Seven Day International Workshop

Seven Day International Workshop: वाराणसी में हिंदी विभाग द्वारा सात दिवसीय कार्यशाला

Seven Day International Workshop: वसंत महिला महाविद्यालय के हिंदी विभाग के तत्वावधान में पाठ ,संवाद और महिला रचनाकार विषय पर वद्वानो के व्याख्यान

रिपोर्टः डॉ राम शंकर सिंह
वाराणसी, 10 मार्च:
Seven Day International Workshop: वसंत महिला महाविद्यालय (काशी हिंदू विश्वविद्यालय के विशेषाधिकार के अंतर्गत) जे. कृष्णमूर्ति फाउंडेशन भारत, राजघाट फोर्ट, वाराणसी के हिंदी विभाग द्वारा सात दिवसीय अंतरराष्ट्रीय कार्यशाला का आयोजन किया गया। कार्यक्रम के प्रारंभ में डाॅ. प्रशांत कुमार सिंह ने महादेवी वर्मा की कविता “मैं नीर भरी दुख की बदली” का सुमधुर गायन प्रस्तुत किया .

प्रारम्भ में महाविद्यालय की प्राचार्या प्रोफेसर अलका सिंह ने अतिथियों का स्वागत करते हुए कहा कि यह कार्यशाला आज की स्त्रियों के लिए एक नयी प्रेरणा का कार्य करेगा। प्रतिष्ठित महिला रचनाकारों को सुनकर उन्हें अपने जीवन को सही दिशा प्रदान करने का एक अच्छा अवसर प्राप्त होगा।

Seven Day International Workshop: आचार्य एवं हिंदी विभागाध्यक्ष, स्त्री चिंतक प्रोफेसर शशिकला त्रिपाठी ने विषय- (पाठ- संवाद और महिला रचनाकार) प्रवर्तन करते हुए कहा कि पाठ और संवाद के माध्यम से रचना में हमेशा नये-नये अर्थों की संभावना बनी रहती है। जननी होने के कारण महिला रचनाकारों ने ऐसे पाठ दिये हैं, जिनसे स्त्री-पुरुष एक दूसरे के पूरक के रूप में दिखाई देते हैं, समानाधिकार के संघर्ष के बावजूद भी।

कार्यक्रम की मुख्य वक्ता सुप्रसिद्ध कथाकार मृदुला गर्ग ने पाठ- संवाद पर अपने वक्तव्य को केन्द्रित करते हुए कहा कि भगवद्गीता पूरा संवाद है।आजादी के समय के धीरोदात्त नायक गाँधी जी संवाद ही करते रहे विवाद से बचने के लिए. उन्होंने स्त्रियों पर टिप्पणी करते हुए कहा कि आज की स्त्री पूर्वाग्रहों से मुक्त, स्वतंत्र, शिक्षित, आत्मनिर्भर, स्वाभिमानी, सबला तथा निर्णय क्षमता से युक्त स्त्री है। वह अपने कार्यों और विचारों से बदलते मूल्यों को अभिव्यक्त करती है। विवाह, मातृत्व जैसे मूल्यों पर सवाल उठा रही है।

जहाँ एक ओर वह पुरुषसत्ता का विरोध करती है तो दूसरी ओर उन परंपराओं को स्वीकारती भी है जो मानवता के पोषक हैं। आपने आगे कहा कि परिणामतः व्यक्ति-व्यक्ति संबंध, व्यक्ति-समाज संबंध, स्त्री-पुरुष संबंध नये अर्थ ग्रहण कर रहे हैं। वहीं भूमंडलीकरण के फलस्वरूप उत्पन्न बाजारवादी तथा उपभोक्तावादी संस्कृति में स्त्री-शोषण के कई नए रूप भी उभरकर आ रहे हैं।

यह भी पढ़ें:National service Scheme: वाराणसी में राष्ट्रीय सेवा योजना का सप्ताहव्यापी विशेष शिविर

हिंदी व मैथिली की जानी-मानी लेखिका और पद्मश्री से सम्मानित डॉ. उषा किरण खान ने अपने अध्यक्षीय वक्तव्य में कहा है कि अब स्त्रियां सिर्फ किचन की ही बात नहीं करतीं, बल्कि उनमें साहित्य के प्रति भी अभिरुचि बढ़ी है। स्त्रियों में पढ़ने की ललक पुरुषों के बाद जागी और जब से स्त्रियों ने पढ़ना शुरू किया, अपनी बात भी रखने लगी हैं। उनका दावा है कि पुरुष से ज्यादा सृजनशील स्त्री होती है। स्त्रियों ने लेखनी के माध्यम से जो भी व्यक्त किया, वह उनकी भावना है। स्त्रियों की रचना में कल्पनाशीलता कम, भोगा हुआ यथार्थ ज्यादा होता है। डॉ खान ने आगे कहा कि स्त्रियों के लेखन में उनकी संवेदनाएं गहराई से उभरती हैं।

कार्यक्रम का कुशल संचालन समाजशास्त्र विभाग की डॉ. विभा सिंह ने किया तथा धन्यवाद ज्ञापन शिक्षाशास्त्र विभाग की डॉ. विभा सिंह पटेल ने दिया.

Hindi banner 02