड़से ने संभाजी महाराज के संस्कृत पाण्डित्‍य की चर्चा की जिन्‍होंने 9 विशिष्‍ट ग्रंथ लिखे थे। उन्‍होंने इस उपन्‍यास के अकादमिक महत्‍व को रेखांकित किया।

Wardha Sahitya Mahotsav: छावा पुस्तक के लेखक शिवाजी सावंत के 17 वर्षों के मेहनत का परिणाम है जिसको लिखने के लिए सावंत जी ने 10 साल शोध पर समय दिया। जो एक ऐतिहासिक कार्य है। यह इतिहास ही नहीं बल्कि सांस्‍कृतिक महत्व भी रखती है। जब हम दो पुस्तकों की समीक्षा में करते है तो कहीं ना कहीं लेखक की मंशा जाहिर हो जाती है और छुपे एक साजिश का खुलासा करती है। इस महत्वपूर्ण सत्र में विश्‍वविद्यालय के अनेक शिक्षक शोधार्थी एवं विद्यार्थियों ने साहित्यिक परिचर्चा का संवर्द्धन किया।

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