Global perspective of Hindi

Global perspective of Hindi: “हिंदी का वैश्विक परिप्रेक्ष्य: यथार्थ, कल्पना एवं राजनीति”

Global perspective of Hindi: जर्मनी के दिव्यराज अमिय के सहयोग से “हिंदी के वैश्विक परिप्रेक्ष्य: यथार्थ, कल्पना एवं राजनीति” विषय पर एक पैनल चर्चा का आयोजन किया

हैम्बर्ग, 10 दिसंबरः Global perspective of Hindi: 26 नवंबर को जर्मनी में हैम्बर्ग विश्वविद्यालय के भारत विद्या विभाग के डॉ. राम प्रसाद भट्ट ने चौधरी चरण सिंह विश्वविद्यालय, मेरठ, भारत के प्रो. नवीन चंद्र लोहनी, लिस्बन विश्वविद्यालय, पुर्तगाल के शिव कुमार सिंह और ट्यूबिंगन विश्वविद्यालय, जर्मनी के दिव्यराज अमिय के सहयोग से “हिंदी के वैश्विक परिप्रेक्ष्य: यथार्थ, कल्पना एवं राजनीति” विषय पर एक पैनल चर्चा का आयोजन किया, जिसमें विश्व के अनेक देशों के लेखकों, विश्वविद्यालयों के विद्वानों एवं छात्र-छात्राओं ने भाग लिया।

कार्यक्रम के शुरू में हैम्बर्ग विश्वविद्यालय में संस्कृत के प्रो. हारुनागा आइजैक्सन ने संस्कृत में और संस्कृत श्लोक के साथ सभी विद्वानों का स्वागत किया। उन्होंने हिंदी को संस्कृत की छोटी बहिन की संज्ञा देते हुए दैनिक जीवन में हिंदी और संस्कृत के प्रयोग पर बल दिया। कार्यक्रम के मुख्य अथिति जर्मनी में भारत के राजदूत हरीश पर्वथानेनी थे।

उन्होंने हैम्बर्ग विश्वविद्यालय के भारत विद्या विभाग, डॉ. भट्ट और डॉ. आइजैक्सन एवं अन्य सभी आयोजकों को इतने महत्त्वपूर्ण और ज्वलंत विषय पर पैनल चर्चा का आयोजन करने के लिए बधाई देते हुए कहा कि दुनिया में भारतीय संस्कृति और हिंदी का विस्तार हो रहा है। उसके लिए उन्होंने योग, आयुर्वेद, हिंदी फ़िल्म इत्यादि की चर्चा की। उन्होंने धाराप्रवाह हिंदी में दक्षिण और उत्तर भारत के प्रश्न पर कहा कि यह एक ग़लत अवधारणा है कि दक्षिण भारत के लोग हिंदी से नफ़रत करते हैं।

“वास्तविकता यह है कि दक्षिण के अनेक विश्वविद्यालयों में, संस्थानों में हिंदी का शिक्षण हो रहा है और वहाँ भी बहुत लोग हिंदी बोलते हैं। इसका सबसे ज्वलंत और अच्छा उदाहरण मैं स्वयं हूँ।” उन्होंने इस बात पर ज़ोर दिया कि “भारत, भारतीय समाज एवं संस्कृति को बिना भारतीय भाषा सीखे, बिना हिंदी सीखे नहीं समझा जा सकता है। यह अवधारणा कि भारत में अँग्रेज़ी से काम चल जाता है यह ठीक नहीं। किसी भी समाज को बिना उसकी भाषा समझे नहीं जाना जा सकता।”

Global perspective of Hindi 1

उन्होंने इस बात का भी ज़िक्र किया कि “जर्मनी में पिछले सौ वर्षों से अधिक वर्षों से हिंदी का शिक्षण हो रहा है। यह हम सबके लिए गर्व का विषय है। उन्होंने लोगों का आह्वान किया कि सभी को अपनी मातृभाषा को बनाए रखना चाहिए और भारत की राजभाषा हिंदी को आगे बढ़ाने, उसके प्रचार एवं प्रसार में अपने स्तर पर प्रयास करने चाहिए।” उन्होंने यूएन में हिंदी के बढ़ते दायरे की बात करते हुए मज़बूत होती भारतीय अर्थव्यवस्था का संदर्भ भी दिया और कहा कि धीरे-धीरे हिंदी की पहुँच और मज़बूत ढंग से बढ़ेगी।

परिचर्चा के मुख्य आयोजक डॉ. भट्ट ने पैनल चर्चा संचालन शुरू करते हुए पश्चिमी देशों में हिंदी की वर्तमान स्थिति, उसके यथार्थ और हिंदी के सन्दर्भ में फैली कल्पनाओं और हिंदी के इर्दगिर्द हो रही राजनीति पर संक्षिप्त में भूमिका रखी और बताया कि आज शुरू हो रही यह परिचर्चा कम से कम तीन किस्तों में संपन्न की जाएगी, जिसमें इस बार हिंदी के यथार्थ पर वार्ता होगी और जनवरी 2023 में हिंदी की कल्पना पर और उसके बाद हिंदी की राजनीति पर पैनल चर्चा का आयोजन किया जाएगा।

क्या आपने यह पढ़ा…. Gujarat new cabinet: गुजरात में 12 को होगा नई सरकार का शपथ ग्रहण, इन चेहरों को मिल सकती है जगह…?

उन्होंने कहा कि हिंदी की वैश्विक स्तर पर वास्तविक स्थिति को जानने के लिए प्रश्न उठाने आवश्यक हैं क्योंकि पब्लिक डोमेन में लोग हिंदी की स्थिति को लेकर कुछ भी दावा कर लेते हैं यद्यपि वास्तविक आँकड़े और सूचना उपलब्ध नहीं करवायी जाती और वार्ता से ही हम किसी तर्कसंगत निष्कर्ष पर पहुँच सकेंगे।

केंद्रीय हिंदी संस्थान आगरा के उपाध्यक्ष अनिल जोशी ने संस्थान द्वारा हिंदी के प्रचार एवं प्रसार के लिए किए जा रहे कार्यक्रमों पर प्रकाश डाला और बताया कि उत्तर पूर्व और भूटान के लिए केंद्रीय हिंदी संस्थान ने एक विशेष हिंदी कार्यक्रम चलाया है। उन्होंने यह भी बताया कि दुनिया के अनेक देशों में हिंदी के अध्यापक कभी न कभी केंद्रीय हिंदी संस्थान के छात्र रहे हैं।

महात्मा गाँधी अंतरराष्ट्रीय हिंदी विश्वविद्यालय वर्धा के प्रो. हनुमान प्रसाद शुक्ल ने कहा कि हमें भारतीय इतिहास की विशिष्टता के परिप्रेक्ष्य में राष्ट्र, राष्ट्र-भाषा, राज्य और राष्ट्र राज्य जैसे शब्दों के आशय एवं अंतर्वस्तु दोनों पर नए ढंग से सोचने और समझने की ज़रूरत है। इस मुद्दे पर गहन और ईमानदारी से बहस होनी चाहिए। वे भाषा और बोली में भी अंतर नहीं मानते। दैनिक जागरण के सह संपादक एवं लेखक अनंत विजय ने बताया कि वे अपने अख़बार में भाषा प्रयोग के सामाजिक दायित्व के प्रति सजग हैं।

Global perspective of Hindi 1 1

उन्होंने कहा कि भाषा के प्रवाह पर भी हमें भरोसा रखना चाहिए। और उदाहरण देते हुए कहा कि जैसे उत्तराखंड में गंगा नदी के तट पर जल के प्रवाह में नुकीले पत्थर भी चिकने और गोल हो जाते हैं, ठीक उसी प्रकार हमें शुद्धतावादी आग्रह से बचना होगा क्योंकि भाषा बहती हुई जल धरा के ही समान है।

प्रो. विनोद मिश्र ने कहा कि अगर किसी समाज की भाषा ख़तरे में पड़े और विलुप्त हो जाय, तो उस समाज का स्वत्व और स्वाभिमान दोनों ख़तरे में पड़ जाते हैं। उन्होंने उम्मीद बनाए रखने की बात पर ज़ोर दिया। उन्होंने कहा कि अँग्रेज़ी के साम्राज्यवादी विस्तार के इतर हिंदी का जो प्रचार-प्रसार है और भारतीय सरकारी संस्थानों द्वारा किए जा रहे कार्य विश्व स्तर पर किसी साम्राज्यवादी दृष्टिकोण या अभियान का हिस्सा नहीं है।

प्रसिद्ध हिंदी लेखक एवं पुरवाई पत्रिका के संपादक तेजेन्द्र शर्मा, जो लंदन में रहते हैं, ने कहा कि असल बात यह है कि हिंदी के सरकारी संस्थानों ने कोई ख़ास कार्य नहीं किया। भारत से बाहर विश्वविद्यालयों में जो हिंदी पढ़ाई जाती है, वह बोलचाल की हिंदी से कोसों दूर होती है और विद्यार्थी को अंत में यही लगता है कि उसने जितने वर्ष किसी विश्वविद्यालय में हिंदी सीखने में लगाए वे बेकार थे।

हिंदी पढ़कर जो बच्चे यूरोप से जाते हैं, वे असल में भारत में हिंदी नहीं बोल पाते। उनका मानना है कि हिंदी सिकुड़ रही है। उन्होंने विश्व में हिंदी के प्रसार में बॉलीवुड की भूमिका की तारीफ़ की और कहा कि हिंदी का प्रसार सबसे अधिक बॉलीवुड से ही हुआ है। उन्होंने अपने विचार उदाहरणों के साथ रखते हुए हिंदी के संदर्भ में अनेक काल्पनिक दावों पर प्रश्न उठाए और कहा कि हमें कम से कम ईमानदारी से इस विषय पर विचार करना होगा कि हिंदी कहाँ है, कैसी है और उसका प्रसार कैसे हो रहा है और हम क्या बेहतर कर सकते हैं?

महात्मा गाँधी अंतरराष्ट्रीय हिंदी विवि के पूर्व समकुलपति एवं बनारस विवि के प्रो. आनंद वर्धन शर्मा ने कहा कि उनके अनुभव से हिंदी का प्रसार बढ़ रहा है। वे कुछ समय पहले ही बुल्गारिया से भारत लौटे और उन्होंने बुल्गारिया में भारतीय दूतावास में हिंदी का प्रयोग बढ़ा है और वहाँ छात्र बड़े चाव से हिंदी के माध्यम से भारतीय संस्कृति, समाज और इतिहास का अध्ययन कर रहे हैं।

जेएनयू के प्रो. देवेंद्र चौबे ने बताया कि हर व्यक्ति, हर विद्वान का अपना विचार होता है, अपना परसेप्शन होता है किसी चीज़ को समझने का या उसे सम्प्रेषित करने का। उन्होंने वर्तमान में भारतीय विश्वविद्यालयों में हिंदी के पठन-पाठन की प्रक्रिया में परिवर्तन आ रहा है। संस्थानों की प्रकृति में बदलाव आ रहा है। अतः कहा जा सकता है कि यह एक बड़ी विडंबना है कि एक तरफ़ सरकार हिंदी को बढ़ावा दे रही है और प्रयास कर रही है लेकिन दूसरी तरफ़ सांस्थानिक और सुव्यवस्थित जो दीर्घकालीन प्रयास होने चाहिए वे उतनी ही तेज़ी से घट रहे हैं।

Global perspective of Hindi 2

यह एक गंभीर मुद्दा है और इस पर विचार होना चाहिए। चौधरीचरण सिंह विश्वविद्यालय मेरठ के प्रो. नवीन चंद्र लोहनी ने कहा कि हिंदी की बेहतरी के लिए इस तरह के अंतरराष्ट्रीय आयोजन महत्त्वपूर्ण हैं क्योंकि इनसे संवाद की संभावना बढ़ जाती है और एक तस्वीर हमारे सामने उभरकर आ जाती जिस पर हम सब मिलकर कार्य कर सकते हैं। उन्होंने कहा कि आज़ादी के इतने वर्षों बाद आज भी हम गुलामी की मानसिकता से निकल पाए और इसीलिए बहुत लोग सोचते हैं कि ज्ञान का मतलब सिर्फ़ अँग्रेज़ी है।

यह बात भी अहम है कि हिंदी में रोज़गार की संभावना कितनी है, उससे दुनिया के फलक पर हमारी उपस्थिति तय होती है। भारत में हिंदी और क्षेत्रीय भाषाओं वाला रोज़गार लगातार कम होता जा रहा है। हिंदी में जो उपेक्षा भाव है, वह तभी समाप्त हो सकता, जब हिंदी में रोज़गार के अवसर बढ़ेंगे।

उन्होंने कहा कि वैश्विक स्तर पर हिंदी के प्रसार के संदर्भ में जो काल्पनिक दस्तावेज़ और आँकड़े प्रस्तुत किए जाते हैं, उनको देखकर कई बार यह लगता है कि हिंदी तो व्यापक स्तर पर स्वीकृत हो रही है। परन्तु जब जमीनी स्तर पर वास्तविकता देखी जाती है, तब पता चलता है कि प्रस्तुत किए गए आँकड़े कल्पना से उत्पन्न हैं और उनमें वास्तविकता दूर-दूर तक नहीं है। यथार्थ में हिंदी को भारत में विधि न्याय शिक्षण माध्यम और रोज़गार में लाना होगा। तभी व्यापक स्तर पर हिंदी के दीर्घ भविष्य की संभावना है।

क्या आपने यह पढ़ा…. Hari mirch ke totke: इन समस्याओं का होगा जल्द समाधान! बस कर लें हरी मिर्च से जुड़े यह 4 उपाय…

इससे पहले लिस्बन विवि, पुर्तगाल के शिव कुमार सिंह ने सभी वक्ताओं का विस्तार से परिचय प्रस्तुत किया और इस महत्त्वपूर्ण मुद्दे पर लोगों से अपने प्रश्न चैट रूम में भेजने का निवेदन किया। पैनल चर्चा के बाद उन्होंने श्रोताओं द्वारा पूछे गए प्रश्नों को पैनल सदस्यों के सामने रखा।

शिव कुमार सिंह को-हॉस्ट के रूप में कार्यक्रम के टेक्निकल भाग को भी देख रहे थे और उनका साथ दे रहे थे हैम्बर्ग विवि के छात्र मनदीप कुमार और कुमारी होस्निया जैदी। प्रश्नोत्तरी के बाद कार्यक्रम के अंत में दिव्यराज अमिय ने आभार ज्ञापित किया और आशा जताई कि भविष्य में भी सभी लोगों का सहयोग मिलता रहेगा। उन्होंने कहा कि कार्यक्रम बहुत ही बढ़िया रहा और इससे हम सभी को बहुत-कुछ सीखने को मिला।

राजदूत हरीश पर्वथानेनी और सभी वक्ताओं, आयोजकों एवं श्रोताओं का इस महत्त्वपूर्ण परिचर्चा को सफल बनाने के हार्दिक अभिनंदन एवं धन्यवाद। राजदूत ने अपने बहुत ही व्यस्त कार्यक्रमों से हमारे लिए समय निकाला उनका विशेष आभार।

क्या आपने यह पढ़ा…. Gujarat new cabinet: गुजरात में 12 को होगा नई सरकार का शपथ ग्रहण, इन चेहरों को मिल सकती है जगह…?

Hindi banner 02