Seminar on Indian classical music

Seminar on Indian classical music: वसंत कॉलेज फॉर वीमेन में शास्त्रीय संगीत पर सेमिनार

  • काशी हिन्दू विश्वविद्यालय के शास्त्रीय संगीत के प्रोफेसर प्रवीण उद्धव और प्रोफेसर के. शशी कुमार के व्याख्यान से लाभान्वित हुई छात्राएं

Seminar on Indian classical music: भारतीय शास्त्रीय संगीत में तालों का महत्व एवं प्रदर्शन विषय पर संगीतज्ञों के प्रयोगात्मक व्याख्यान

रिपोर्टः डॉ राम शंकर सिंह

वाराणसी, 11 फरवरीः Seminar on Indian classical music: वसंत महिला महाविद्यालय में संगीत गायन एवं वादन विभाग द्वारा एक दिवसीय सेमिनार (Seminar on Indian classical music) का आयोजन हुआ। “भारतीय शास्त्रीय संगीत में तालों का महत्व एवं प्रदर्शन” विषयक सेमिनार में प्रख्यात संगीत शास्त्री द्वय प्रोफेसर प्रवीण उद्धव और प्रोफेसर के.शशी कुमार ने अपने प्रयोगात्मक व्याख्यान से छात्राओं को विषय की बारीकियों से रूबरू कराया।

सेमिनार का शुभारंभ करती हुई कॉलेज की संगीत प्रेमी प्राचार्या प्रोफेसर अलका सिंह ने कहा कि संगीत शास्त्र एक प्रायोगिक विषय है। इसीलिए प्रायोगिक व्याख्यान पर आधारित सेमिनार बहुत महत्व रखते हैं। आपने इस महत्वपूर्ण सेमिनार के आयोजन हेतु संयोजक डॉ जे. एन. गोस्वामी, सह संयोजक डॉ संजय वर्मा, समन्वयक डॉ बिलंबिता बाणीसुधा और आयोजन सचिव हनुमान प्रसाद गुप्ता को शुभकामनायें दी।

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प्रारंभ में मुख्य अतिथि एवं विद्वान् वक्ताओं ने दीप प्रज्वलन किया। संगीत विभाग की छात्राओं ने मधुर आवाज़ में कुलगीत प्रस्तुत की। इस महत्वपूर्ण विषय पर अपना प्रयोगात्मक व्याख्यान प्रस्तुत करने हेतु विशेषज्ञों ने बारी बारी से अपने विचार प्रस्तुत किये। प्रथम कड़ी में विषय विशेषज्ञ काशी हिन्दू विश्वविद्यालय के ‘प्रोफेसर प्रवीण उद्धव’ ने अपने व्याख्यान की शुरूआत तबले की महत्ता एवं अवनद्ध वाद्यो के विकास पर चर्चा करते हुए की। उन्होंने बताया कि किस तरह दुंदुभी से पुष्कर और पुष्कर से पखावज का विस्तार हुआ। आगे उन्होंने अभ्यास के बारे में बताते हुए तबले पर तीनताल का पेशकार प्रस्तुत किया एवं अलग-अलग जाति में भी दिखाया।

अलग-अलग घरानों में प्रस्तुतीकरण में जो अंतर है उसे प्रोफेसर उद्धव ने वादन प्रस्तुत करके दिखाया और ‘स्वतंत्र वादन’ से भी अवगत कराया। इसके बाद लघु एवं गुरु के बारे में समझाते हुए छंद का उपयोग एवम् स्वरुप दिखाया। अपने व्याख्यान के समापन की ओर बढ़ते हुए उन्होंने झपताल की प्रस्तुति की और अन्त में यह भी बताया कि हमें कैसे लय एवं ताल का अध्ययन करना चाहिए, जिससे कि हमारे अंदर रचनात्मकता आ सके।

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मिनार की अगली कड़ी के रूप में विशेषज्ञ काशी हिन्दू विश्वविद्यालय के ‘प्रोफेसर के. शशि कुमार’ ने व्याख्यान की शुरुआत गणेश श्लोक ‘पाद पंकजम’ से की। सबसे पहले उन्होंने कर्नाटक संगीत में अलग-अलग ताल प्रणाली से परिचित कराया.. जैसे छंद ताल, सुलादी,सप्तताल आदि। व्याख्यान को लयबद्ध तरीके से आगे बढ़ते हुए उन्होंने बताया कि ताल बनाने के लिए सात अंगों का प्रयोग होता है जिसे ‘शाडांग’ नाम दिया गया। शाडांग में है लघु, गुरु, द्रुतम आदि जोकि अलग-अलग मात्रा से दिखाए जाते हैं।

प्रोफेसर के शशि कुमार ने लघु के प्रकार तथा उसमें प्रयोग हो रहे जाति- तिस्त्र, चतुस्त्र, खंड आदि से भी अवगत कराया. ये कुल मिलाकर ३५ होते हैं। आपने आगे कहा कि कैसे लय बदलने से वही राग का भाव बदल जाता है. आपने इस सम्बन्ध में कई उदाहरण देकर अपनी बात स्पष्ट की। अभ्यास गानम तथा सभा गानम के बारे में बताते हुए आपने चापु ताल से संबंधित चीजों को भी स्पष्ट किया। समापन की ओर बढ़ते हुए अंत में आपने कुछ रचनाएं भी प्रस्तुत की. शिवा शिवा शिव शिव महेश्वर, कमला अंबिके जगदंबिके….. आदि।

इस अवसर पर वी सी डब्ल्यू के अतिरिक्त काशी हिन्दू विश्वविद्यालय, महात्मा गाँधी काशी विद्यापीठ ,वसंत कन्या महाविद्यालय कमच्छा और आर्य महिला महाविद्यालय के शिक्षक एवं सहभागिता की। सेमिनार का सफल संचालन डॉ बिलंबिता बाणीसुधा ने किया। अंत में हनुमान प्रसाद गुप्ता ने धन्यवाद ज्ञापन किया।

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