बाल श्रम में लिप्त किए जा रहे बच्चों की ज़बानी
काव्य
मेरे भी कई ख़्वाब थे,
हम भी किसी घर के आफ़ताब थे,
बिना घी के सही हमारी माँ के हाथ के व्यंजन लाजवाब थे,
साइकल के टायर और लकड़ी पर हमारे भी रुबाब थे,
पर हमारी परिस्थितियों के कोई जवाब ना थे,
हाथ में मज़दूरी के सिवा कोई रबाब ना थे,
कोई हमारे हाथों की लकीरों पर पड़े छालों पर चढ़ा दे नक़ाब,
लौटा दे हमें आपके जैसे बचपन का बाब,
हम खेलेंगे-कूदेंगे और खाएँगे राब,
पढ़ लिख कर बनेंगे नवाब,
हमारे पिता के पाँव में भी होंगे जुराब,
पूरे करेंगे हम हमारे थे जो ख़्वाब!
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