भारतीय रेल की ऐतिहासिक उपलब्धि श्रमिक स्पेशल ट्रेनें. . .जानें क्या है सच्चाई ?

भारतीय रेल की श्रमिक विशेष ट्रेनों पर पश्चिम रेलवे के मुख्य जनसम्पर्क अधिकारी श्री रविन्द्र भाकर का एक विशेष लेख

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रविन्द्र भाकर,
मुख्य जनसम्पर्क अधिकारी, पश्चिम रेलवे



जानें क्या है सच्चाई ? हाल ही में कई मीडिया और अन्य कई सोशल मीडिया माध्यमों द्वारा रिपोर्ट किया गया कि श्रमिक विशेष गाड़ियां अपने मार्ग से भटक गई हैं। वे अपने गंतव्य तक, घंटों की बजाय कई दिनों में पहुंच रही हैं। श्रमिक स्पेशल ट्रेनों के यात्रियों, विशेषत: प्रवासी मज़दूरों, जिन्हें गाड़ी परिचालन के बारे में ज़्यादा कुछ जानकारी नहीं है, उन्होंने कई ऐसे वीडियो पोस्ट किए हैं जिसमें उन्होंने यह दावा किया है कि गाड़ियां अपने मार्ग से भटक गई हैं और ये वीडियो वायरल हो गए हैं।


वास्तविकता यह है कि ट्रेनें कभी अपने मार्ग से भटकती नहीं है। ड्राइवर अथवा लोको पायलट कभी भी ट्रेन को न तो डाइवर्ट कर सकते हैं और न ही अपने मनचाहे मार्ग से ले जा सकते हैं। आम आदमी भी जानता है कि ट्रेन में स्टेरिंग नहीं होती है। जंक्शन स्टेशनों पर नियंत्रक मंडल कंट्रोल से क्लीयरेंस मिलने के बाद ट्रेन के आगे जाने के लिए सब कुछ सेट करता है; जबकि मंडल भी ज़ोनल कंट्रोल से अनुदेश प्राप्त करता है। ट्रेन परिचालन विभिन्न मंडलों और ज़ोनों के एक साथ मिलकर काम करने पर सम्भव होता है और उनके उचित समन्वयन से ही ट्रेनें सुगमता पूर्वक चलाई जाती हैं। लॉकडाउन से पहले भारतीय रेल द्वारा पैसेंजर ट्रेन ऑपरेशन में 13,000 से अधिक पैसेंजर ट्रेनें और 9000 से अधिक गुड्स ट्रेनें लगभग 90% समयपालनता के साथ प्रतिदिन चलाई जा रही थीं। परिचालन से जुड़े इतने विशालकाय कार्य को करने की क्षमतावाली इस प्रणाली में इसकी ट्रेनों के मार्ग भटकने की बात उचित नहीं है।


भारतीय रेल द्वारा ऐसे अभूतपूर्व समय में पॉइंट-टू-पॉइंट आधार पर श्रमिक स्पेशल ट्रेनें चलाई जा रही हैं। रेलवे को ट्रेनों के आरंभिक स्टेशन और गंतव्य स्टेशन के बारे में अग्रिम रूप से योजना तैयार करने सम्बंधी कोई छूट नहीं होती है और न ही अग्रिम तौर पर समय सारणी तैयार की जाती है। गंतव्य स्टेशन वाले राज्य से स्वीकृति प्राप्त होने के बाद राज्य सरकार से ट्रेन की मांग की जाती है। यह सब अत्यंत अल्प अवधि की सूचना पर तय होता है, जिससे रेलवे को रेक उपलब्धता के साथ-साथ क्रू, इंजन, मार्ग, मार्ग देने के लिए अन्य रेलों के साथ समन्वय करने जैसे अन्य विविध महत्वपूर्ण कार्यों पर योजना तैयार करने के लिए बहुत कम समय मिल पाता है। तथापि तुरंत सम्बंधित गाड़ी के लिए अनुमोदन प्राप्त किया जाता है, मार्ग निर्धारित किया जाता है, टाइम शेड्यूल तैयार किया जाता है और राज्य सरकार से यात्रियों को स्टेशन तक पहुँचने की व्यवस्था करने के लिए कहा जाता है। स्टेशन पर 2 से 3 घंटे पहले रेक लगा दिया जाता है, जिससे कि राज्य प्राधिकारियों द्वारा सोशल डिस्टेंसिंग नियमों का पालन करते हुए बोर्डिंग की व्यवस्था की जा सके। ट्रेन की मांग से लेकर प्लेटफार्म पर लेट लगने के बीच प्रतीक्षा अवधि न्यूनतम रखी जाती है जिससे कि प्रवासियों को असुविधा न हो।
निर्धारित शेड्यूल, रूट और हॉल्ट के साथ रेलवे का निर्धारित ट्रेन पैटर्न है। इसे मांग, सेक्शन क्षमता इत्यादि को ध्यान में रखते हुए तैयार किया जाता है। यद्यपि श्रमिक विशेष गाड़ियां चार्टर्ड गाड़ियां हैं अर्थात शून्य या कुछ हाल्ट सहित विशेष उद्गम स्थान से गंतव्य तक। इन गाड़ियों को राज्य सरकार द्वारा मांग के स्टेशन या अपेक्षित स्टेशन के लिए चलाया जा रहा है। छोटे स्टेशनों पर क्षमता बाधा होने के बावजूद रेलवे द्वारा मोरवी, धौला, व्यारा इत्यादि जैसे दूरस्थ और छोटे स्टेशनों पर रेक उपलब्ध करवाकर प्रशंसनीय कार्य किया गया है।
श्रमिक विशेष गाड़ियां वापसी की दिशा में खाली आती हैं। वास्तव में रेलवे इन गाड़ियों के परिचालन की लागत का 85% स्वयं वहन करती है, जिसमें शुरुआती स्टेशन से ढुलाई जो कि दूरस्थ स्टेशन हो सकता है, खाली गाड़ी की वापसी इत्यादि जैसी लागत शामिल है। राज्य सरकारों से इसका 15% ही वसूल किया जाता है। क्रू प्रबंधन भी काफी चुनौतीपूर्ण होता है। ड्यूटी समाप्त होने पर लोको पायलट, गार्ड, आरपीएफ कर्मचारी बीच के स्टेशनों पर फंस जाते हैं। उन्हें गुड्स ट्रेन या अन्य कोई उपलब्ध गाड़ी से वापस लाया जाता है।


भारतीय रेलवे ने 53 लाख से अधिक प्रवासियों को उनके गृह राज्यों में ले जाने के लिए दिनांक 28.05.2020 तक 3700 श्रमिक स्पेशल चलाई हैं। इनमें से 80% ट्रेनें पूरे भारत पूर्वी उत्तर प्रदेश और बिहार की ओर जाती है। इसे सबसे बड़ी निकासी कार्रवाई में से एक माना जा सकता है।
मई 20 और 21 को कई राज्यों से भारी मांग के कारण कई श्रमिक विशेष मुख्य रूप से उत्तर प्रदेश और बिहार के लिए इटारसी – जबलपुर – पंडित दीनदयाल उपाध्याय जंक्शन के अंतिम आम मार्ग से चलाई, जिससे इस मार्ग पर भी बढ़ गई। यात्रियों के बोर्डिंग में समय लगने के कारण, आने वाली सभी ट्रेनों पर व्यापक प्रभाव पड़ा है। प्रवासियों का स्वास्थ्य भी अच्छा नहीं है और उनमें से कई रास्ते में बीमार पड़ने के कारण गाड़ियों को बीच में रोकना पड़ा। हाल ही में, पश्चिम रेलवे के कर्मचारियों ने दो गर्भवती महिला यात्रियों को प्रसव के लिए सहायता प्रदान की। श्रमिक विशेष में यात्रा कर रही लगभग 35 गर्भवती महिला यात्रियों के यात्रा के दौरान प्रसव हो चुके हैं और रेल कर्मचारियों ने प्रसव में सहायता की और ट्रेन को रोक दिया गया।


पश्चिम रेलवे द्वारा यूपी, बिहार एवं आगे के स्टेशनों के लिए भी जलगांव -इटारसी-जबलपुर मार्ग से विविध ट्रेनें चलाई गई क्योंकि यह सबसे कम दूरी वाला मार्ग है। दिनांक 21 मई को पश्चिम रेलवे द्वारा 29 ट्रेनें इस रूट से रवाना की गईं। इसी बीच, अन्य ज़ोन, विशेष तौर पर मध्य रेलवे को पूर्वी उत्तर प्रदेश एवं बिहार राज्यों के लिए ट्रेन चलाने का अनुरोध प्राप्त हुआ, जिसकी वजह से कंजेशन बढ़ गया। परंतु स्थिति की नाजुकता को समझते हुए पश्चिम रेलवे के प्लानिंग प्रमुखों ने तत्काल वैकल्पिक योजनाएं तैयार कीं और कुछ ट्रेनें जो पहले ही रवाना हो चुकी थीं, उन्हें नागपुर मार्ग पर डायवर्ट कर दिया गया। दिनांक 21 मई को रवाना की गई ऐसी ही एक विशेष ट्रेन वसई – गोरखपुर स्पेशल जिसे कल्याण, खंडवा – इटारसी – जबलपुर – पंडित दीनदयाल उपाध्याय जंक्शन रूट से जाना था, उसे बिलासपुर – झारसुगुड़ा – राउरकेला – आसनसोल रूट पर डायवर्ट कर दिया गया। इससे रनिंग के समय में तो कुछ घंटे की वृद्धि हुई, परंतु इससे व्यस्त सेक्शनों को कुछ राहत मिली।
रेलवे बोर्ड तत्काल हरकत में आया और रूटों की पुनः योजना बनाते हुए नई मांग के अनुसार ट्रेनों का परिचालन इन नए रूपों से करने लगी। पश्चिम रेलवे द्वारा तीन वैकल्पिक और रुटों की पहचान की गई और उसके बाद की ट्रेनें इसी नए वैकल्पिक मार्ग से चलाई गई। यद्यपि ये नए रूट कुछ अधिक दूरी वाले थे, परंतु जलगांव – इटारसी – जबलपुर के व्यस्त सेक्शन से बचा जा सका। इसके परिणामस्वरूप अधिक ट्रेनों की मांग में कमी के साथ ही इटारसी – जबलपुर सेक्शन की व्यस्तता भी कम हुई। पश्चिम रेलवे अब ओडिशा की ट्रेनों को सूरत मार्ग से चला रही है; जबकि उत्तर प्रदेश एवं बिहार की ट्रेनें रतलाम – भोपाल और कोटा – आगरा मार्ग से चलाई जा रही हैं। दिनांक 21 मई के पश्चात पश्चिम रेलवे द्वारा इन मार्गों से एक सप्ताह में 200 ट्रेनें चलाई गई हैं।


श्रमिक स्पेशल मार्ग में पड़ने वाले राज्यों के स्टेशनों पर नहीं रुकती हैं, अतः इससे बीच के स्टेशनों पर चढ़ने / उतरने वालों को किसी भी प्रकार की असुविधा नहीं हुई। वास्तव में, परिवर्तित मार्ग के स्टेशनों पर भोजन के पैकेट उपलब्ध कराना रेलवे के लिए काफी चुनौतीपूर्ण कार्य रहा है। ट्रेनों में जन उद्घोषणा प्रणाली का कोई प्रावधान नहीं है जिससे यात्रियों को परिवर्तित मार्ग के संबंध में सूचना देना सम्भव नहीं था। यद्यपि ऑपरेशनल हॉल्ट पर घोषणाएं की गई थीं, परंतु इससे यात्रियों के चिंता के स्तर में कोई कमी नहीं हुई जो नियमित ट्रेनों द्वारा उसे विशेष रूट पर यात्राएं करते हैं। इटारसी जैसे एक स्टेशन पर, जहां से प्रतिदिन लगभग 70 से 80 गाड़ियां गुजरती है तथा प्रत्येक गाड़ी में 1600 यात्रियों के लिए रोजाना तकरीबन 1.25 लाख भोजन उपलब्ध कराने की आवश्यकता होती है। लॉकडाउन एवं श्रमशक्ति में कमी के बावजूद भी व्यवस्थाएं की जा रही हैं।

इसके साथ ही रिलीजिंग स्टेशनों से ट्रेन चालक दल को पुनः वापस लाना एक चुनौतीपूर्ण कार्य था। इसी बीच, यह रिपोर्ट आ रही थी कि गर्मी के मौसम के दौरान कई यात्रियों की भूख एवं प्यास से मृत्यु हो गई है। जबकि ऐसे कोई भी मामले नहीं थे, जहां मृत्यु भूख एवं प्यास से हुई हो। अधिकांश मामलों में यात्री को पहले से कोई बीमारी थी तथा रेलवे की यह अपील थी कि यदि किसी को पहले से किसी भी प्रकार की बीमारी है, तो यात्रा करने से बचें; परंतु इसके बावजूद भी रेल यात्राएं की गई। श्रमिक स्पेशल के शुरुआत से रेलवे ने 84 लाख से अधिक भोजन के पैकेट एवं 1.25 करोड़ पानी की बोतलें उपलब्ध कराई हैं। कुछ मामलों में यह पाया गया है कि यात्रियों द्वारा भोजन के पैकेट लूट लिए गए जिसके फलस्वरूप वृद्ध एवं दिव्यांग यात्री भोजन एवं पानी से वंचित रह गए।
रेलवे एक ऐतिहासिक समय से गुजर रही है, जहाँ एक ओर नियमित ट्रेनें रुक गई हैं, तो दूसरी ओर देश में कोविड-19 की स्थिति से उत्पन्न प्रवासियों के आवागमन की समस्याओं का समाधान करने के लिए योजना के साथ जनशक्ति द्वारा एड़ी चोटी का प्रयास किया जा रहा है। श्रमिक विशेष ट्रेनों को भारतीय रेलवे के इतिहास में स्थायी रूप से चिन्हित किया जाएगा, जहाँ यात्री ट्रेनों के अनुसार अपनी यात्रा की योजना नहीं कर रहे थे; बल्कि यात्रियों के अनुसार ट्रेनों की योजना बनाई जा रही थी तथा प्रत्येक रेल कर्मी प्रवासियों को गृह राज्य तक पहुँचाने के लिए अपनी ड्यूटी के समय से परे जाकर कार्य कर रहा था।