Wardha Hindi University

Wardha Hindi University: वर्धा हिंदी विश्‍वविद्यालय में अंतरराष्‍ट्रीय संगोष्‍ठी का समापन

Wardha Hindi University: भारतवंशियों की मानव केंद्रित सभ्‍यता पर अध्‍ययन की आवश्‍यकता : प्रो. रजनीश कुमार शुक्‍ल


वर्धा, 04 अगस्‍त: Wardha Hindi University: महात्मा गांधी अंतरराष्ट्रीय हिंदी विश्‍वविद्यालय के कुलपति प्रो. रजनीश कुमार शुक्‍ल ने कहा कि भारतवंशियों के मानव केंद्रित सभ्‍यता पर अध्‍ययन की आवश्‍यकता है। वे विश्‍वविद्यालय में भारतीय दार्शनिक अनुसंधान परिषद् तथा भारतीय सामाजिक विज्ञान अनुसंधान परिषद्, नई दिल्‍ली के सहयोग से महात्मा गांधी अंतरराष्ट्रीय हिंदी विश्‍वविद्यालय के प्रवासन एवं डायस्‍पोरा अध्‍ययन विभाग, अनुवाद एवं निर्वचन विद्यापीठ द्वारा ‘भारतीय डायस्‍पोरा का वैश्विक परिप्रेक्ष्‍य : जीवन और संस्‍कृति’ विषय पर आयोजित त्रिदिवसीय (2- 4 अगस्‍त) अंतरराष्‍ट्रीय संगोष्‍ठी के संपूर्ति सत्र की अध्‍यक्षता करते हुए संबोधित कर रहे थे। संगोष्‍ठी का समापन गुरुवार को विश्‍वविद्यालय के कस्‍तूरबा सभागार में किया गया।

समारोह के मुख्‍य अतिथि हिमाचल प्रदेश केंद्रीय विश्‍वविद्यालय, धर्मशाला के कुलाधिपति पद्मश्री प्रो. हरमहेन्‍द्र सिंह बेदी थे। इस अवसर पर विशिष्‍ट अतिथि के रूप में उत्तर प्रदेश उच्च शिक्षा परिषद के अध्यक्ष प्रो. गिरीश चंद्र त्रिपाठी एवं आभासी माध्‍यम से सांची बौद्ध-भारतीय ज्ञान अध्‍ययन विश्‍वविद्यालय मध्‍य प्रदेश की कुलपति डॉ. नीरजा अरुण गुप्‍ता, विश्‍वविद्यालय के प्रतिकुलपति संगोष्‍ठी के संयोजक प्रो. हनुमानप्रसाद शुक्‍ल, प्रतिकुलपति डॉ. चंद्रकांत रागीट, कुलसचिव क़ादर नवाज़ ख़ान एवं आयोजन सचिव डॉ. रोमसा शुक्‍ला मंचासीन थे।

Wardha Hindi University: कुलपति प्रो. शुक्‍ल कहा कि दुनिया भर में तीन करोड़ से भी अधिक भारतीय डायस्‍पोरा दो सौ वर्षों से उपस्थित है। उनका योगदान और सांस्‍कृतिक इतिहास गौरवशाली है। पांच-छह पीढ़ी से विदेशों में रह रहे भारतवंशी भलेही दो संस्‍कृति के साथ जी रहे हैं परंतु उन्‍होंने अपनी मूल भारतीय सभ्‍यता को नहीं छोड़ा है। आज मजबूत राष्‍ट्र आपस में टकरा रहे है, पहचान और अस्तित्‍व का संकट खड़ा हुआ है ऐसे में भारतवंशियों का डायस्‍पोरिक अध्‍ययन उपादेय साबित हो सकता है। उनको समग्रता में देखते हुए सभ्‍यता और संस्‍कृति को केंद्र में रखकर उनका अध्‍ययन करने की आवश्‍यकता है।

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मुख्‍य अतिथि पद्मश्री प्रो. हरमहेन्‍द्र सिंह बेदी ने कहा कि दुनिया में कई भारत बस गये है। भारतीय लोगों ने वहां भी अपनी सभ्‍यता और संस्‍कृति को बरकरार रखा है। उन्‍होंने संगोष्‍ठी की सफलता की चर्चा करते हुए कहा कि विश्‍वविद्यालय ने संगोष्‍ठी की संस्‍कृति विकसित की है और यह भारत के अन्‍य विश्‍वविद्यालयों के लिए आदर्श पथ है। इस अवसर पर उन्‍होंने वारिश शाह द्वारा रचित हीर की संपादित पांडुलिपि विश्‍वविद्यालय के कुलपति प्रो. शुक्‍ल को समर्पित की।

प्रो. गिरीश चंद्र त्रिपाठी ने कहा कि भारत संवाद और शास्‍त्रार्थ की भूमि है। वसुधैव कुटुंबकम और सर्वे भवंतु सुखिनम् यही भारत का बोध है। सभ्‍यता और संस्‍कृति हमारे पूर्वजों की देन है। डॉ. नीरजा अरुण गुप्‍ता ने कहा कि भारत वैश्विक संस्‍कृति का निर्वहन कर रहा है। उन्‍होंने युवा डायस्‍पोरा को जोड़ने की अपील करते हुए नीति बनाने की आवश्‍यकता प्रतिपादित की। संगोष्‍ठी का प्रतिवेदन आयोजन सचिव डॉ. रोमसा शुक्‍ला ने प्रस्‍तुत किया। संगोष्‍ठी की प्रतिपुष्टि प्रतिभागी प्रो. आशाराम त्रिपाठी, मुनीष गुप्‍ता और शोधार्थी सुश्री सारिका जगताप ने प्रस्‍तुत की।

विश्‍वविद्यालय के विद्यार्थियों ने मंगलाचरण प्रस्‍तुत किया। दीप दीपन एवं कुलगीत से कार्यक्रम का प्रारंभ किया गया। स्‍वागत वक्‍तव्‍य कुलसचिव क़ादर नवाज़ ख़ान ने दिया। कार्यक्रम का संचालन संगोष्‍ठी के सह-संयोजक डॉ. राजीव रंजन राय ने किया तथा धन्‍यवाद संगोष्‍ठी के संयोजक, प्रतिकुलपति प्रो. हनुमानप्रसाद शुक्‍ल ने ज्ञापित किया। ‘वंदे मातरम्’ गीत से कार्यक्रम का समापन किया गया। इस अवसर पर देश-भर से आए गणमान्य अतिथि, विश्‍वविद्यालय के अधिष्‍ठातागण, विभागाध्‍यक्ष, अध्‍यापक, शोधार्थी एवं विद्यार्थी बड़ी संख्‍या में उपस्थित थे।

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