We are all passengers of this world: हम सब मुसाफ़िर हैं इस दुनिया के……ममता कुशवाहा

हम सब मुसाफ़िर हैं इस दुनिया के
यह बात पुरानी हैं सुनी बुजुर्गों से
एक न एक दिन छोड़ चले जाना है
सबको ये दुनिया,

आये खाली हाथ हम
जायेंगे खाली हाथ हम
फिर क्यों आपस में बैर
करते लोग जहां के,
हम सब मुसाफ़िर हैं इस दुनिया के
फिर क्यों नहीं रहते खुशहाल खुद में
करते रहते ताका-झाकी
लोग एक – दूसरे की,

अहम भावना अपनाकर
कर लेते हैं अपनों से बैर
जबकि ना लेकर आया
कोई जहां में कुछ

ना लेकर जायेगा कुछ
ये बातें सभी है जानते
फिर भी पल पल की
खुशियाँ खो देते
आपस में लड़ते-झगड़ते

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