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Zamaana: आधे सपने तो यही सोचकर दम घोट लेते हैं कि ज़माना क्या कहेगा: अनुराधा रानी

!! ज़माना !! (Zamaana)

Zamaana:आधे सपने तो यही सोचकर दम घोट लेते हैं कि ज़माना क्या कहेगा
एक डॉक्टर का बेटा डॉक्टर ना बने तो सौ बार उसे लड़ना पड़ता है
फ़िर अपने अरमानों को पीछे छोड़ ज़माने को देख चलना पड़ता है
क्या है आख़िर उसकी गलती
की अरमानों कि नौका ना पार लगती

एक लड़की अपने हक़ के लिए लड़े तो वो गुनेहगार है
क्युंकी ज़माने ने ये हक़ उसे दिया ही नहीं
एक बहू को बेटी किसी ने कहा ही नहीं
हम इतना आगे बढ़ गए
फ़िर भी रूठिवादी सोच का ज़माना गया ही नहीं

आज भी छोटी जाती के लोगों से सब दूरी रखते हैं
घर में नौकर-चाकर से अलग व्यवहार करते हैं
क्या ये मनुष्य नहीं
आज़ादी के पहले भी यही विडंबना थी
फिर कहते हो की हम आगे बढ़ गए
पर क्यों भेद-भाव का ज़माना गया ही नहीं

हमने तरक्की कर आसमान तो छू लिया
पर रीति-रिवाजों की होड़ में बेड़ियों से खुद को बांध दिया
तारीखे बदल गई ,समय बदल गया
नहीं बदला तो वो ज़माना
जिसने जीने का हक़ सबको दिया ही नहीं
अनुराधा रानी ✍️

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