Story of life: फँस गई धार बहते जीवन के: वरुण सिंह गौतम
!! धार !! (Story of life)
Story of life: फँस गई धार बहते जीवन के
इस दर तो कभी वो दलहीज़
आँखे नम नहीं जो रूकता तन्हा के
लम्हें भी याद आती वो इतिवृत्त के
लौट चलता सदा बस यह सोचकर
कभी तन्हा दो चार होंगी लम्हें के
लेकिन ठिठुर – ठिठुर कर जी लेता मसोसकर
थी आँखे चार होनी किन्तु हुई नहीं
सोचता कभी एक बार एक वक्त
स्वप्न का जगा हूँ कबसे , फिर – फिर से
बूँद – बूँद में समत्व अंकुर – सी कोमल
गागर में सागर – सी भर – भर दूँ जहाँ
लेकिन वक्त तो स्वयंलय , करती कहाँ ईक्षा
जो है लीन में वो ही प्रभा तिरती इक्ष में
बँधे मैं स्वयंभू खल के विहीन मैं स्व के
जलती बाट बार – बार क्रन्दन करती मेरी आह
बीत गई अब बेला मेरे तन आँगन की
कब पदचिन्ह् भी लौट चलेगी पंचभूत में
लय भी कहाँ मुझमें जो देगी भी एक पैगाम
तरस गया , तड़प अब देखूँ भी कहाँ ऊर्ध्वंग तस्वीर ?
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