Screenshot 20220414 205551

Dr. babasaheb ambedkar birth anniversary: डॉ. बाबासाहेब आंबेडकर के विचारों का पुनर्पाठ जरूरीः प्रो शुक्ल

Dr. babasaheb ambedkar birth anniversary: हिंदी विश्वविद्यालय में डॉ. बाबासाहेब आंबेडकर का जीवन और व्यक्तित्वः एक पुनर्पाठ विषय पर वक्ताओं ने रखे विचार

वर्धा, 14 अप्रैलः Dr. babasaheb ambedkar birth anniversary: डॉ. बाबासाहेब भीमराव आंबेडकर की 131वीं जयंती (Dr. babasaheb ambedkar birth anniversary) के अवसर पर महात्मा गांधी अंतरराष्ट्रीय हिंदी विश्वविद्यालय, वर्धा में डॉ.बाबासाहेब भीमराव आंबेडकर का जीवन और व्यक्तित्वः एक पुनर्पाठ विषय पर आयोजित संगोष्ठी की अध्यक्षता करते हुए कुलपति प्रो.रजनीश कुमार शुक्ल ने कहा कि डॉ.बाबासाहेब आंबेडकर ने संविधान के माध्यम से सर्व जन हिताय सर्व जन सुखाय का संकल्प किया। आज के परिप्रेक्ष्य में उसे पूरा करने के लिए उनके विचारों का पुनर्पाठ करने की आवश्यकता हैं।

क्या आपने यह पढ़ा…… Ranbir-Alia wedding: शादी के पवित्र बंधन में बंधे रणबीर और आलिया, सात फेरों के साथ रस्मेें पूरी

विश्वविद्यालय में डॉ. आंबेडकर की जयंती उत्साह के साथ मनायी गयी। कार्यक्रम का प्रारंभ समता भवन के प्रांगण में स्थित डॉ. बाबासाहेब भीमराव आंबेडकर की प्रतिमा पर माल्यार्पण कर किया गया। इसके पश्चात कुलपति प्रो.रजनीश कुमार शुक्ल की अध्यक्षता में विश्वविद्यालय के कस्तूरबा सभागार में सम्मिश्र पद्धति से आयोजित संगोष्ठी में प्रतिकुलपति प्रो.हनुमानप्रसाद शुक्ल, संस्कृति विद्यापीठ के अधिष्ठाता प्रो.लेला कारुण्यकरा, हिंदी एवं तुलनात्मक साहित्य विभाग के प्रो.कृष्ण कुमार सिंह, दूर शिक्षा निदेशालय के निदेशक डॉ.के.बालराजू ने संबोधित किया।

Dr. babasaheb ambedkar birth anniversary: अपने सारगर्भित उद्बोधन में कुलपति प्रो.रजनीश कुमार शुक्ल ने डॉ. आंबेडकर के जीवन के विभिन्न पहलुओं पर प्रकाश डालते हुए कहा कि हम मुलतः और अंततः भारतीय हैं इस विचार को केंद्र में रखकर डॉ. आंबेडकर ने आस्था, करुणा, संवेदना और स्नेह की धरातल पर समाज को खड़ा किया। डॉ. आंबेडकर ने बौद्ध धम्म की दीक्षा भलेही 1956 में ली, परंतु इसकी घोषणा उन्होंने 1934 में ही की थी। प्रो शुक्ल ने कहा कि उनके विचारों का पुनर्पाठ करते समय संविधान और धम्म दीक्षा को देखना महत्वपूर्ण हैं।

Dr. babasaheb ambedkar birth anniversary: प्रति कुलपति प्रो. हनुमान प्रसाद शुक्ल ने कहा कि समता और व्यक्ति की गरिमा के लिए डॉ. बाबासाहेब आंबेडकर ने जो संघर्ष किया वह संघर्ष का आदर्श हैं। बुद्ध का चिंतन उनके जीवन में दिखाई देता हैं। प्रो. कृष्ण कुमार सिंह ने कहा कि जाति व्यवस्था को चुनौती देकर उसपर प्रहार करना डॉ. आंबेडकर की बड़ी देन हैं। संपूर्ण भारतीय परंपरा का चिंतन कर उन्होंने कबीर, बुद्ध और महात्मा फुले को अपना आदर्श माना था। हमें अपने समय और समाज से लड़ने की उर्जा उनके विचारों से प्राप्त होती हैं।

Dr. babasaheb ambedkar birth anniversary: प्रो.एल.कारुण्यकरा ने अपने उद्बोधन में कहा कि डॉ. आंबेडकर को बचपन से ही तिरस्कार का सामना करना पड़ा। 65 वर्ष के जीवन में डॉ. आंबेडकर का अधिक समय जाति के संघर्ष में ही चला गया। प्रो. कारुण्यकरा ने डॉ. आंबेडकर द्वारा लिखित पुस्तकों का संदर्भ देते हुए उनके व्यापक व्यक्तित्व की चर्चा की। उन्होंने विश्वविद्यालय में डॉ. बाबासाहेब आंबेडकर की पुस्तक पढते हुई मूर्ति को स्थापित करने के लिए कुलपति प्रो.शुक्ल की प्रशंसा की, इस पर सभागार में उपस्थित सभी ने खड़े होकर जोरदार तालियाँ बजाकर कुलपति प्रो.शुक्ल का अभिनंदन किया।

Dr. babasaheb ambedkar birth anniversary: डॉ. के. बालराजु ने सामाजिक बुराइयों को दूर करने की दिशा में डॉ. आंबेडकर के योगदान पर विस्तार से प्रकाश डाला। उन्होंने कहा कि डॉ. आंबेडकर ने समाज की भलाई के लिए जीवन न्योछावर कर दिया। देश के प्रति निष्ठा और निष्कलंक देशभक्ति के संबंध में उनके विचारों को समग्र रूप में जानने और समझने की आवश्यकता हैं।

प्रस्तावित व स्वागत वक्तव्य में जनसंचार विभाग के अध्यक्ष प्रो. कृपाशंकर चौबे ने कहा कि डॉ. आंबेडकर एक पत्रकार, लेखक और समाज सुधारक के रूप में दिखाई देते हैं। उनका जीवन स्वतंत्रता, समानता और बंधुता के लिए समर्पित रहा हैं। डॉ. आंबेडकर ने सन 1920 से 1956 तक पत्रकारिता की ओर सामाजिक सुधार को एक नई दिशा दी।

कार्यक्रम का संचालन दूर दिशा निदेशालय के सहायक अध्यापक डॉ. संदीप मधुकर सपकाले ने किया तथा धन्यवाद हिंदी एवं तुलनात्मक साहित्य विभाग के सहायक अध्यापक डॉ.सुनील कुमार सुमन ने ज्ञापित किया। कार्यक्रम में अध्यापक, अधिकारी, शोधार्थी एवं गणमान्य नागरिक बड़ी संख्या में ऑनलाइन तथा ऑफलाइन शामिल हुए थे।

Hindi banner 02